कुरूक्षेत्र का मेला – हरियाणा
Kurukshetra ka Mela – Haryana
हरियाणा हमारे देश का एक नया राज्य है। पहले यह राज्य पंजाब में ही सम्मिलित था।, पर अब वह एक स्वतंत्र राज्य बन गया है। पंजाब और हरियाणा दोनों राज्यों की एक ही राजधानी है-चंडीगढ़। चंडीगढ़ का शासन केन्द्र के द्वारा किया जाता है।
हरियाणा बड़ा सुन्दर प्रदेश है। धरती बड़ी उपजाऊ है। प्रकृति ने भी अपने हाथों से धरती का श्रृंगार किया है। हरे-भरे बगीचे, कल-कल स्वरों में गाती और मचल-मचल कर बहती हुई नदियाँ और छोटी-छोटी पहाड़ियाँ तथा घाटियाँ मन को बरबस अपनी ओर खींच लेती हैं। हरियाणवी बोली, पहनावा और संगीत का अपना कुछ और ही रंग होता है। सब से निराला होता है। सब से अद्भुत होता है। अपने निराले पन से ही हरियाणवी को लाखों में पहचान लिया जाता है।
धरती उपजाऊ होने के कारण बड़ा भरा-पूरा प्रदेश है। चारो और हरियाली ही हरियाली दिखाई पड़ती है। हरियाली से ढकी हुई उस धरती की गोद में श्रृंगार भी पलता है और वीरता भी। हजारों ऐसी लोक कथा।यें और लोक गति मिलते हैं।जिनमे श्रृंगार और वीर रस सजीव हो कर बहते हुए दिखाई पड़ते हैं। श्रृंगार रस प्राणों में जहाँ गुदगुदी पैदा करता है। वहीं वीर रस उत्साह और वीरता का संचार भी करता है।
हरियाणा में प्रेम, धर्म, संस्कृति और वीरता से सम्बन्धित बहुत से पर्व मनाये जाते हैं तथा मेले भी लगते हैं। प्रत्येक पर्व और मेले के अवसर पर स्त्री-पुरुषों में बड़ा उत्साह देखने को मिलता है। हफ्तों पहले से ही मेलों में जाने के लिये तैयारियाँ होने लगती हैं। रथ सजाये जाने लगते हैं। बैलगाड़ियों की मरम्मत होने लगती है।
बैलों और ऊँटों को भी सजाया जाने लगता है। मेले के दिन लोग रथों, बैलगाड़ियों और ऊँटों पर बैठ कर निकल पड़ते है। कंठ-कंठ से संगीत निकलता रहता है। आनन्द का रस उमड़ पड़ता है। ऐसा आनन्द और उत्साह देखने को मिलता है कि मन पुलकित हो जाता है। स्त्रियों की रंग-बिरंगी पोशाकें, उनका पूँघट, उनकी कलाईयों के आभूषण और पुरुषों की ठाठदार पगड़ियों को देखकर किसका मन विमोहित नहीं हो जाता।
यो तो हरियाणा में कई मेले लगते हैं।पर कुरुक्षेत्र के मेले का कुछ और ही रंग होता है। कुरुक्षेत्र का मेला हरियाणा का ही नहीं, सारे भारत का सबसे बड़ा मेला है। लाखों स्त्री-पुरुष इस मेले में सम्मिलित होते हैं। यद्यपि यह हिन्दू धर्मावलम्बियों का मेला है पर मेले में दूसरी जातियों और धर्मों के लोग भी किसी न किसी रूप में सम्मिलित होते हैं। जैसे अनेक लोग इस मेले में अपनी-अपनी वस्तुओं को बेचने के लिये आते हैं और बेच कर लाभ उठाते हैं।
यो तो प्रत्येक बड़े पर्व पर कुरुक्षेत्र में मेला लगता है पर सूर्य ग्रहण के अवसर पर बहुत बड़ा मेला लगता है। देश के कोने-कोने से लोग आकर उस मेले में सम्मिलित होते हैं और सूर्य सरोवर में स्नान करके अपने जीवन को धन्य बनाते हैं कहते हैं। सूर्य ग्रहण के अवसर पर सूर्य सरोवर में स्नान करने से मनुष्य को जीते-जी मोक्ष मिल जाता है। कुछ लोगों की धारणा है कि सूर्य ग्रहण के समय सूर्य सरोवर में स्नान करने से रोगों से छुटकारा मिल जाता है।
ज्योतिष के विज्ञान के अनुसार सूर्यग्रहण के समय प्रकाश की जो किरणे सरोवर के पानी पर पड़ती हैं। वे कुछ रोगों के कीटाणुओं को नाश करने में बड़ी सक्षम होती है। चर्म रोगों पर उनका प्रभाव विशेष रूप से पड़ता है। पर, लोककथा।ओं के अनुसार सरोवर में स्नान करने से मनुष्य पुण्य का भागी होता है।
कुछ लोगों का कथन है कि आज जहाँ सूर्य सरोवर है। उसी जगह महाभारत के युद्ध में कर्ण ने शरीर का परित्याग किया था। कर्ण सूर्य का पुत्र था। अतः सूर्य ने स्वयं कर्ण की पवित्र स्मृति को बनाये रखने के लिये इस सरोवर का निर्माण किया था।
इसके विपरीत कुछ लोगों का कथन है। आज जहाँ सूर्य सरोवर है। वही भीष्म बाणों की शैय्या पर सोये हुये थे और वहीं अर्जुन ने उनके मुख में जल की धारा डालने के लिये धरती में बाण मार कर पाताल से गंगा को प्रकट किया था। सूर्य सरोवर का पानी उसी पाताल गंगा का पानी है।
सूर्य सरोवर का जल अत्यधिक पवित्र समझा जाता है। सूर्य ग्रहण के समय उस जल में नहा कर लोग सूर्य से मुक्ति के लिये प्रार्थना करते हैं और दान पुण्य भी करते हैं। लाखों स्त्री-पुरूष एक साथ ही सरोवर में स्नान करते हैं। एक साथ ही प्रार्थना करते हैं और एक साथ ही दान-पुण्य भी करते हैं। सूर्य सरोवर के तट पर एकता का अनुपम दृश्य देखने को मिलता है।
सभी वर्गों के हिन्दू, सिख, जैन और बौद्ध एकता के सूत्र में बंधे हुए दिखाई पड़ते हैं। मानो उनमें आपस में कोई भेद ही न हो। सचमुच उनमें कोई भेद नहीं है। वे एक ही हैं जो अनेक के रूप में चारों ओर फैले हुए हैं।