गुरु तेग बहादुर
Guru Teg Bahadur Ji
भूमिका- भारतीय संस्कृति अपनी अनेक विशेषताओं के कारण इतिहास में उच्च स्थान बनाए हुए है। इस संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता है कि दूसरों के दुःख में दुःखी होना- भागीदार बनना। हमारे महान पुरुषों ने अपना जीवन ही दूसरों के दुखों को दूर करने में लगा दिया। महात्मा बुद्ध, महात्मा गांधी, पं० जवाहर लाल नेहरु, गुरू गोबिन्द सिंह, भगत सिंह, गुरू नानक देव, राजगुरू इन सबका जीवन अपने लिए नहीं अपितु दूसरों के लिए था। गुरू तेगबहादुर जी का बलिदान तो सबको स्मरणीय है। मुसलमानों के अत्यासों से पीड़ित भारतवासियों को मुक्ति दिलाने। के लिए सिक्ख गुरुओं का बलिदान अविस्मरणीय है। गरू तेग बहादर जी का त्याग और बलिदान हमारे इतिहास का एक गौरवशाली और अमिट अध्याय है।
परिस्थितियां- भारत के वीर सपूत, सिक्खों के नौवें गुरू गुरू तेग बहादुर का जब आगमन हुआ उस समय औरंगजेब का शासन xधरम की दृष्टि में वह बड़ा कट्टर और संकीर्ण विचारों का था। लोग उसके अत्याचारों से तंग आ चुके थे। ऐसे समय में जाति को देश को, धर्म को बचाने के लिए गुरू तेगबहादुर जी ने अपने प्राणों का बलिदान दिया।
जीवन- गुरू तेगबहादुर जी का जन्म सिक्खों के आठवें गुरू श्री हरगोबिन्द जी के घर अमृतसर में 1621 ई० में हआ। गुरू तेग बहादुर जी अपने पाँचों भाईयों में सबसे छोटे थे। गुरू तेग बहादुर जी आध्यात्मिक रंग में रंगे होने के कारण, इनके पिता जी इन्हें गद्दी पर बैठाने का कोई विचार न रखते थे। गुरू जी ने सिर्फ इतना इशारा अवश्य किया था कि मेरी गद्दी पर बैठने वाला बाबा बकाला में है। गुरू जी के चोला छोड़ने के बाद सभी गद्दी पाना चाहते थे। गुरू जी को ढूंढना कोई आसान काम नहीं था। मक्खन शाह लभाणा एक व्यापारी था जिसने गुरू के समक्ष 500 मोहरें चढ़ाने की मन्नत की थी। अन्य बने हुए गुरूओं की तरह जब गुरू तेग बहादुर के समुख दो मोहरे रखी तो गुरू जी ने तुरन्त कहा कि तुमने तो गुरू को 500 मोहरें चढ़ाने की मन्नत की थी। यह सुनते ही लवाणा प्रसन्नता से झूम उठा और छत पर चढ़कर घोषणा कर दी- गुरू मिल गया है।
गुरू तेग बहादुर जी ने गद्दी पर बैठते ही सिक्खों का संगठन किया। आनन्दपुर नाम का स्थान बसाया। पटना में गुरू तेग बहादुर जी के घर गुरू गोबिन्द सिंह जी का जन्म हुआ। औरंगजेब के अत्याचारों से तंग आकार कुछ कश्मीरी ब्राह्मण गुरू जी की शरण में आए। गुरू जी ने कहा कि इस समय किसी महान व्यक्ति के बलिदान की आवश्यकता है। इन शब्दों को सुनते ही पास ही खेल रहे नौ वर्ष के बालक गोबिन्द राय ने कहा कि आपसे बढ़ कर महान् व्यक्ति कौन हो सकता है। गुरू तेग बहादुर जी ने कश्मीरी ब्राह्मणों को कहा, “कि जाकर औरंगजेब से कह दो, अगर गुरू तेग बहादुर इस्लाम धर्म स्वीकार कर ले, तो हम भी मुस्लमान हो जाएंगे।” औरंगजेब ने गुरू जी को गिरफ्तार कर लिया। गुरू जी को यातनाएं दी गईं। आखिर 21 नवम्बर, 1675 को गुरू जी ने अपना बलिदान दे दिया।
सिद्धान्त- जैसे दलहीज पर रखा दीपक अन्दर और बाहर दोनों तरफ रौशनी करता है, उसी तरह से परमात्मा का नाम लेने वाला व्यक्ति अन्दर और बाहर दोनों तरफ से प्रकाशित होता है। गुरू पाखण्ड के विरोधी थे। बाहर के आडम्बरों के विरोधी थे। तिलक, जनेऊ और माला के विरोधी थे। गुरू जी सच्चे अर्थों में तेजस्वी, महात्मा और देशभक्त थे। अभिमान और छल से रहित थे।
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