होली : रंगों का त्योहार
Holi : Rango Ka Tyohar
निबंध नंबर : 01
यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि हमारे देश ने त्योहारों की माला पहन रखी है। शायद कोई ऐसी महत्त्वपूर्ण अतिधि हो, जो किसी न किसी त्योहार, पर्व से सम्बन्धित न हो। छोटे-बड़े त्योहारों को लेकर चधां की जाए, तो हमारी सभी तिधियां किसी-न-किसी घटना का ही प्रतीक और स्मृति हैं। दशहरा, रक्षाबन्धन, दीवाली, रामनवमी आदि धार्मिक त्योहारों का अधिक महत्त्व है।
रंगी होली का त्योहार सभी त्योहारों का शिरोमणि त्योहार है। वह त्योहार सभी त्योहारों से अधिक आनन्दवर्द्धक है, प्रेरणादायक एवं उल्लासवर्द्धक भी है। यह त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। होली का त्योहार हर्षोल्लास, एकता और मिलन का प्रतीक है।
हमारे हर एक धार्मिक त्योहार से सम्बन्धित कोई न कोई पौराणिक कथा प्रसिद्ध है। होली के सम्बन्ध में कहा जाता है कि दैत्य-नरेश हिरण्यकश्यप ने अपनी प्रजा को भगवान का नाम न लेने की चेतावनी दे रखी थी। किन्तु उसके पुत्र प्रह्लाद ने अपने पिता की आता न मानी अब पिता के बार-बार समझाने पर भी प्रहलाद न माना, तो उसे मार डालने के अनेक प्रयास किए गए; किन्तु उसका बाल भी बाँका न हुआ। दैत्यराज हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह अग्नि में नहीं जल सकेगी। वह प्रहाद को गोद में लेकर लकड़ियों के ढेर पर वैठ गई। लकड़ियों में आग लगा दी गई। प्रभु की कृपा से वरदान अभिशाप बन गया। होलिका जल गई, मगर प्रहाद को ऑच तक न आई इस दिन की स्मृति में तब से लेकर अब तक हिन्दू फाग से एक दिन पहले होली जलाते हैं।
अधिकाँश भारतीय त्योहार अतुओं से भी सम्बन्धित हैं। होली के अवतर पर कृषकों की फसल पकी हुई होती है। कृषक उसे देखकर खुशी से झूम उठते हैं। वे अपनी फसल की बालों को आग में भूनकर उनके दाने मित्रों व सगे-सम्बन्धियों में बाँटते हैं।
होली के शुभावसर पर प्रत्येक भारतीय प्रसन्न मुद्रा में दिखाई देता है। चारों और रंग और गुलाल का वातावरण दिखाई पड़ता है। मस्त-मालों की टोलियाँ ढोल-मंजीरे वजाती मस्ती में गाती-नाचती दिखाई देती हैं। कही भंग की तरंग, कहीं सुरा की मस्ती में झूमते हुए लोगों के दर्शन होते हैं। होली खुशी का त्योहार है। प्रेम, एकता और त्याग इसके मूल आदर्श हैं।
होली मिलन का त्योहार है, फिर भी इस मौके पर अक्सर लड़ाई-झगड़ा देखने को मिलता है। कारण स्पष्ट है कि कई लोग रंगों के इस त्योहार (होली) का महत्व नहीं समझते। यह त्योहार वैर-भाव मिटाता है, किन्तु इस मौके पर मदिरा और जुए के कारण होली के मूल आदर्शों पर चोट लगती है। इस हर्षोल्लास के त्योहार पर गुब्बारों की मार हर्ष को विषाद में बदल देती है। इसलिए इस अवसर पर कोई काम नहीं करना चाहिए, जिससे रंगों के त्योहार होली के रंग में भंग पर जाए। हाँ, होली का रंग जमाने के लिए नाच-गाने, हास्य, कवि-गोष्ठियां की जाएँ रामलीलाएँ। की जाए। इस अवसर पर मित्रों को आमंत्रित कर होली-मिलन का आयोजन किया जाए।
निबंध नंबर : 02
होली रंगों का त्यौहार
Holi Rango ka Tyohar
