जब कंप्यूटर से टिकट खरीदा
Jab Computer se Ticket Kharida
अवकाश के दिन बैठे-बिठाए परिवार का फ़िल्म देखने का कार्यक्रम बन गया। किंतु एक तो नई रिलीज, दूसरे टिकट न मिल पाने का डर, उत्साह पर पानी-सा फेर रहा था। तभी मेरा एक मित्र घर आया। हमारी बात जानकर उसने मेरे पिताजी को इंटरनेट से टिकट बुक करवाने की सलाह दी। हमने तुरंत कंप्यूटर पर गूगल सर्च इंजन पर आकर सभी सिनेमाघरों की स्थिति एवं उपलब्ध सीटों का जायजा लिया। हमारी पसंद की फिल्म हमारे आसपास के तीन-चार सिनेमाघरों पर लगी थी, पर कहीं भी पीछे की सीटें उपलब्ध नहीं हो पा रही थीं, साथ ही शो का समय भी हमें रास नहीं आ रहा था। अंततः नौ सीटें पूरे परिवार के लिए शाम के सात बजे के शो की मिल गईं। यद्यपि नेट से बुकिंग करवाने में थोड़ा-सा पैसा ज्यादा लग रहा था, पर फिर भी हमने अपने पापा के क्रेडिट कार्ड से भुगतान कर ही दिया। पापा ने भी कुछ नहीं कहा। आखिरकार घर बैठे ही बैठे हमने सिनेमा की टिकटें खरीद ली थीं। अगर हम चलकर सिनेमाघर जाते तो पैसा खर्च होने के साथ-साथ समय भी नष्ट होता। फिर कई सारे सिनेमाघरों के चक्कर काटने से थकावट भी होती एवं फ़िल्म देखने का मजा भी किरकिरा हो सकता था। सच कहूँ तो उस दिन कंप्यूटर से टिकट खरीद पाने के चलते ही हमारा फिल्म देखने का कार्यक्रम सफल हो पाया था।