ग्रामीण जीवन
Gramin Jeevan
निबंध नंबर:- 01
भूमिका- किसी कवि ने ठीक ही कहा है कि- “है अपना हिन्दुस्तान कहाँ, वह बसा है हमारे गाँवों में”। भारत माता ग्राम वासिनी है। भारत की 80% जनसंख्या गाँवों में निवास करती है। इसीलिए भारत को गाँवों का देश कहा जाता है। गाँव ही भारत की आत्मा है, भारतीय जीवन के दर्पण है और भारतीय संस्कृति के परिचायक हैं। जिस प्रकार आत्मा की स्वस्थ स्थिति पर सारे शरीर की उन्नति निर्भर होती है, उसी प्रकार भारत की उन्नति उसके गाँवों की उन्नति पर निर्भर है। इसीलिए गाँधी जी कहा करते थे कि भारत का हृदय गाँवों में निवास करता है।
गाँवों की सुषमा- भारतीय गाँव प्रकृति की मुक्त कीड़ा स्थली है। प्रकृति की छटा वहाँ चारों ओर बिखरी रहती है तथा प्राकृतिक सुषमा देखते ही बनती है। भारत में छः लाख से अधिक गाँव है। शहरों की संख्या इनके अनुपात में नगण्य है। इन्हीं गाँवों में सेवा और परिश्रम के अवतार तथा जन-जन के अन्न दाता किसान बसते हैं। नगरों की कृत्रिम शोभा तो मनुष्य की उपज है जबकि गाँवों के सौन्दर्य की रचना भगवान ने स्वयं की है।
आज के गाँव- एक समयथा जब भारत के गाँव आत्म निर्भर तथा सम्पन्न थे। वहाँ की धरती सोना उगलती थी तथा चारों ओर सु:ख समृद्धि थी। परन्तु आज गाँवों की दशा वह नहीं है। आज वे रोगों से ग्रस्त है। उनमें शिक्षा का अभाव है। दरिद्रता की साक्षात प्रतिमा है। अन्ध विश्वासों से घिरे हुए हैं। आज के गाँवों में जीवन के लिए आवश्यक सुख सुविधाओं का भी अभाव है। यही कारण है कि ग्रामीण शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं तथा शहरों की जनसंख्या में वृद्धि हो रही है। गाँवों में स्वास्थ्य सेवाओं का भी अभाव है।
दुर्दशा के कारण- भारत के गाँवों की वर्तमान दशा के लिए अंग्रेजी शासन उत्तरदायी है। अंग्रेजों के शोषण के कारण भारतीय कृषि की दशा बिगड़ती चली गई तथा वहाँ के कुटीर उद्योग भी शनैः शनै नष्ट हो गए। जमीदारों और साहूकारों ने किसानों का खूब आर्थिक शोषण किया जिससे किसानों का जीवन अत्यन्त शोचनीय बन गया। गाँवों की दुर्दशा के लिए अशिक्षा तथा अज्ञान भी उत्तरदायी है। भारत के किसान आज भी अन्धविश्वास की दलदल में फंस हुए हैं। मुकदमेबाजी, विवाह, मुंडन जैसे उत्सवों पर अनावश्यक धन खर्च करना तथा ऐसी ही अनेक बुराइयों के कारण किसानों का सेठ साहुकारों से ऋण लेना पड़ता है जो जीवन भर नहीं उतरता तथा उनकी दरिद्रता ला कारण बन जाता है।
वर्षा का अभाव- भारतीय वर्षा भी किसानों के जीवन से खिलवाड़ करने में पीछे नहीं रहती। कभी समय से पूर्व वर्षा, तो कभी अतिवृष्टि और कभी अनावृष्टि। इसके कारण देश के अधिकांश भागों में या तो सूखे की स्थिति बनी रहती है या फिर खड़ी फसलें बाढ़ों के कारण चौपट हो जाती है।
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद गाँवों में सुधार- स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भारत सरकार ने गाँवों की उन्नति की ओर विशेष ध्यान दिया है तथा किसानों के जीवन स्तर को सुधारने के लिए अनेक उपाय किए हैं। गाँव में सहकारी समितियां तथा बैंक स्थापित किए गए जिससे कि किसानों को कम दर पर ऋण उपलब्ध हो सके। जमींदारी प्रथा का उन्मलन कर दिया गया और खेतों की चकबन्दी और सीमा निर्धारित कर दी गई। गाँवों में नए-नए किस्म के बीज, उपकरण तथा खाद आदि का वितरण करवाने के लिए सामुदायिक विकास योजनाएं प्रारम्भ हो गई। हर्ष का विषय यह है कि भारत में सरकारी प्रयासों के कारण हरित क्रान्ति आ गई है। कहाँ तो हम अनाज बाहर से मंगवाते थे और अब विदेशों को निर्यात भी कर रहे हैं। आज के गाँवों में शिक्षा तथा चिकित्सा तथा मनोरंजन की सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही है तथा वहाँ पीने के पानी, सड़कों तथा बिजली की पर्याप्त व्यवस्था की जा रही है।
