भारतीय कला
Indian Art
हमारा देश प्रकृति और भौतिक दोनों ही प्रकार से विश्व का एक अद्भुत । एवं अनोखा राष्ट्र है। इस देश की संस्कृति और कला, सभ्यता और आचरण सभी कुछ इसकी इस विशेषता को उच्चकोटि बनाने में सफल और सहायक हैं। हमारे देश की संस्कृति और कला विश्व की एक प्राचीन संस्कृति और कला में से एक है।
हमारे देश की कला-संस्कृति से मोहित हो करके ही विदेशियों ने हमारे देश पर आक्रमण किया। हमारे देश की कला की यह विशेषता रही है कि हमने अपना परम्परा को अपनाते हुए नवीनता का समर्थन भी किया। इस प्रकार से हमारा कलाकृतियाँ आज भी इस रूप में दिखाई पड़ती हैं। हमारी कलाएँ ही इस तथ्य का प्रमाण देती हैं कि हमारे शासक और राष्ट्रनायक भी अपनी संस्कृति और सभ्यता के ही समर्थक और हिमायती रहे हैं। इसके लिए उन्होंने अपने प्राणों की बाजी लगाने में तनिक देर नहीं लगाई। उन्होंने अपने अखण्ड राज-वैभव को मिटाने या धूल-धूसरित होने की तनिक भी चिन्ता नहीं की। इस तरह उन्होंने अपनी कला-संस्कृति की सबसे बढ़कर चिन्ता की।
हम यह देखते हैं कि हमारे देश पर मुसलमानों ने जब आक्रमण किया, तब उनके मन में इस देश की संस्कृति और कला के प्रति एक विशेष आकर्षण की भावना ही तो थी। मुसलमानों के धीरे-धीरे जमते हुए प्रभाव के फलस्वरूप हमारी भारतीय कला ने अपनी प्राचीनता की छाप तो छोड़ी नहीं। इसके साथ-ही-साथ। इसने मुस्लिम संस्कृति और कला को अपनाकर उसे ऐसा अद्भुत रूप दिया कि यह हर विदेशी के लिए एक मनमोहक विषय केन्द्र बन गया। फतेहपुर सीकरी की मनमोहक इमारतें, आगरे का ताजमहल, माण्डू के प्रसिद्ध किले में स्थित हिंडोला महल, जहाज महल, जबलपुर, खजुराहो, उज्जैन, पंचमटी, अजन्ता-एलोरा की गुफा मूर्तियों आदि हमारी भारतीय कला के सर्वोत्तम उदाहरण हैं। यही नहीं हमारे देश के कोने-कोने में बिखरे मंदिरों की कलाकृतियाँ भी हमारी भारतीय कला के अच्छे नमूने हैं।
भारतीय कला के अन्तर्गत आने वाली नृत्य-संगीत, नाटक, साहित्य, प्रदर्शनी, तेल-तमाशे आदि हैं। इनमें से भारतीय नृत्य-कला का प्रभाव भारतीय कला को। अत्यधिक रूप में प्रभावित करने वाला है।
भारतीय नृत्य-कला के अन्तर्गत ताँडव नृत्य की विभिन्न शैलियाँ आज विकसित होकर न केवल विदेशियों को आकर्षित करती हैं, अपितु नृत्य-कला के क्षेत्र में अपना अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान रखती है। कथक नृत्य, भरतनाट्यम, मणिपुर नृत्य, भांगड़ा नृत्य, घुमर गरवानृत्य, नौटंकी आदि भारतीय नृत्य-कला की विशिष्ट कोटियाँ हैं, जो हमें गर्वित और स्वाभिमानी होने का सुअवसर प्रदान करती हैं।
नृत्य और नाटक का परस्पर अभिन्न सम्बन्ध है। नाट्य-नृत्य का विकास इसी आधार पर हुआ है। आज हमारे देश में नाट्य-नृत्य की जितनी कलाएँ विकसित हुई हैं, उतनी अन्यत्र दुर्लभ हैं। नृत्य का नाट्य शिल्प को महत्त्वपूर्ण बनाने में अद्भुत योगदान है। नाट्य-नृत्य के द्वारा हमारे कलाकार हमारे देश की प्राचीन सभ्यता और संस्कृति का ऊँचा और अमर गान गाया करते हैं। इसे विदेशों के अनेकानेक आक्रमणों नै समाप्त करने की अपनी हार स्वीकार कर ली थी। इस तथ्य को किसी शायर ने बड़े ही आकर्षक रूप से व्यक्त किया था-
यूनान-मिस्र, रोमा सब मिट गए जहाँ से,
लेकिन अभी है बाकी नामों निशां हमारा।
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी,
गोकि रहा है, दुश्मन, दौरे जमां हमारा।।
अर्थात् हमारे देश की सभ्यता और संस्कृति विश्व के सर्वाधिक प्राचीन देशों । यूनान, मिस, रोम से कम नहीं थी। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि ये सभी देश अपनी पराधीनता के कारण अपनी-अपनी सभ्यता और संस्कृति को आज खो चुके हैं जबकि हमारे देश की सभ्यता और संस्कृति बार-बार विदेशी आक्रमण के बावजूद भी ज्यों-की-त्यों आकर्षण का केन्द्र बनी हुई है। ऐसा क्यों ? ऐसा इसलिए कि हमारी संस्कृति और विभिन्नता में होती हुई भी जितना एकता का आधार लिए हुए है उतना और कोई संस्कृति कला नहीं ।
हमारी भारतीय कला नकलनवीस न होती हुई भी नकलनवीस से मजबूत है। यहाँ का नागरिक विदेशी खान-पान, रहन-सहन, बोलचाल, दर्शन आदि को अपनाने की कला में जितना तेज और कुशल है। इतनी और कोई विदेशी कला नहीं हो सकती है; उदाहरण के लिए एक भारतीय जितनी साफ और आसानी से विदेशी भाषा को बोल सकता है, अनुकरण कर सकता है और रूप धारण कर सकता है, उतना कोई विदेशी भारतीयता का नकलनवीस नहीं बन सकता है।
संक्षेप में हम कह सकते हैं कि भारतीय कला चाहे वह नृत्यकला, चित्रकला, मूर्तिकला आदि जीवन की कोई भी केला हो, सब की सब अनुपम और अद्भुत हैं। इसके परिणामस्वरूप यह विश्व के आकर्षित करती रही है।