काल करे सो आज कर
Kal Kar So Aaj Kar
आने वाला कल भविष्य के गर्भ में छिपा हुआ अनिश्चित समय है। कोई नहीं कह सकता कि कल क्या होगा, इसलिए जो भी काम करना हो, उसे कल पर छोड़ने के बजाय आज ही कर डालना चाहिए। जो काम आज करना हो उसे उसी समय कर डालना चाहिए जब उस काम को करने का विचार मन में पैदा हुआ हो।
लेकिन यह उक्ति सभी प्रकार के कामों के बारे में ठीक नहीं है। यदि अज्ञानता वश यमनोविकारों के वश आपके दिमाग में किसी का अहित या नुकसान पहुँचाने वाला विचार आ रहा है या किसी तरह के शैतानी ख्याल की खिचड़ी आपके दिमाग में पक रही है और आप अपनी दिमागी प्रक्रिया को तुरन्त अंजाम देना चाहते हैं तो यह आपके जीवन के लिए अच्छा नहीं होगा। इसलिए महापुरुषों का कहना है कि यदि मनुष्य के मन में कोई गलत काम करने का विचार आए, तो वह उसे कल पर छोड़ दे। कल पर छोड़ देने से वह उग्र विचार अपने आप शान्त हो जाएगा और एक दिन की अवधि के अन्तराल में उस कार्य को करने या न करने की सही बुद्धि भी आदमी के दिमाग में आ जाएगी। गलत विचार को तुरन्त कर देने से व्यक्ति को प्रायः हानि ही उठानी पड़ती है।
दूसरी ओर सन्तों का कहना है कि यदि कोई अच्छा विचार आपके दिमाग में आ रहा हो या किसी भले कार्य को करने का संकल्प आपके अन्दर उठा हो तो उसे बिना समय आँवाए उसी क्षण से शुरू कर देना चाहिए। कारण यह है। कि समय के साथ-साथ आदमी की विचारधारा बदलती रहती है। आदमी के दिमाग में कभी एक से विचार नहीं आते। कभी वह अच्छा सोचता है और कभी बुरा। मन की एकरस अवस्था उनकी रहती है जिनका मन सुस्थिर एवं एकाग़ है। मान लीजिए आपके मन में किसी नेक काम को करने का विचार आ रहा है और आपने सोच लिया कि इसे फिर करेंगे या कल करेंगे तो कल तक उस कार्य के प्रति आपकी इतनी अटूट निष्ठा या श्रद्धा नहीं रहेगी। मन की श्रद्धा को जीवन की कई बातें अपनी ओर आकर्षित कर लेती हैं। एक तो संसार की भौतिक चमक दमक, दूसरे अनेक प्रकार की बुराइयाँ या दूषित माहौल व्यक्ति का मन अच्छी बातों से हटाकर बुरी बातों की ओर लगा देती हैं।
पापकर्मों से मनुष्य की आत्मा का पतन होता है, समाज को नुकसान पहुँचता है और मानवता को ठेस पहुँचती है अतः पापकर्मों को करने से सदैव बचना चाहिए। यदि क्रोधवश, घृणा या ईष्यवश या वैरभाव के वश आपके मन में किसी को मारने-पीटने या नुकसान पहुँचाने का ख्याल आए तो आप अपनी अन्तरात्मा से पूछिए कि क्या ऐसा करना ठीक है? आप ऐसे खतरनाक विचारों को तुरन्त अंजाम देने के बजाय उन्हें कल पर छोड़ दीजिए। कल के आते-आते आपकी अन्तरात्मा उन हुए कर्मों के लिए आपको दुत्कारेगी, फटकारेगी और ऐसे अनर्थ कर्मों को करने के सम्बन्ध में आपका मन बदल जाएगा।
यदि आपके मन में किसी का हित या भला करने का विचार आ रहा हो । तो आप तुरन्त ही ऐसे कामों को करना शुरू कर दीजिए क्योंकि पुण्य कर्मों से हमेशा व्यक्ति की आत्मा का, समाज का, राष्ट्र का और सारी मानवता का हित ही होता है। यदि अच्छे कामों को आपने कल पर छोड़ दिया तो गलत व्यक्तियों का, प्रतिकूल परिस्थितियों का और खराब समय का दुष्प्रभाव कभी भी आपको वह काम नहीं करने देगा। नेक कार्यों को तुरन्त शुरू कर देने से आत्मबल और उत्साह की प्राप्ति होती है-कल पर टाल देने से उत्साह की मात्रा क्षीण हो जाती है।
