जहाँ चाह वहाँ राह
Jaha chaha waha raha
‘जहाँ चाह वहाँ राह’- यह कहावत मनुष्य की इच्छा शक्ति का महत्त्व प्रकट करने वाली है। जो व्यक्ति किसी भी तरह की परिस्थितियों का दास बनकर नहीं रह जाता, परिश्रम से मुँह नहीं मोड़ता और कठिनाइयों का मुँहतोड़ उत्तर देना जानता है, उसी को इच्छा करने का अधिकार है, उसी की चाह को सच्ची चाह माना जाता है। ऐसा मनुष्य ही अपनी चाह को पूर्ण करने के लिए आगे बढ़कर उचित राह भी खोज लिया करता है। इसलिए अपनी दृढ़ इच्छा-शक्ति को कभी न तो गुमराह होने देना चाहिए, न मरने ही देना चाहिए। जैसे- जान है तो जहान है, वैसे ही यदि सच्ची चाह है, तो उसे पूरा करने के लिए कोई-न-कोई राह भी अवश्य है। जीवन का यही सत्य है कि मनुष्य को अपनी ही कुदाली से खोदकर अपने जीवन का रास्ता तैयार करना पड़ता है। उसके लिए हार्थों का मजबूत होना बहुत आवश्यक है। हाथ तभी मज़बूत होते हैं जब हृदय में कार्य करने की प्रबल चाह हो। जैसे मशाल पकड़कर गहरे अँधेरे में भी चलते रहकर आगे बढ़ा जा सकता है, उसी प्रकार चाह की ज्योति के प्रकाश में ही सारी कठिनाइयों से लड़ते हुए लक्ष्य तक पहुँचा जा सकता है। प्रबल इच्छा शक्ति के समक्ष कठिनाइयाँ भी झुक जाती हैं। दृढ़ निश्चय किसी को शांत नहीं बैठने देता। एक दुवार बंद होते ही वह अन्य उम्मीदों के दवारों को खोजने लगता है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि चाह के सामने विकट परिस्थितियाँ झुक और महान कलाकार, लेखक, चित्रकार, साहित्यकार जन्मे। प्रेमचंद के नाम से आज कौन अनभिज्ञ होगा। लेखन की चाह के समक्ष विषम गरीबी भी टिक न पाई केवल भारत के इतिहास को ही क्यों अब्राहम लिंकन के नाम को ही स्मरण कर लिया जाए तो कहावत की सत्यता और भी सटीक ज्ञात होगी कि ‘जहाँ चाह वहाँ राह।’
निबन्ध नंबर -: 02
जहाँ चाह वहाँ राह
Jaha chaha waha raha
‘चाह” का अर्थ है-इच्छा या कामना। मानक हिन्दी कोश में इसका अर्थ है-
वह मनोवेग जो मनुष्य को कोई ऐसी वस्तु प्राप्त करने के लिए प्रेरित करता है, जिससे उसे सन्तोष या सुख मिल सके।
जब मनुष्य किसी चीज को पाने की इच्छा रखता है तो वह उसे प्राप्त करने के लिए कहीं-न-कहीं से राह निकाल ही लेता है। यदि आदमी किसी कार्य को करने के लिए कटिबद्ध हो जाए तो उस काम को पूरा करने का कोई-न-कोई उपाय ढूँढ़ ही लेता है।
ऊधम सिंह प्रसिद्ध क्रान्तिकारी एवं देशभक्त थे। उन्होंने इच्छा की कि वे जलियाँवाला बाग में भीषण नरसंहार कराने वाले जनरल डायर को गोली मारें और इसी चाह को लिए वे इंग्लैण्ड पहुँचे। वहाँ योजनाबद्ध तरीके से कार्य करते हुए उन्होंने भरी सभा में जनरल डायर को गोली मार दी।
मूर्ख कालिदास को जब उनकी पत्नी ने घर से निकाल दिया था तो कालिदास ने संकल्प लिया था कि एक दिन वे अपनी पत्नी का अभिमान दूर करके ही रहेंगे। फलस्वरूप उन्होंने संस्कृत साहित्य एवं व्याकरण का गहराई से मनन-चिन्तन किया और संस्कृत में काव्य-रचना करके अपनी पत्नी का शीश शर्म से झुका दिया।
