कामकाजी नारी के समक्ष चुनौती
Kamkaji Nari ke samaksh Chunoutiya
एक नहीं दो-दो मात्राएँ, नर से बढ़कर ‘नारी’। आज नारी
केवल दो-दो मात्राओं का ही बोझ वहन नहीं कर रही वह
जीवन में घर और बाहर दोहरी भूमिका निभा रही है।
महात्मा गांधी ने कहा था- “यदि एक पुरुष शिक्षित होता है तो वह स्वयं तक सीमित रहता है पर यदि एक नारी शिक्षित होती है तो वह पूरे परिवार को शिक्षित करती है।” आज नारी पढ़ी-लिखी है और नौकरी करके आर्थिक रूप से घर की समृधि में सहायता कर रही है। विश्व में आधी जनसंख्या पुरुषों की है और आधी नारियों की। अत: कोई भी समाज या देश पुरुषों की आधी जनसंख्या को काम देकर विकास के मार्ग पर अग्रसर नहीं हो सकता। जिस प्रकार गाड़ी के दो पहिए उसे तेज गति से आगे बढ़ाते हैं उसी प्रकार किसी भी देश की उन्नति तभी संभव है जब नारी और पुरुष दोनों कंधे से कंधा मिलाकर कार्य करें। आज भारतीय नारी ने इस आवश्यकता को पहचान लिया है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में वह पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रही है। वह घर की चारदीवारी से निकलकर धनार्जन करना निकल पड़ी है क्योंकि यह उसकी मानसिक एवं आर्थिक आवश्यकता थी। पुरुष पर निर्भर नारी उसके शोषण का शिकार थी। अतः नारी को स्वावलंबी बनने के लिए नौकरी का सहारा लेना पड़ा। नौकरी करने निकली नारी जब बाहरी दुनिया के संपर्क में रहती है तो उसके विचारों में, चिंतन में, रहन-सहन में परिवर्तन आता है। अनेक सूचनाओं द्वारा ज्ञानाजि करने से उसका आत्म-विश्वास बढ़ता है। ऐसे में एकाकी परिवारों के बच्चों को कामकाजी माताओं के स्नेह सेवा रहना पड़ता है। किंतु इसके भी अच्छे परिणाम निकले हैं, बच्चों में आत्म-निर्भरता की भावना शीघ्र विकसित हो है। नारी नौकरी करे यह समय की माँग है। घर से बाहर निकली नारी पुरुष के आर्थिक स्तर को सुधारने में मदद। है। अतः परुष को भी घर के कामों में उसका हाथ बंटाना चाहिए। तभी जीवन सुखमय होगा और देश तथा समा। उन्नति के मार्ग पर अग्रसर होंगे।