कबीरदासजी कहते हैं-
कल करे सो आज कर, आज करे सो अब।
पल में परलय होएगी, बहुरि करेगो कब॥”
अर्थात् यदि आपको कोई काम करना है तो उसे कल पर या अनिश्चित दिन अथवा समय के लिए नहीं टालना चाहिए, बल्कि कल के काम को आज ही कर डालो। जो कार्य आज के दिन करना है, उसे अभी कर डालो क्योंकि दिन बहुत बड़ा होता है। अगले ही क्षण कुछ भी अनिष्ट हो सकता है। यदि अनिष्ट हो गया तो वह कार्य होने से रह जाएगा।
वेद व्यासजी महाभारत में कहते हैं :-
‘अद्यैव कुरु यच्छेयो मा त्वां कालोऽत्यगादयम् ।”
(अर्थात् जो कल्याणकारी कार्य हो, उसे आज ही कर डालना चाहिए ।)
“श्वः कार्यमय कुर्वीत पूर्वाह्णे चापरहिणकम्।
नहि प्रतीक्षते मृत्युः कृतमस्य न वा कृतम्॥”
(कल किया जाने वाला कार्य आज पूरा कर लेना चाहिए। जिसे सायंकाल करना है, उसे प्रातः ही कर लेना चाहिए, क्योंकि मृत्यु यह नहीं देखती कि इस व्यक्ति का काम अभी पूरा हुआ है या नहीं।)
आगे वेदव्यासजी मृत्यु की अनिवार्यता पर जोर देते हुए अपने संस्कृत महाकाव्य में लिखते हैं-
“शष्पाणि विचिन्वन्तमन्यत्र गत मानसम् ।।
वृथीवोरणा मासाद्य मृत्युादाय गच्छति॥”
(अर्थात् जैसे घास चरते हुए भेड़ों के पास अचानक व्याघ्र पहुँच जाता है। तथा भेड़ों को देखते ही दबोच लेता है, उसी तरह जब मनुष्य का मन संसार के विषयों में अर्थात् दूसरी ओर लगा रहता है, तब सहसा मृत्यु आ जाती है। और मनुष्य को लेकर चल देती है।)
भविष्य के ऊपर मनुष्य का कोई जोर नहीं है क्योंकि भविष्य काल के गर्त में छिपा हुआ है। वह कब किस गति से और कौनसा रूप लेकर हमारे सामने आएगा-यह कोई नहीं कह सकता। इसलिए केवल वर्तमान ही हमारा है और हमारा अधिकार सिर्फ वर्तमान के कर्मों पर है। भूत एवं भविष्य के कर्मों के बारे में हम केवल सोच-विचार कर सकते हैं, कर कुछ नहीं सकते। वर्तमान काल हमें कार्यक्षेत्र के मैदान में उतारता है। वह गीता के भगवान की भाँति हमको अपने कर्तव्य के पालन के लिए सतत रूप प्रेरणा तथा शक्ति प्रदान करता है। जो व्यक्ति अपने वर्तमान समय को सिर्फ इधर-उधर की बातों में या व्यक्ति के वार्तालापों में तथा वृथा कर्मों में नष्ट कर देता है-उसके पास केवल पछताना ही शेष रह जाता है।
विलियम कांग्रीव कहते हैं-
“यदि आप बुद्धिवान बने रहना चाहते हैं तो कोई भी कार्य आगामी कल तक टालमटोल मत करो। हो सकता है कि तुम्हारे लिए कल का सूर्य कभी उदित ही न हो।”
इसी तरह पाश्चात्य विद्वान् हॉमस फुलर का कथन है-
जो कार्य कल या किसी भी और समय किए जाने की बात है-वह कल कभी नहीं आएगा।‘
-भगवान अच्छे कार्यों को तुरन्त करने के लिए कहते हैं और बुरे कर्मों से बचे रहने के लिए तथा उन्हें कल-परसों या आगामी दिनों तक टालने के लिए कहते हैं जबकि शैतान अच्छे कार्यों को कल पर टालने के लिए कहता है तथा बुरे कार्यों को तुरन्त कर देने के लिए मनुष्य को उकसाता रहता है।
जो लोग अच्छे कामों को कल पर छोड़ देते हैं वे भगवान की नहीं, शैतान की बात मानते हैं।