गोस्वामी तुलसीदासजी अपनी पत्नी के मोह में बड़े दीवाने हो चुके थे। एक दिन उनकी पत्नी रत्नावली ने उनके मोह-संस्कार को धिक्कारा तथा प्रभु से प्रीत लगाने को कहा। पत्नी की बात गोस्वामीजी के दिल में बैठ गई। उन्होंने सब कुछ भुलाकर राम में अपना मन लगा लिया तथा अपना सब कुछ प्रभु को सौंप दिया। रामचरितमानस तथा अनेक भक्तिकाव्य उन्होंने श्री रामचन्द्रजी केचरित्र का गुणगान करते हुए लिखे। उन्होंने न केवल अपना मन राम से जोड़ा बल्कि अपने अमर काव्य के जरिए लाखों करोड़ों का मन ईश्वर की ओर जुड़ाया।
मुंशी प्रेमचन्द चाहते थे कि भारत में फैली करीतियों, परम्परा, अन्धविश्वासों और बुरे संस्कारों को मिटाने के लिए वे कुछ करें। भगवान ने उनको कलम की शक्ति दी। इसी शक्ति की बदौलत उन्होंने अपने अन्तर्मन की इच्छा या चाह के लिए राह निकाल ली। गोदान, वरदान, कर्मभूमि, रंगभूमि, कायाकल्प, मनोरमा, रूठी रानी, प्रतिज्ञा तथा निर्मला आदि अनेक अमर उपन्यासों का निर्माण उन्होंने किया तथा मानसरोवर के अन्तर्गत तीन सौ से अधिक कहानियाँ उन्होंने लिखीं। सम्राट सिकन्दर बचपन से ही विश्वविजय का सपना देखा करता था। उसकी चाह थी कि वह सारे संसार पर विजय प्राप्त करे। जब वह यूनान का राजा बना तो उसने एक विशाल सेना का संगठन करके आसपास के देशों को जीतना शुरू किया। इन विजयों में उसे अपार धन दौलत की प्राप्ति हुई। फलस्वरूप युद्ध के प्रति उसका उत्साह और बढ़ा और वह विश्व को विजय करने की यात्रा पर निकल पड़ा।
नेपोलियन बचपन में दुबला पतला तथा लड़की जैसा दिखता था। लेकिन उसकी चाह थी कि वह एक दिन फ्रांस का सम्राट बनेगा। युवा होने पर वह देश की सेना में भर्ती हुआ और सेनाध्यक्ष के पद तक पहुँचा। एक दिन अपनी चाह के बलबूते पर वह सचमुच फ्रांस का सम्राट बन गया। बचपन में जब वह अपने साथियों तथा अध्यापिका से अपने राजा होने की बात कहता था तो सब उसकी खिल्ली उड़ाते थे।
‘जहाँ चाह, वहाँ राह’ होने का यह मतलब नहीं है कि व्यक्ति की हरेक चाह अथवा इच्छा पूर्ण हो सकती है और चाहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को उसके उद्देश्य की सफलता की राह मिल सकती है। यह जीवन संघर्षों का नाम है और संघर्षों भरे इस जगत में प्रत्येक व्यक्ति की सोची गई इच्छा पूरी नहीं हो सकती।
प्रायः हर कोई व्यक्ति चाहता है कि उसके पास ढेर सारी धन दौलत हो और इसके लिए वह जी तोड़ कोशिशें भी करता है परन्तु महँगाई और बेरोजगारी के इस जमाने में सामान्य व्यक्ति की चाहना कहाँ पूरी हो पाती है? यदि हर कोई व्यक्ति प्रान्त का मुख्यमन्त्री, देश का प्रधानमन्त्री तथा राष्ट्रपति बनना चाहे तो हर किसी की यह चाह कैसे पूरी हो सकती है, चाहे वह प्रधानमन्त्री या राष्ट्रपति पद पाने की कितनी भी जी तोड़ कोशिश करे। कारण यह है कि प्रधानमन्त्री एक होता है और राष्ट्रपति भी एक ही होता है।
