Hindi Essay on “Dipawali”, “दीपावली”, for Class 10, Class 12 ,B.A Students and Competitive Examinations.

दीपावली

Dipawali 

 

दीपावली हिंदूओं का एक प्रमुख और पवित्र त्योहार है। यह दीपों का पर्व सारे में मनाया जाता है। भारत के प्रत्येक भाग में रहने वाले हिंदू इस त्योहार को संबंधित पाते हैं। दीपावली का त्योहार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से शुक्ल पक्ष द्वितीया तक बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। बच्चों के लिए पटाखों और मिठाइयों का यह त्योहार सबसे अधिक प्रसन्नतादायक है। वैष्णव- भक्तों के अनुसार इस दिन श्री राम माता सीता के साथ चौदह वर्षों का वनवास पूर्ण कर अयोध्या लौटे थेअतः इसी दिन उनका राज्याभिषेक किया गया। था। इस खुशी में अयोध्यावासियों ने सारे राज्य में दीप जलाये थे। कहा जाता है कि इस दिन राजा विक्रमादित्य का भी राज्याभिषेक-उत्सव संपन्न हुआ था।

 

पश्चिमी भारत के व्यापारिक समुदाय के लिए यह सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण त्योहार है। उनके अनुसार कार्तिक के महीने में नया वर्ष आरंभ होता है। ये व्यापारी इस दिन धन-धान्य की देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं। अपने घरों तथा दुकानों पर रंग-रोगन व सफेदी करवाते हैं। वे लोग इस दिन नया बही-खाता खोलकर नया हिसाब शुरू करते हैं। घरों में चारों ओर दीये जलाये जाते हैं। गरीब- अमीर सब नये वस्त्र धारण करते हैं। तथा मित्रों एवं संबंधियों में मिठाई बांटते हैं। बंगाल में दीपावली पूर्वजों की दिवंगत आत्माओं की रात्रि के प्रारंभ की सूचक है। उन दिवंगत आत्माओं का पथ-प्रदर्शन करने के लिए ऊचे खंबों पर मशालें जलाई जाती हैं।

दीपावली के दिन ही भगवान विष्णु ने नरक नामक असुर का वध किया था। अतः दक्षिण भारत में दीपावली को नरक चतुर्दशी कहा जाता है। कुछ स्थानों पर नरकासुर के पुतले भी जलाए जाते हैं।

भगवान कृष्ण तथा गोवर्धन पर्वत की पूजा भी दीपावली के दिनों में की जाती है। विष्णु-पुराण में ऐसा कहा गया है कि गोकुल के निवासी इंद्र की पूजा में प्रतिवर्ष त्योहार मनाते थे। एक वर्ष उन्होंने इंद्र की पूजा न कर गोवर्धन पर्वत की पूजा की इससे इंद्र कोधित हो गये और पूरे गोकुल को जल-मग्न करने के लिए अतिवृष्टि प्रारंभ कर दीपरंत भगवान कृष्ण ने अपने बायें हाथ की सबसे छोटी अंगुली पर गोवर्धन को छत्र की भाति उठा लिया और सब लोगों तथा पशुओं की रक्षा की।

काशी नगरी में दीपावली के शुभ पर्व पर सूर्योदय के समय लोग अपने शरीर पर नेल लगाकर गंगा में स्नान करते हैं। वे उस परम पावन नदी में पुष्प अर्पित करते हैं। नशा स्त्रियां नदी के किनारों पर दीप जलाती हैं। पवित्र गंगाजल से भगवान विश्वनाथ का भी अभिषेक किया जाता है। काशी में ज्योतिर्लिंग स्थापित है। भगवान विष्णु ने भगवान शिव की पट्टी पर ज्योति-रूप में उपासना की थी। दीपावली के दिन समृद्धि की देवमाता अन्नपूर्णा के दर्शन भी काशी में शुभ माने जाते हैं। तमिलनाडु में चतुर्दशी के दिन सूर्योदय के समय तेल-स्नान किया जाता है। इसे अश्यंग-स्नान-क्रिया कहते हैं। अर्थात् चरण से सिर तक किया गया। स्नानदीपावली के दिन संत तथा विधवा स्त्रियां भी तेल-स्नान करते हैं। यह नरकासुर की इच्छापूर्ति के लिए किया जाता है। क्योंकि वह चाहता था। कि उसकी पराजय सबके द्वारा समान रूप से मनायी जाये।

दीपावली के दिन ही असुरों के राजा बलि के प्रति श्रद्धा-भाव समर्पित किया जाता है। वामनावतार के रूप में भगवान विष्णु ने तीसरा पग रखने के लिए भूमि मांगी तो राजा बलि ने अपना शीश झुका दिया, जिससे भगवान प्रसन्न हुए और उन्होंने यह वरदान दिया कि प्रतिवर्ष वे दीपावली के दिन ईश्वर की परम आनंदमयी सृष्टि में आकर आनंदोत्सव मनायेंयह घटना इस बात की साक्षी है कि एक बार ईश्वर के शरणागत हुए।   की भगवान स्वयं सेवा करते हैं।

संस्कृत शब्द “दीपावली’ का अर्थ है। -दीपों की पंक्तिदीपावली के दिन जलते हुए।   दीपकों की सुंदर पंक्तियां बडी आकर्षक प्रतीत होती हैं। संभवतः इसलिए इसका नाम “दीपावली’ रखा गया है। हम एक दीप से अनेक दीप जला सकते हैं।  परंतु पहले दीप की ज्योति ज्यों की त्यों बनी रहती है। इसी प्रकार प्रेम भी सब हृदयों को प्रकाशित करते हुए। अक्षय बना रहता है।

नरकासुर मनुष्य में छिपी उन प्रवृत्तियों का प्रतीक है। जो उसे अधोगति की तरफ ले जाती हैं।  तथा दीपावली उन प्रवृत्तियों के ऊपर मानव की विजय का सूचक है।

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