कायर मन कहँ एक अधारा
Kayar Mann Kahn ek Adhara
संसार में मनुष्य दो तरह के होते हैं। पहले वे जो कर्म करने में विश्वास रखते हैंऐसे लोगों को कर्मवीर कहा जाता है। दूसरे वे लोग जो कर्म करने से जी चुराते हैं। भाग्य के सहारे रहते हैं। जो वह देगा खा लेंगे नहीं देगा तो नहीं खाएँगे। ऐसे लोगों को कर्मभीरु कहा जाता है। जो कर्मवीर हैं वे अपने अधिकारों की भिक्षा नहीं माँगते। अपने कार्यों के बल पर उन्हें प्राप्त कर लेते हैं। जबकि कायर अपना अधिकार छीने जाने पर ईश्वर इच्छा का नाम देकर चुप बने रहते हैं। संसार में जितने भी बड़े आदमी हुए हैं उन्होंने भाग्य के भरोसे नहीं कर्म के भरोसे ही सब कुछ प्राप्त किया। बड़े बने और बड़े कहलाये। नीतिशतक में भर्तृहरि जी ने लिखा है कि उद्योग करने वाला मनुष्य पुरुष-सिंह होता है, लक्ष्मी उसी का वरन करती है। ‘भाग्य देगा’ या भाग्य में जो लिखा वह मिलेगा जरूर ऐसी। बात कायर कहते हैं। भाग्य को अलग रखकर परिश्रम करो। यत्न करने पर भी यदि कुछ। नहीं मिलता तो इस में तुम्हारा क्या दोष है। इसके विपरीत आलसी व्यक्ति संत मलूकदास जी के निम्न वचनों का सहारा लेकर कुछ कर्म करने को तैयार नहीं होते। संत मलूक दास ने कहा था “अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम। दास मलूका कह गये, सबके दाता राम”। किन्तु आलसी लोग यह नहीं जानते कि यदि भाग्य में पास होना लिखा है। तो फिर पढ़ने से क्या लाभ ? अरे भई ! पास होना है तो पढना तो पडेगा। कर्म तो करना ही पड़ेगा। तुलसी दास जी ने भी इस सम्बन्ध में कहा है सकल पदार्थ हैं जग माहीं। कर्महीन नर पावत नाहीं। श्रीमद्भगवद् गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कर्म करने और फल की चिन्ता न करने की बात इसीलिए कही है। कर्महीन (आलसी) मनुष्य का जीवन नरक समान होता है। कर्मवीर अपने को अपशब्द कहने वाले को मुँह तोड़ जवाब देता है किन्तु कर्महीन या आलसी व्यक्ति के मुँह से एक शब्द भी नहीं निकलता। इसीलिए कहा गया है कि आलस्य शरीर और आत्मा के लिए शाप है। आलस्य शरारत को पोषित करता है और अनिष्ट का प्रवर्तक है। शैतान मनुष्य को बहका सकता है परन्तु आलसी व्यक्ति पर उस का भी जादू नहीं चलता। उलटे आलसी शैतान को ही प्रलोभन देने लगता है। इसलिए ज्ञानी लोग सलाह देते हैं कि आलस्य को अपने पास फटकने न दो। आपने उसे यदि अपना आज दे दिया तो उसे आपके आने वाले कल को झटक लेने में भी देर नहीं लगेगी।