उपसंहार- भारतीय ग्राम्य जीवन, जो कालान्तर में एक दयनीय स्थिति में पहुंच गया था, अब पुनः आकर्षक बनता नजर आ रहा है। गाँवों की दशा सुधारने के लिए केवल सरकारी उपाय ही पर्याप्त नहीं है। इसके लिए ग्रामीण युवा वर्ग को आगे आना होगा। उन्हें शहरों की ओर पलायन की प्रवृति का त्याग कर गाँवों में ही कुटीर उद्योग लगाकर उदाहरण प्रस्तुत करना होगा। ग्राम्य जीवन की आधार शिला शिक्षा तथा स्वास्थ्य है। ग्रामीण भाईयों को चाहिए कि वे अपने बच्चों को विद्यालय में भेजे तथा उन्हें शिक्षित करें। ग्राम वासियों को प्राचीन रूढ़ियों कुरीतियों तथा कुप्रथाओं का सर्वथा त्याग करना होगा, तभी वे उन्नति कर सकते हैं।
निबंध नंबर:- 02
ग्राम्य जीवन
Gramya Jeevan
भारत ग्राम्य प्रधान देश है। यहाँ 80 प्रतिशत जनसंख्या गाँवों में निवास करती है। गाँधीजी का कहना था कि-“भारत ग्रामों में बसता है।” गाँवों में लोग घास की टूटी-फूटी कच्ची झोपड़ियों में रहते हैं, जबकि शहरों में लोग ऊँची अट्टालिकाओं और भव्य प्रासादों में रहते हैं। फिर भी जीवन का वास्तविक आनंद ग्रामों में ही प्राप्त होता है, शहरों में नहीं।
गाँव के लोग बाहर से अधनंगे, अनाकर्षक और अशिक्षित होते हुए भी हृदय से सीधे-सच्चे और पवित्र होते हैं। गाँव के लोग ईमानदार और अतिथि-सत्कार करने वाले होते हैं। गाँव का जीवन बाहय आडम्बर और छल-कपट आदि से दूर होता है। “सादा जीवन और उच्च विचार” की झलक गाँवों में ही देखने को मिलती है। वे कृत्रिम साधनों से दूर रहते हैं।
ग्रामीण लोग रूखा-सूखा, जो भी मिल जाता है, खा लेते हैं। वे मोटा और सस्ता कपड़ा पहनते हैं। अतिथि का दिल खोलकर स्वागत करते हैं। प्रात:काल से संध्या तक खेतों में परिश्रम करते हैं। वे गाय-भैंस का ताजा दूध पीते हैं और चटनी से रोटी खाकर ही संतोष प्राप्त कर लेते हैं। अत: ग्रामों का जीवन सरल, शांत और आनंदमय है। गाँवों में प्रकृति का शुद्ध रूप देखने को मिलता है। गाँवों के छोटे-छोटे बाग-बगीचे और कच्चे लिपे-पुते घरों में जो आनंद मिलता है, वह शहरों में उपलब्ध नहीं है।
आज गाँवों में जो समस्याएँ मुँह उठाए खड़ी हुई हैं, वे भारत जैसे देश के लिए कलंक की बात हैं। अधिकांश ग्रामीण अशिक्षा, भयंकर रोग, दरिद्रता और अंधविश्वास से ग्रसित हैं। वहाँ के लोग इसी वातावरण में बड़े होते हैं। भारत की सरकार गाँवों की दशा सुधारने के प्रयास कर रही है।
वर्तमान समय में गाँव रूढ़ियों और हानिकारक रीति-रिवाज़ों से ग्रस्त है। किसानों को हमेशा सूदखोर महाजनों के शोषण का शिकार होना पड़ता है। और बढ़ती हुई बेकारी ने ग्रामीणों के जीवन को कुण्ठित और निराशामय बना दिया है। अत: गाँवों के देश भारत की सर्वांगीण उन्नति के लिए उनके बारे में सोचना नितांत आवश्यक है।
वैसे तो सरकारों द्वारा गाँवों को रोगों से मुक्ति दिलाने के अस्पताल खोले जा रहे हैं और अशिक्षा को दूर करने के लिए विद्यालय खोले जा रहे हैं। उनके आर्थिक विकास के लिए गाँवों को जोडा जा रहा है। नलकूप, बिजली, रासायनिक खाद और कृषि सुधार यंत्रों में सुधार किया जा रहा है।
सरकार के इन प्रयत्नों से ग्रामों की दशा में उल्लेखनीय सुधार की है। अब वह दिन दूर नहीं, जब भारत के गाँव पुनः ‘पृथ्वी का स्वर्ग’ स्वाद कहलाएंगे।
निबंध नंबर:- 03
ग्रामीण जीवन
Gramin Jeevan
भारत गाँवों का देश है। आज भी भारत की अधिकांश जनसंख्या गाँवों में रहती है। लोग अपनी परिस्थितियों और आवश्यकताओं के अनुसार शहर, नगर या गाँवों में रहते हैं।
गाँव में रहने में बहुत सुख है। वहाँ व्यक्ति प्रकृति के मध्य रहता है। चारों ओर हरियाली होती है। वहाँ के घर बड़े-बड़े और खले होते हैं। हरीभरी सब्जियों के मखमली खेत मन को मोह लेते हैं। खेत से तोड़कर गन्ना खाने का मज़ा ही कुछ और है। गाँवों में जीवन अपेक्षाकृत सरल है और लोग भोले हैं। गाँव के अधिकतर लोग किसान होते हैं जो खेती-बाडी करते हैं।
गाँव में कारखानों या यातायात का अभाव होता है इसलिये वहाँ प्रदूषण नहीं होता। हवा और वातावरण स्वच्छ होता है। वहाँ अधिक धुआँ, शोर और भीड़-भाड़ नहीं होती। ग्रामों में अपराध का डर भी कम होता है। पर गाँवों में जीवन कई प्रकार से कठिन भी होता है। लोग अपनी जीविका चलाने के लिये कठिन परिश्रम करते हैं।
गांवों में सुख-सुविधाओं का अभाव होता है। वहाँ शिक्षा के लिये पर्याप्त विद्यालयों व महाविद्यालयों की कमी होती है। अच्छे अस्पताल भी नहीं होते।