जैसी संगति बैठिये तैसोई फल होई
Jaisi Sangati Baithiye tesoi phal hoi
मनुष्य और पशु में अन्तर करने वाली बात ज्ञनार्जन की शक्ति है। मनुष्य के पास बुद्धि का बल है पशु के पास उतना नहीं। मनुष्य की बुद्धि का विकास ज्ञान से होता है और ज्ञान सज्जन पुरुषों की संगति से प्राप्त होता है। खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग संगति के कारण ही पकड़ता है और एक मछली सारे तालाब को गन्दा संगति के कारण ही कर देती है। इसीलिए कहा गया है कि जैसी संगति बैठिये तैसोई फल होई। कोई माने न माने साधु की अर्थात् सज्जन व्यक्ति की संगति कभी-कभी मनुष्य के जीवन की धारा ही बदल देती है। कोई व्यक्ति किसी साधु महात्मा को कत्ल करने के लिए छुरा लेकर वहाँ गया किन्तु वहाँ पहुँचते ही उसने छुरे को उनके चरणों में रखकर उनसे न केवल क्षमा मांगी अपितु उनका अनन्य भक्त भी हो गया। इस उदाहरण से यह स्पष्ट है कि सज्जन व्यक्तियों की संगति से व्यक्ति में अच्छे गुणों का उदय होता है, उसके दुर्गुण नष्ट हो जाते हैं। जीवन में उसे सुख शान्ति प्राप्त होती है। समाज में उसकी प्रतिष्ठा होती है। कबीर जी ने इसीलिए कहा है कि ‘कविरा संगति साधु की हरै और की व्यधि। ओच्छी संगति नीच की, आठों पहर उपाधि। इसी कारण कहा गया है कि मनुष्य अपनी संगति से पहचाना जाता है। बुरी संगति करने वाला अच्छा व्यक्ति भी बुरा ही समझा जाता है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने ठीक ही लिखा है कि ‘बिनु संगति विवेक न होई अर्थात् बिना सत्संगति के मनुष्य को ज्ञान प्राप्त नहीं होता। ज्ञान प्राप्त करके ‘इह लोक और परलोक सुधार सकता है। धन प्राप्त करके नहीं जैसा कि आम लोग समझते हैं। धन सम्पत्ति तो मनुष्य की यहीं रह जाएगी, साथ जाएगा तो उसका यश, उसके सत्कर्म जिन्हें वह एक मात्र सत्संगति से प्राप्त कर सकता है। जिन लोगों को सज्जन पुरुषों की, साधुजनों की संगति करने का अवसर नहीं मिलता है (आज के युग में सज्जन और साधु पुरुष रह ही कितने गए हैं ) वे लोग अच्छी पुस्तकों की संगति करके भी सत्संगति का लाभ उठा सकते हैं। सत्संगति का यह एक सरल सूत्र है। इस से हींग लगे न फटकरी और रंग भी चोखा आए वाली बात सत्य सिद्ध हो जाती है। पुस्तकें भी हमें ज्ञान देती हैं। इसीलिए कहा गया है। ‘ज्ञान काटे ज्ञान से मूरख काटे रोय’। हमने सत्संगति के प्रभाव से चोर डाकू को साध बनते देखा है और कुसंगति के प्रभाव से सदा कक्षा में प्रथम आने वाले विद्यार्थी को फेला होते भी देखा है। इसीलिए विशेषकर विद्यार्थी जीवन में कुसंगति से बचने का उपदेश दिया गया है। कुसंगति में, बुरी बातों में रस तो मिलता है पर वह श्रुणिक ही होता है। जबकि सत्संगति का प्रभाव चिरस्थायी होता है। काजल की कोठरी में जाओगे तो कालिख लगेगी ही। इसलिए कालिख से बचने के लिए हमें स्वयं ही उपाय सोचने हैं। इस स्वार्थ भी इसी में है। किसी उपदेश से मन में ऐसी भावना नहीं जागती। मार कर उस नहीं करवाई सकती जय करने की भावना हमारे मन से उठनी चाहिए। सत्संगति के फल पर, परिणाम पर आप को स्वयं ही सोचना है और निर्णय लेना है।
The essay must be divided into different meaningful paragraph
no its ok for small ones but you are correct for best marks