गुरुपर्व
Guru Parv
हिन्दू धर्म तथा हिन्दुस्तान की रक्षा करने वाले सच्चे सिपाही श्री गुरू गोबिन्द सिंह जी सिक्ख धर्म के अन्तिम तथा दसवें गुरू थे। वे एक महान वीर, शूरवीर और तेजस्वी नेता थे। उनका जन्म 22 दिसम्बर, 1666 को पटना में हुआ था। आज गुरू गोबिन्द सिंह का जन्म-पर्व के रूप में मनाया गया। जन्म दिवस से कई दिन पूर्व प्रभात फेरियों का आयोजन किया जाता है। प्रातः की प्रभात फेरी की शोभा ही निराली थी। गुरुवाणी का जाप करती हुई साधसंगत मुख्य गलियों और बाजारों में से होती हुई पुन: गुरुद्वारे में पहुंची। रास्ते में लोग नतमस्तक होकर प्रभात फेरी का स्वागत कर रहे थे और पुष्षों की वर्षा हो रही थी। मार्ग में प्रभात फेरी का जितना भव्य स्वागत किया गया, वह मेरे लिए तो अभूतपूर्व था। इस स्वागत को देखकर लोगों ने गुरुओं के प्रति अपार श्रद्धा एवं भक्ति की असीम सीमा आँखों के सामने नृत्य करने लगती है, उधर गुरुद्वारों में सारा दिन कीर्तन, भजन, गुरुवानी का पाठ आदि चलता रहा। आने वाली संगतों के लिए प्रात: से लेकर देर रात तक गुरू का अटूट लंगर चलता रहा। लंगर में उपलब्ध भोजन किसी भी उत्तम भोजन से कम नहीं था। लंगर हाल में पगंत में बैठकर भोजन करने का आनन्द अनुभव किया। अमीर, गरीब, ऊँच-नीच का कोई भेदभाव न था। सभी मिलकर भोजन पका रहे थे और खिलाने वाले सभी को मिलकर खिला रहे थे ( गुरुपर्व की सबसे बड़ी विशेषता तो गुरुवाणी का पाठ और संकीर्तन था। कीर्तन और वाणी से जो आनन्द मिलता है उसका शब्दों में वर्णन करना बडा कठिन है। इन्हें सुनकर मन को अपूर्व शान्ति मिलती है। इससे प्रभावित होकर मैंने प्रतिदिन सुबह गुरुद्वारे में जाने का निश्चय किया है।