लड़का-लड़की एक समान
Ladka Ladki ek Saman

Hindi-Essays
Essay No. 1
प्रकृति की रचना के सुंदर फल लड़का और लड़की दोनों ही मानव जाति की वृद्धि, उसके संरक्षण और पालन के मुख्य आधार हैं। सभी धर्मग्रंथों में सृष्टि के इन उत्तम उपहारों को समान दर्जा दिया गया है। लेकिन सामाजिक परिस्थितियों और आर्थिक कठिनाइयों के कारण समाज में इन दोनों के बीच एक गहरा भेद पैदा हो गया है। लड़कियों को लड़कों से निम्न स्तर का प्राणी माना जाता है। कुछ लोग तो उनके पालन-पोषण में भी भेद-भाव करते हैं। सब लोग यह जानते हैं कि लड़का-लड़की समाज के पूरक हैं, कोई भी किसी से किसी क्षेत्र में कम या अधिक नहीं है। समाज के ठेकेदारों ने अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए पुरुष को शारीरिक रूप से बलवान कहा और आर्थिक रूप से सबल कहा, समाज पर उसका दबदबा बना रहे इसके लिए समाज को पुरुष प्रधान समाज की संज्ञा दी। इसी बलबते पर उसने स्त्री को अनेक मूलभूत अधिकारों से वंचित कर दिया उसे नरक का द्वार कहा, साहित्यकारों ने उसे अबला और समाज ने उसे पुरुष के पैर की जूती कहकर अपमानित किया। लड़के को खानदान बढ़ाने वाला, कुल का नाम रोशन करने वाला तथा बुढ़ापे का सहारा कहकर हर प्रकार से आदर व सम्मान दिया गया, लड़की के लिए दहेज की समस्या से उलझना व समाज के दरिंदों का बुरी नजर से देखना माता-पिता के लिए शोचनीय हो गया, जिस कारण भ्रूण रूप में कन्या शिशु की हत्या का चलन शुरू हो गया, जो अभी तक आंशिक रूप में कहीं न कहीं देखने को मिलता रहता है। इन हरकतों से समाज में जो लड़की-लड़के की औसत जन्म दर में कमी आई उससे विचारकों की आँखें खुलीं।आज विश्व स्तर पर इसे रोकने के प्रयास जारी हैं। मध्यकाल में आर्य समाज, ब्रह्म समाज ने जो प्रयास किया था उससे नारी की स्थिति में सुधार आया। उसकी शिक्षा की व्यवस्था हुई, उसने रूढ़िवादिता से बाहर आ नए वातावरण में साँस ली। पढ़-लिख कर आज वह उद्योग, कृषि, कला, साहित्य, व्यापार, व्यवसाय आदि हर क्षेत्र में अपनी सफलता के झंडे गाड़ चुकी है। एवरेस्ट से लेकर अंतरिक्ष तक, उद्योग से लेकर व्यापार तक, दफ़्तर से लेकर साहित्य सृजन तक, हर स्थान पर उसने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। उसमें असीम शक्तियाँ हैं जिसे पुरुष की शक्ति के साथ मिलाकर मनचाहा लाभ प्राप्त किया जा सकता है और समाज की समृद्धि में योगदान से देश को मजबूत बनाया जा सकता है। आज समाज में 90% लोगों में यह परिवर्तन देखने को मिल रहा है कि वे लड़का हो या लड़की दोनों को समान समझते हैं। परिवार नियोजन के अधीन भगवान द्वारा मिली सौगात को प्रसन्नतापूर्वक अपनाते हैं और लड़का हो या लड़की उसका लालन-पालन भरसक प्रयत्न से कर पढ़ा-लिखा कर उसे योग्य बनाना अपना कर्तव्य समझते हैं।
लड़का-लड़की एक समान
Ladka-Ladki Ek Saman
Essay No. 2
विचार-बिन्दु- •समाज का जड़ दृष्टिकोण • लडकियों की भूमिका • समाज से उदाहरण
परमात्मा की सभी संताने समान हैं। उनमें अंतर करके देखना समाज की जडता की निशानी है। अज्ञानी लोग अपन स्वाथों की पूर्ति के लिए भेदभाव खडे किया करते। आज का समाज भी ऐसी जड़ता से अछूता नहीं है। भारत हा या पाकिस्तान या अफगानिस्तान इंग्लैंड अमरीका हो या रूस-सभी देशों में लड़का-लड़का का लेकर धाड़ा-धिक भेदभाव अवश्य पाया जाता है। भारत में तो यह समस्या इतनी अधिक है कि लोग लड़का के जन्म को अभिशाप मानते हैं। वे भूल जाते हैं कि भगवान ने लड़की को सर्जक बनाया है। उसके बिना सृष्टि का यह चक्र पूरा नहा हो सकता। वास्तव में समाज में जितना भी निर्माण कार्य होता है, उसमें अधिक बड़ी भूमिका लड़कियों की होती का बच्चा का जन्म देना, उन्हें पालना, उन्हें शिक्षित करना चिकित्सा करना- इन सब में स्त्रियों की भूमिका अधिक बड़ी होती है। आज तो स्त्रियों ने उन क्षेत्रों में भी पुरुषों की बराबरी करना शुरू कर दी है, जिन पर पुरुष अपना एकछत्र अधिकार माना करते थे। इसलिए लड़का-लड़की में भेद करना सरासर अन्याय है। यह विचार ही मन से निकाल देना चाहिए।