कथनी से करनी भली
Kathani se Karni Bhali
कहानी नंबर :- 01
कहते हैं कहना तो आसान है किन्तु करके दिखाना बड़ा कठिन होता है। किन्तु स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद हमारे राजनीतिज्ञों ने इसे सच करके दिखा दिया है। चुनाव के समय बड़े-बड़े वादे किये जाते हैं। हम यह कर देंगे हम वो कर देंगे। हम देश से गरीबी हटा देंगे, भूख भगा देंगे इत्यादि इत्यादि। किन्तु ज्योंहि चुनाव में विजयी हुए उनकी सूरत तक देखने को वोटर बेचारा तरस जाता है। हाँ, कहीं सौभाग्य से वे नेता जी मंत्री बन जाएँ तो उनकी फोटो प्रतिदिन समाचार-पत्रों में देखने को मिल जाती है। आज मंत्री जी ने श्मशान घाट का उद्घाटन किया तो कल मंत्री जी विधवा आश्रम का उद्घाटन करेंगे जैसे समाचार पढ़ने को अवश्य मिल जाएँगे। बड़ों ने कहा है कि जो व्यक्ति केवल कहता है। करता कुछ नहीं तो लोगों का विश्वास उस पर से उठ जाता है। हम इस बात को नहीं मानते। कितने ही नेता हैं जो केवल कहते हैं करते कुछ नहीं वे हर बार चुनाव जीत जाते हैं। हर बार लोग उनकी कथनी पर विश्वास करके उन्हें बोट देते हैं। यही तो हमारे जनतंत्र की विशेषता है। वह युग गया जब महात्मा गाँधी के पास कोई व्यक्ति यह पूछने गया था कि महात्मा जी गुड़ कैसे छोड़ जाए। गांधी जी उसे परसों आने को कहा। उस दिन जाने पर गांधी ने उस व्यक्ति को कहा-तुम गुड खाना छोड़ दो। उस व्यक्ति ने कहा महात्मा जी यह वाक्य तो आप बीते परसों भी कह सकते थे। गाँधी जी ने उत्तर दिया उस दिन में स्वयं गुड़ खाता था। यदि उस दिन मैं तम्हें गड छोड़ने को कहता तो तुम्हारा गुड़ भी खाना छुटता नहीं। आज मैंने स्वयं गड खाना छोड़ दिया है इसलिए तुम्हें भी गुड़ खान छोड़ने को कह रहा हूँ। गाँधी जी को लोग बापू और राष्ट्र पिता इसलिए कहते हैं कि वह जो कहते थे वो करते भी थे। दक्षिण अफ्रीका में उन्होंने ने अपना पाखाना तक स्वयं साफ किया था। यदि नेताओं की बात छोड़ दें तो क्या आज के युग में ऐसे साधु प्रचारक का नहीं मिलते जो दूसरों को तो मोह माया त्यागने का उपदेश देते हैं परन्तु स्वयं लम्बी लम्बी कीमती गाड़ियों में घूमते हैं। यदि हम मन, वचन, कर्म में समान नहीं तो दूसरों पर हमारा प्रभाव कैसे पड़ेगा कौन सुनेगा हमारी बात। इतिहास साक्षी है कि जिन-जिन लोगों की आर करनी समान थी वे अमर हो गए। हमें भी चाहिए जो कहें उसे कर दिखाएँ नहीं तो कहें ही नहीं व्यर्थ की डींगें मारने से कोई लाभ नहीं। दूसरों को उपदेश देने वाले तो बहुत मिल जाएँ पर स्वयं उस पर अमल करने वाले थोड़े मिलेंगे। काश हमारे राजनीतिज्ञ गद्दी का मोह छोड़कर वही कहें जो वे करना चाहते हैं। करके दिखाएँ तो जाने।
कहानी नंबर :- 02
कथनी से करनी भली
Kathni se Karni Bhali
श्रेष्ठ व्यक्ति के महान कार्य ही उनकी प्रशंसा के प्रमाण होते हैं बोलने की अपेक्षा काम करने की ओर ध्यान होना चाहिए। इसी तथ्य को निम्नलिखित कहानी में दर्शाया गया है।
मोहन. सोहन और राकेश तीनों सहपाठी थे। मोहन के पिता बड़े व्यापारी थे और उनके धन का प्रभाव मोहन पर था। वह विद्यालय में अपने धन की ढींगे मारा करता था। विद्यार्थी चुप रह जाते। राकेश के पिता जी एक दफ्तर में कर्लक थे और उनका निर्वाह बड़ी कठिनाई से होता था। राकेश को जो भी जेब खर्च मिलता वह चुपचाप बैंक में जमा करा देता था। अब तक उसके पास 200 रु० जमा हो चुके थे। सोहन के पिता जी नहीं थे उसकी माता दसरों के घरों का काम-काज करके अपना खर्च चलाती। सोहन की फीस देने के लिए भी कभी-कभी उन्हें बहुत परेशानी होती। एक बार बिमार होने से सोहन अपनी फीस न दे पाया। मोहन कई बार अपने सहपाठियों के सामने ही सोहन को कहता कि मैं तुम्हारी सहायता कर सकता हूं। तुम्हारी किताबों का खर्च भी दे सकता हूं। राकेश ने मोहन से कहा कि अब सोहन परीक्षा में बैठ नहीं सकेगा क्योंकि उसने अभी लगभग 150 रु० फीस के जमा करवाने हैं। मोहन ने बड़ी चतुराई से कहा कि मैं तो अपने जेब खर्च भी पूरा कर चुका हूं और वह अपने पिता से भी नहीं कह सकता। राकेश पहले वैसे ही जानता था कि मोहन की करनी और कथनी में बड़ा अन्तरहै। वह चुपचाप गया और अपनी पास बुक में से पैसे निकलवाकर सोहन की पूरी फीस जमा करवा दी। रसीद लेकर वह सोहन के घर गया और चुपचाप उसके हाथ में रसीद थमा दी। सोहन की आँखों में आँसू आ गए। राकेश ने कहा वह अपनी परीक्षा की तैयारी करे और कुछ कहने की जरूरत नहीं है। राकेश कभी डींग नहीं मारता था पर समय पर अपने मित्र की सहायता की।
शिक्षा- कथनी की अपेक्षा करनी श्रेष्ठ होती है।