शास्त्रों में ‘इच्छा’ को ‘अविद्या’ अथवा ‘अज्ञान’ कहा गया है। इच्छ चाह एक मृगतृष्णा की तरह भी है। मनुष्य के मन में रोजाना अनेक प्रक इच्छाएँ उठती रहती हैं। इनमें कुछ इच्छाएँ अच्छी तथा शेष बुरी होती हैं। इच्छाओं की पूर्ति होने से मनुष्य की आत्मोन्नति होती है। शुभकामनाएँ व्यक्ति समाज तथा राष्ट्र को भी उन्नति दिलाती हैं। जबकि बुरी इच्छाएँ अथवा अप्राप्त कामनाओं से मनुष्य की स्वयं की अपनी हानि, उसके परिवार तथा समाज को हानि तथा सारे राष्ट्र तथा मानव जगत् को हानि या क्षति पहुँचती है।
इच्छा या संकल्प करना बुरी बात नहीं है, लेकिन प्रश्न उठता है कि इच्छा या संकल्प किस प्रकार का करना चाहिए? यदि यह किसी अशुभ कार्य की पूर्ति की या गलत वस्तु को पाने की इच्छा मन में रखेंगे तो उसके पूरा होने पर हमें किसी प्रकार का विशेष आत्मिक लाभ होने के बजाय हानि ही होगी इसलिए चाह या इच्छा हमेशा भले कामों की करनी चाहिए। जो मनुष्य परमार्थ के कार्यों में लगे रहते हैं-भगवान उनके मन की सारी इच्छाएँ पहले ही पूरी कर देते हैं।
चाहे बड़े-से-बड़े पर्वत को तोड़कर उसके बीच रास्ता निकालना हो, बहती हुई नदियों के रुख को मोड़ना हो, धरती पर बहुमंजिली इमारत खड़ी करनी हो या उन्नति के शीर्ष शिखर पर पहुँचना हो-जब आदमी किसी काम को पूरा करने की मन में ठान लेता है तो वह कितना ही कठिन-से-कठिन क्यों न हो-अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति या विलपॉवर के बल पर वह उस काम को करने की राह निकाल ही लेता है, और एक दिन अपनी मेहनत या कठोर परिश्रम के बलबूते पर उस कार्य में सफलता पाकर ही रहता है।
‘चाह’ पूर्ति की पहली शर्त-मनोवेगों की प्रेरणा और दूसरी शर्त है सन्तोष और सुख। यदि ये दोनों शर्ते पूरी हो जाएँ तो चाह की राह निकल ही आती है।
किसी भी कार्य के बारे में केवल चाहने भर से कुछ नहीं होता। उस काम में पूरा मन लगाकर उसे विधिपूर्वक करना पड़ता है तभी कार्य में सफलता प्राप्त हो पाती है।
निबन्ध नंबर -: 03
जहाँ चाह वहाँ राह
Jaha Chaha Waha Raha
एक घोड़ा ऐसा था जो चाहता तो सब घोड़ों को पछाड़ सकता था। परंतु उसकी समस्या यह थी कि वह चाहता ही नहीं था। मनुष्य में योग्यता हो, शक्ति हो और बाहर से प्रेरणा भी हो, किंतु मन में तीव्र चाह न हो तो सफलता नहीं मिल सकती। मनुष्य की सबसे बड़ी शक्ति है-इच्छा शक्ति। उसी के कारण मनुष्य उत्साहित होता है और उसी के कारण दिन-रात जूझता है। उसका आत्मबल तभी जागता है जब उसके मन में उमंग और तरंग जाग उठती है। अगर मनुष्य में सच्ची लगन हो तो कठिन-से-कठिन काम भी सरल लगने लगते हैं। जिस दिन मनुष्य मन में दृढ़ संकल्प ठान लेता है. उसी दिन से राहें आसान होना शुरू हो जाती हैं। जब वासुदेव के मन में संकल्प जाग गया कि उन्होंने नवजात कन्हैया को यमुना-पार ले जाना है तो उफनती हुई यमुना भी उनका कुछ न बिगाड़ सकी। यह बात सच है कि मन में चाह हो तो कोई-न-कोई रास्ता अवश्य निकल आता है।
Nice essay
Awesome very helpful
Thanks Bhai log
For giving answer
Very useful I love
this essay. Thanks
Thanks yrr
