गुरुनानक देव जी
Guru Nanak Dev Ji
निबंध नंबर :- 01
गुरुनानक देव सिक्ख धर्म के प्रथम गुरु हैं। गुरुनानक जी का जन्म लाहौर (पाकिस्तान) से 35 मील दूर तलवण्डी नाम गाँव में सन् 1523 ई. को कार्तिक पूर्णिमा को हुआ था। इस गाँव का नाम अब ‘ननकाना साहब’ हो गया है।
गुरुनानक जी के पिता का नाम कालूराम पटवारी तथा माता का नाम तृप्ता देवी था। गुरुनानक देव जी बचपन से ही भक्ति में लीन थे। तथा भगवान की भक्ति करते रहते थे। वह हमेशा साधु सन्तों की संगति में रहते थे तथा प्रभु भजन करते रहते हैं। वह बहुत दयालु भी थे तथा हमेशा असहायों की सहायता करते थे।
नानक जी का हृदय दयालुता से भरा हुआ था। एक बार नानक देव गर्मी के मौसम में जंगल में विश्राम कर रहे थे और एक नाग अपने फन से नानक देव पर छाया किए हुए था। जब गाँव के मुखिया ने यह सब देखा तो वह समझ गए कि यह एक दिव्य पुरुष हैं। एक बार नानक के पिता ने उन्हें सौदा करने के लिए पैसे दिए तो उन्होंने उस पैसे से सोदा करने की बजाएसारा पैसा साधु सन्तों की सेवा में खर्च कर दिया और कहा कि मैंने सच्चा सौदा किया है। वह हमेशा साधुओं की संगति में रहते थे।
19 वर्ष की आयु में इनका विवाह मूलाराम पटवारी की बेटी से हुआ। इनके दो पुत्र थे। इनका मन गृहस्थी में नहीं लगा और यह गृहस्थी का त्याग करके प्रभु भक्ति के मार्ग पर चले गए। गुरु नानक जी समाज की बुराइयों को दूर करना चाहते थे तथा दीन-दुखियों की सेवा करना चाहते थे। वह बहुत दयालु थे। नानक देव जी मूर्ति पूजा के विरोधी थे तथा एक ही ईश्वर में विश्वास रखते थे।
नानक देवी जी जाति-पाति के भेदभाव को नहीं मानते थे। इन्होंने ग्रन्थ साहब की रचना की जो कि गुरुमुखी भाषा में है व भजन हिन्दी भाषा में है। गुरु नानक देव जी 70 वर्ष की आयु में मगसिर की दशमी 1596 में परमात्मा में समा गए।
निबंध नंबर :- 02
गुरू नानक देव जी
Guru Nanak Dev Ji
भूमिका- सूर्य का ताप जब जल स्रोतों को सुखा देता है। धरा पर मानव और पशु-पक्षी सभी व्याकुल हो जाते हैं। तब वर्षा इन को संताप से राहत दिलाती है। इसी प्रकार जब जनता अन्याय और अत्याचार की चक्की में पिसने लगती है तो इस चक्की की गति को स्थिर करने के लिए कोई महामानव जन्म लेता है। जिस समय मुस्लमानआततायी के अत्याचार से भारतीय जनता पीड़ित थी। धर्म आडम्बर और पाखंड का बोलबाला था। उस समय सिक्ख धर्म के प्रवर्तक आदि गुरू महामानव गुरू नानक देव जी का जन्म हुआ।
जीवन परिचय- गुरू नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल, सन् 1469 में राए भोए की तलवंडी ननकाना साहिब नामक गाँव में हुआ। आजकल यह स्थान पाकिस्तान में है। पिता का नाम मेहता कालूराम और माता का नाम तृप्ता था। पिता जी गांव के पटवारी थे। नानक की एक बहन भी थी जिसका नाम नानकी था। कहा जाता है कि जन्म से ही नवजात शिशु हंसने लगा और ज्योतषी ने भविष्यवाणी की यह बालक हिन्दू और मुस्लमान दोनों का पथप्रदर्शक और पूजनीय होगा। पाँच वर्ष की आयु में जब उन्हें लौकिक शिक्षा दी जाने लगी तो अपने आध्यात्मिक ज्ञान से उन्होंने सभी को चकित कर दिया।
ईश्वर पर श्रद्धा- गुरू नानक देव जी की बचपन से ही ईश्वर में श्रद्धा थी। वे सदा भक्ति में लीन रहते थे। कोई भी शिक्षक उन्हें पढ़ा नहीं सका। संसारिक पढ़ाई में गुरू नानक देव जी की रुचि नहीं थी।
पिता ने उन्हें खेती और व्यापार करने की सलाह दी, किन्तु यहाँ भी वह संसारिक दृष्टिकोण से असफल हो गए। इस प्रकार पिता जी निराश हो गए। उनकी बहिन उन्हें अपने साथ सल्तानपुर ले गई और दौलत खां के मोदीखाने में राशन तोलने की नौकरी दिलवाई। वहाँ भी नानक “तैरा-तैरा” (सब कुछ ईश्वर का) के चक्कर में पड़े रहे । यहाँ से उन्होंने नौकरी छोड़ दी।
वैवाहिक जीवन- उन्नीस वर्ष की अवस्था में उनका विवाह बटाला के खत्री मूल चन्द की पुत्री सुलक्खनी से हुआ। उनके दो लड़के श्री चन्द और लक्ष्मी चन्द भी हुए। फिर भी उनका मन संसारिक मोह-पाशों में नहीं बन्धा। मानव जाति को ज्ञान का मार्ग दिखाने के लिए देश-विदेश भ्रमण के लिए निकल पड़े। कहते हैं कि वेई नदी के किनारे उन्हें ज्ञान प्राप्ति मिली।
