ग्रीष्म ऋतु
Garmi ki Ritu
वसन्त ऋतु के पश्चात् ग्रीष्म ऋतु या गर्मी के मौसम का आना होता है। इस अन में धरती पावक के समान जलने लगती है। लोगों का घर से बाहर निकल मुश्किल हो जाता है।
ज्येष्ठ तथा आषाढ़ का महीना ग्रीष्म ऋतु का होता है। अंग्रेजी कलेण्डर के अनुसार ये महीने मई और जून के होते हैं।
इस मौसम में सूर्य पृथ्वी के निकट आ जाता है इसलिए उसकी प्रचण्ड किरणें पृथ्वी पर गिरकर पृथ्वीवासियों को व्याकुल करने लगती हैं।
गर्मी की ऋतु में एक तो प्यास बहुत लगती है, दूसरे माथे से और शरीर से पसीना भी काफी निकलता है। शरीर से निकला हुआ पसीना रूमाल या कपड़ों द्वारा सोख लिया जाता है।
लोग गर्मी के प्रकोप से बचने के लिए अपने घरों में कूलर तथा पंखा चलाकर बैठते हैं। फ्रिज में रखी हुई ठण्डी चीजे खाते हैं। आइसक्रीम का सेवन करते हैं तथा शीतल पेय या कोल्डड्रिक्स का भी आनन्द लेते हैं।
ग्रीष्म ऋतु की प्रचण्डता को देखकर कुछ हिन्दी कवियों ने अपने हृदयोद्गार निम्न शब्दों में प्रकट किए हैं:-
“सूखा कंठ, पसीना छूटा, मृगतृष्णा की माया।
झुलसी दृष्टि, अँधेरा दीख, दूर गई वह छाया।।”
(मैथिलीशरण गुप्त, यशोधरा‘ काव्य से)
“किरण नहीं, ये पावक के कण।
जगती धरती पर गिरते हैं।“
(जयशंकर प्रसाद)
“ग्रीष्म तापमय लू की लपटों की दोपहरी।।
झुलसाती किरणों की वर्षों की आ टहरी।।”
(सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला‘)
“स्वेद धूलि कण लू लपट के साथ लिपटकर मिलते हैं।
जिनके तार व्योम से बँधकर ज्वाला ताप उगलते हैं।”
(जयशंकर प्रसाद)
कविवर बिहारीजी ग्रीष्म ऋतु की महानता का वर्णन इन शब्दों में करते हैं:
“कहलाते एकत बसत, अहि-मयूर मृग-बाघ।
जगत तपोवन सों कियो, दीस्य दाघ-निदाघ।।”
अर्थात गर्मी की ऋतु में सब प्राणी आपस के वैर-भाव भुलाकर पास-पास ही पड़े रहते हैं। सर्प और मोर में कितनी जन्म-जात दुश्मनी होती है। और हिरन का बाघ कितना वैरी या दुश्मन होता है फिर भी गर्मी की ऋतु आने पर ये भिन्न-भिन्न प्रकार के जानवर आपस में पास-पास पड़े रहते हैं तथा कभी एक-दूसरे के ऊपर हमला नहीं करते, तब मनुष्यों की तो बात ही क्या है?
गर्मियाँ आने पर शहर और गाँव कस्बे के लोग भी आपस का मनमुटाव तथा वैर भाव भुलाकर पास-पास पड़े रहते हैं। किसी पंखे के नीचे, किसी छायादार वृक्ष के नीचे लेटे रहते हैं और कभी एक-दूसरे से कुछ नहीं कहते। ऐसा लगता है कि गर्मी की ऋतु आने पर सारा संसार भी तपोवन जैसा हो गया हो।
प्राचीन समय में तपोवन अर्थात् ऋषि मुनियों के आश्रम हुआ करते थे। इस प्रकार के तपोवन में शेर और गाय एक घाट (नदी के तट) पर आकर जल पीते थे। किसी भी पशु-पक्षी या मनुष्यों में आपस में वैर नहीं था।
गर्मी की प्रचण्डता मनुष्यों की आपसी दुश्मनी को भुला देती है।
ग्रीष्म ऋतु में हूँ और गर्मी से बचने के लिए लोग केवल सुबह-शाम ही काम करना पसन्द करते हैं क्योंकि उस समय का वायुमण्डल उनके काम करने के अनुकूल होता है।
दोपहरी के समय तो घर से आदमी का निकलना ही दुश्वार हो जाता है और काम करना अत्यन्त कठिन। फिर भी काम करने के आदी मजदूर और किसान लोगों को सिर पर कपड़ा डालकर अपना-अपना काम सँभालना पड़ता है।
विद्यालयों और महाविद्यालयों में इन दिनों विद्यार्थियों की छुट्टी हो जाती है। गर्मी की ऋतु में आम का फल काटकर खाना या आम चूसना लोग काफी पसन्द करते हैं। आम के साथ तरबूज तथा खरबूजा, फालसे, आलूबुखारा, आडू तथा अलूचे आदि फल भी खूब पसन्द किए जाते हैं।
ग्रीष्म ऋतु की गर्मी अनाज को पकाती है तथा आम और तरबूज में मिठास लाती है। इस मौसम में लोग दूध या दही की लस्सी तथा गन्ने का ठण्डा रस भी काफी शौक से पीते हैं।
शरद ऋतु के विपरीत गर्मियों में दिन लम्बे तथा रातें छोटी होती हैं। इस ऋतु की लम्बी तपती दोपहरियाँ आदमी में आलस्य, उदासी, उत्साहहीनता तथा अकर्मण्यता पैदा करती हैं।