जीवन में धर्म का महत्व
Jeevan mein Dharam ka Mahatva
सुखी, सफल और उत्तुम जीवन जीने के लिए किए गए आचरण और प्रयत्नों का नाम ही धर्म है। देशकाल और सामाजिक मूल्यों की दृष्टि से संसार में भारी विविधता है। आदमी का स्वभाव है कि वह अपने ही विचारों और जीने के तौर-तरीकों को तथा अपनी ही भाषा और खान-पान को सर्वश्रेष्ठ मानता है और चाहता है कि लोग उसका अनुसरण और अनुकरण करें। दूसरों से अपने धर्म को श्रेष्ठतम समझते हुए वह चाहता है कि सभी लोग उसे अपनाएँ। धर्म के नाम पर होने वाले जातिगत विद्वेष, मारकाट तथा हिंसा के पीछे मनुष्य की यही स्वार्थ भावना काम करती है। सभी धर्म अपनी भौगोलिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक आवश्यकताओं के आधार पर पैदा होते, पनपते और बढ़ते हैं। अतएव उनके बाह्य रूप का भिन्न-भिन्न होना आवश्यक और स्वाभविक है। पर, सबके भीतर मनुष्य की कल्याण-कामना है, मानव-प्रेम है। यह प्रेम यदि सच्चा है तो यह बाँधता और सिकोड़ता नहीं है बल्कि हमारे हृदय और दृष्टिकोण का विस्तार करता है। वह हमें दूसरों के साथ नहीं समस्त जीवन-जगत के साथ जोड़ता है।