समाज सुधारक- गुरू नानक देव जी एक समाज सुधारक थे। उन्होंने अपना सारा जीवन जाति भेदभाव और राग द्वेष को मिटाने में लगा दिया। वे सबको परमात्मा की सन्तान मानते थे। दूसरों की सेवा करना ही उनका आदर्श मन्त्र था। छुआछूत, अंधविश्वासों तथा पाखण्डों का उन्होंने खुलकर विरोध किया। एकेश्वरवाद के वे पूरे समर्थक थे। अनेक देशों में जाकर उन्होंने लोगों को प्रेम का पाठ पढ़ाया। वे शान्ति के दूत थे। उनके उपदेशों में ऐसा चमत्कार था किसी भी वर्ग के लोग उनके शिष्य बन जाते थे। उनके उपदेशों की भाषा सीधी सादी और सरल थी। यही कारण था कि उनके उपदेशों को लोग सिर झुका कर स्वीकार करते थे।
भूमिका- जीवन के अन्तिम समय में गुरू नानक देव वेई के किनारे करतारपुर में रहने लगे, जहाँ उन्होंने स्वयं खेती की तथा लोगों को कर्म करने की प्रेरणा दी। गुरू अंगद देव को उन्होंने गुरू गद्दी दी और 7 सितम्बर, 1539 में ज्योति-ज्योत समा गए। गुरू नानक प्रकाश पुंज थे, अलौकिक पुरुष थे और सच्चे अर्थों में महामानव थे।
निबंध नंबर :- 03
गुरु नानक देव जी
Guru Nanak Dev Ji
गुरुनानक देव ऐसे महापुरुष थे जिन्होंने अपने आध्यात्मिक विचारों से समाज को नई दिशा दी और ज्ञान का नया मार्ग दर्शाया। गुरुनानक का जन्म 20 अक्तूबर, 1469 ई० में हिन्दू परिवार में ‘राय भोई की बादी’ नामक स्थान में हुआ था। अब यह स्थान ‘ननकाना साहब’ के नाम से प्रसिद्ध है और पाकिस्तान में है। इनके पिता मेहता कल्याण राय थे जो गाँव के पटवारी थे।
गुरुनानक बचपन से ही चिन्तन में डूबे रहते थे। पिता उनके इस स्वभाव से चिन्तित रहते थे। वह ज्यों-ज्यों बड़े होने लगे, उनका मन साधु-संन्यासियों के साथ अधिक लगने लगा। उन्होंने संस्कृत, फारसी और मुनीमी की शिक्षा घर पर ही प्राप्त की। उनका विवाह 18 वर्ष की उम्र में सुलखणी के साथ कर दिया गया। उनके दो पुत्र हुए। श्रीचन्द बड़े थे और लक्ष्मी दास छोटे थे।
गुरुनानक के बाल्यकाल से ही चमत्कारिक घटनाएँ होने लगी थीं। एक बार वे पशु चराने गए तो वे सो गए तब उनके सिर पर एक साँप न फन फैलाकर उन पर धप नहीं आने दी। एक बार उनके पिता ने उन्हें घर का कुछ सामान लाने भेजा, तो वे साधु-संतों को भोजन कराके खाली हाथ घर लौट आए।
गुरुनानक को ईश्वरीय ज्ञान नदी में स्नान करते समय मिला। उन्हें अनुभव हुआ कि भगवान उनसे मानव जाति का कल्याण करने के लि कह रहे हैं। फिर उन्होंने भक्ति मार्ग अपना लिया और उपदेश देने लग लोग उनके उपदेशों से आकर्षित होकर उनके शिष्य बन गए और उसे अपना गुरु मानने लगे।
गुरुनानक धर्मों के भेदभाव को दूर करके एक ईश्वर की उपासना का प्रचार करने स्थान-स्थान पर जाने लगे। अपनी प्रथम यात्रा में वे कुरुक्षेत्र, हरिद्वार, बनारस, उड़ीसा, बंगाल से होकर असम पहुँचे। वे लोगों में भ्रातृत्व, अपनत्व और प्रेम के भाव भरने लगे। उन्होंने कहा कि सभी मनुष्य समान हैं। जाति के आधार पर मनुष्य-मनुष्य में भेद नहीं करना चाहिए। उन्होंने हिन्दू और मुसलमानों को निकट लाने का कार्य किया।
उन्होंने समझाया कि ईश्वर के प्रति सच्ची श्रद्धा ही सबसे बड़ी भक्ति है। उनके विचारानुसार मानव-सेवा ईश्वर की सेवा है। उन्होंने अहंकार त्यागने का संदेश दिया और कहा कि मनुष्य को स्वार्थी नहीं होना चाहिए। उन्होंने ईश्वर को ‘एक ओंकार’ करतार, अकाल, सत्य, प्रिय और निरंजन की संज्ञा दी थी।
गुरुनानक ने अपना संपूर्ण जीवन मानव-सेवा में लगा दिया था। उन्होंने तत्कालीन समाज को नया रूप देने का सार्थक कार्य किया था। नानक जी ने अपने जीवन का अंतिम समय करतारपुर में व्यतीत किया। भाई लहणा जी उनके परम प्रिय शिष्य थे। उनका निधन 7 सितंबर, 1539 में हुआ था।
गुरुनानक के भक्ति के पद “गुरु ग्रंथ साहब” में संकलित हैं। उनके विचारों के आधार पर ही सिख धर्म की नींव रखी गई थी। आज के हम। सभी के लिए पूजनीय हैं।