भूमिका- प्रकृति सदैव एक ही रंग में अपने सौन्दर्य को नहीं रखती। अनेक ऋतुएँ उसे अनेक रंगों में रंग देती हैं। हमारे देश में कभी बसन्ती रंग में बसन्त पंचमी आती है तो कभी प्रकाश का उत्सव लेकर दीपावली। कभी स्वतन्त्रा दिवस तो कभी गणतन्त्र दिवस की घटा मन को मोह लेती है। रगों का त्यौहार संगीत और नृत्य का त्यौहार होली अपनी ही विशेषता रखता है।
पृष्ठभूमि- होली का आरम्भ कब हुआ, इसके बारे में निश्चय रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। इसके साथ तीन कथाओं का सम्बन्ध है। पहली कथा के अनुसार प्राचीनकाल में हिरण्यकश्यपु नाम का राजा राज करता था।
उसने अपने पत्र प्रहलाद को जला देने की सोची। प्रहलाद ईश्वर भकत था और हिरण्यकश्यपु नास्तिक था। उसकी बहिन होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जल सकती। वह प्रहलाद को गोद में लेकर आग में जा बैठी। पर होलिका जल गई और प्रहलाद बच गया। तभी से यह होली का उत्सव मनाया जाता है। दूसरी कथा मदन दहन की है। सती की मृत्यु के पश्चात् भगवान् शंकर ने अखण्ड समाधि लगा ली। इन्द्र ने शंकर की समाधि को भंग करने के लिए कामदेव को भेजा। वह समाधि तोड़ने में सफल रहा लेकिन शंकर की क्रोध की ज्वाला से स्वयं भस्म हो गया। तीसरी कथा पूतना वध की है। जैसे ही पूतना ने अपना विष भरा स्तन कृष्ण के मुँह में डाला तो कृष्ण ने इनते जोर से स्तन खींचा कि पूतना मर गई।
समय- होली का उत्सव फाल्गुण की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इन दिनों शिशर का अन्त और वसन्त का आरम्भ होने को आता है। किसानों के खेत लहलहाते हैं। सबके हृदय में खुशियां होती हैं। बच्चे महीना पहले ही लकड़ियां इकट्ठी करनी शुरू कर देते हैं और फाल्गुन की पूर्णिमा को लकड़ियों के ढेर को आग लगा देते हैं और यह कल्पना करते हैं कि होलिका जल रही है।
अगले दिन झाग से खेला जाता है। इस दिन को ‘दलेंडी’ भी कहते हैं। उस दिन लोग एक-दूसरे से गले मिलते हैं और पुराने वैर विरोध भुलाते हैं। चारों ओर रंग और गुलाल उड़ता दिखाई देता है। बच्चे रंगों की पिचकारी भरकर मारते हैं तो युवक युवतियाँ, नर-नारी सभी आपसी भेदभाव भुलाकर, ऊँच-नीच, अमीर-गरीब आदि के अन्तर को भूलकर एक दूसरे पर रंग डालते हैं तथा गुलाल लगाते हैं। लोगों की टोलियाँ गली से गाती, नाचती, ढोल-मंजीर बजाती निकलती हैं ।वृंदावन की होली तो देखने योग्य है। कहते हैं कि कृष्ण गौ और गोपियों से मिलकर होली खेलते थे। यही कारण है कि ब्रज की होली अब भी प्रसिद्ध है।
होली के प्रति हमारा कर्त्तव्य- (प्रेम, एकता तथा सौहार्द ही होली के प्राण हैं। हमें होली मनाते समय इन्हीं आदर्शों को सामने रखना चाहिए। इस मिलन के पुनीत पर्व पर कुछ लोग मदिरापान करके रंगों के स्थान पर कीचड़ आदि का प्रयोग करते हैं जिसके कारण प्रायः झगड़े होते देखे गए हैं। इन पर अंकुश लगाना चाहिए।
उपसंहार- हमारा कर्त्तव्य है कि हम प्रत्येक त्योहार को मनाते समय उसके आदर्शों के अनुरूप ही आचरण करें। यह त्योहार बहुत ही पवित्र है जो ननद-भाभी में, दो साखियों या मित्रों में खुलकर खेला जाता है। होली अवसर पर जिस प्रकार लोग एक-दूसरे के गले मिलते है, उससे ऊंच-नीच, छूआ-छूत तथा शत्रुता एवं अलगाव भी भावनाएँ स्वतः दूर हो जाती है।