दिनों दिन बढ़ती महँगाई
Dino Din badhti Mahangai
आज भारत केवल एक ही भीषण समस्या से जूझ रहा है और वह है, महँगाई महँगाई मूल्यों में निरंतर वृदधि उत्पादन की कमी और माँग की पूर्ति में असमर्थता की परिचायक है। दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भी आप नागरिक संघर्ष कर रहा है, बढ़ती हुई महँगाई सरकार की आर्थिक नीतियों की विफलता का परिणाम है, क्योंकि महँगाई प्रकृति के गुस्से का कारण नहीं अपितु सरकार की बदनीयती और बदइंतजामी की जीती-जागती तस्वीर है। महँगाई के तीन परम मित्र हैं- काला धन, तस्करी और जमाखोरी। सरकार आए दिन किसी भी वस्तु के दाम बढ़ा देती है। जिसके दुष्परिणाम सरकार को बाद में भुगतने पड़ते हैं। बढ़ती महँगाई के कारण आम जनता दिन-प्रतिदिन पिस रही है। वह रोजमर्रा की वस्तुएँ भी नहीं जुटा पाती है। पहले तो केवल बजट के बाद ही कीमतें बढ़ती थीं लेकिन अब तो सरकार हर माह किसी भी वस्तु की कीमत बढ़ा देती है। इस महँगाई के कारण पौष्टिक आहार तो अब स्वप्न-सा प्रतीत होता है। सरकार भी कीमतों पर नियंत्रण नहीं कर पा रही है। इस बढ़ती हुई महँगाई के कारण समाज में अपराध बढ़ रहे हैं, आए दिन चोरी-चकारी, मार-काट बढ़ रहे हैं। महँगाई रोकने के चार उपाय हैं-
1. कर चोरी को रोकना,
2. राष्ट्रीयकृत उद्योगों के प्रबंध तथा संचालन में तीव्र कुशलता,
3. सरकारी खर्चे में योजनाबद्ध रूप से कमी का आह्वान,
4. माँग के अनुसार उत्पादन का प्रयत्न।
महँगाई की अभिव्यक्ति में प्रचलित है:-
सैया तो बहुत ही कमात हैं महँगाई डायन खाए जात है।
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