लोहड़ी का त्यौहार
Lohri Festival
भूमिका- पंजाब की धरती और जीवन सभ्यता और संस्कृति अनेक विशेषताओं से विभूषित है। पंजाब की सस्कति अनेक रंगों से रंगी हुई है। एक ओर नदियों की पवित्र धाराएँ तो दूसरी और लहलहाती फसलों से भरे खेत दिखाई देते हैं। एक ओर त्यौहारों और मेलों की धूम तो दूसरी और नाच और नृत्य तथा गीतों के मधुर सुनाई पड़ते हैं। लोहड़ी पंजाब का एक विशेष त्यौहार है। यद्यपि यह सारे देश में धूमधाम से मनाया जाता है, परन्तु पंजाब में इसके अपने ही स्वर और अपने ही रंग हैं।
पृष्ठ भूमि- लोहड़ी शब्द का मूल तिल+रोड़ी है जिससे तिलौडी बना और समय के साथ इसका रूप लोहड़ी बन गया। कई स्थानों पर लोहड़ी को लोही या लोई भी कहा जाता है। लोहड़ी पर्व मनाने की परम्परा वैदिक काल से भी दिखाई देती है। प्राचीनकाल में ऋषि देवताओं को प्रसन्न करने के लिए हवन किया करते थे। घी, शहद, तिल, गुड़ आदि डालकर हवन करने से उठता हुआ धुआँ सारे वातावरण को किटाणु रहित और शुद्ध करता था। कहा जाता है कि इस दिन लोहनी देवी ने एक क्रूर दैत्य को जलाकर राख कर दिया था। उस दिन की याद को ताजा करने के लिए हर साल आग जलाकर खुशियाँ मनाई जाती हैं।
इस त्यौहार का सम्बन्ध एक पौराणिक कथा ‘सती दहन’ से भी जोड़ा जाता है। भगवान शिव के गणों ने प्रजापति दक्ष की गर्दन उस समय काटी थी जब अपने पति के अपमान से आहत होकर सती ने यज्ञ की अग्नि में स्वयं प्रवेश कर अपने आप को भस्म कर दिया था। बाद में देवताओं की स्तुति से भगवान् शिव का क्रोध शान्त हो गया था और उन्होंने दक्ष को नया जीवन दिया था। दक्ष ने इस दिन पूर्ण आहुति डालकर यज्ञ को पूर्ण किया था।
एक गरीब ब्राह्मण की दो सुन्दर बेटियां थीं जिनका नाम सुन्दरी और मुन्दरी था। उनकी सगाई नजदीक ही गाँव में कर दी गई। हाकिम को जब उनकी सुन्दरता का पता चला तो वह उन्हें चाहने लगा। लड़कियों का पिता बड़ा परेशान रहने लगा। निराशा में डूबा हुआ ब्राह्मण अपने घर की ओर लौट रहा था तो जंगल में उसे दुल्ला भट्टी डाकू मिला तो दुःखियों का सहायक था। उसने ब्राह्मण देवता को वचन दिया कि वह उन लड़कियों की शादी वही कराएगा जहाँ निश्चित की गई है। दुल्ला स्वयं लड़के वालों के पास गया और तिथि निश्चित कर जंगल में ही आग जला कर स्वयं धर्मपिता के रूप में उन लड़कियों का विवाह करवा दिया था। इस घटना के बाद हर वर्ष लोहड़ी का त्यौहार आग जलाकर मनाया जाने लगा।
कृषि और ऋतु से सम्बन्ध- किसान की फसल घर आ जाती है। उस फसल के कुछ अंश जलती हुई आग में डालकर दान किया जाता है। इस त्यौहार का सम्बन्ध ऋतु से भी है। सर्दी से बचने के लिए इन दिनों तिल-गुड़ खाना अनिवार्य माना गया है। गरीब से गरीब भी तिल की रेवड़ियां खाते हैं। लोहड़ी के दिन, जिनके यहाँ लड़के की नई शादी होती है या लड़का पैदा हुआ होता है वे उनके घर जाकर लोकगीत गाकर बधाई मांगते हैं। घर वाले उन्हें रेवड़ियां, गचक आदि देते हैं। सांयकाल के समय लकडियो के ढेर को आग लगा दी जाती है। उस आग में। तिल, गुड़ रेवड़ियां डालकर हवन किया जाता है।
उपसंहार- इस त्यौहार के दिन हवन करके हम देवताओं को खुश करते हैं। यह त्यौहार एकता का प्रतीक है। छोटा, बड़ा, गरीब, अमीर इकट्ठे होकर खाते हैं, आनन्द मनाते हैं। जलती हुई शिखा हमें राष्ट्र और समाज के लिए बड़े से बड़ा बलिदान देने के लिए प्रेरित करती है।