Hindi Essay on “Dahej Pratha Ek Samajik Kalank”, “दहेजप्रथा – एक सामाजिक कलंक”, Hindi Nibandh for Class 10, Class 12 ,B.A Students and Competitive Examinations.

दहेजप्रथा – एक सामाजिक कलंक

Dahej Pratha Ek Samajik Kalank

 

आज हमारे विकासशील देश के सामने अनेक समस्याएँ हैं। यहाँ जितने धर्म-सम्प्रदाय हैं उतनी ही उनकी प्रथाएँ हैं। यदि हम इन प्रथाओं के उद्भव तथा विकास का अध्ययन करें तो पता चलता है कि इन प्रचलित प्रथाओं के पीछे कोई न कोई कारण अवश्य रहा होता है। लेकिन बाद में ये प्रथाएँ रूढ़ि बन जाती हैं जिनसे मुक्ति पाना असम्भव-सा हो जाता है। कुछ प्रथाएँ तो हमारी संस्कृति की धरोहर हैं तथा कुछ प्रथाएँ तो हमारे समाज के लिए कलंक बन गई हैं। उन्हीं प्रथाओं में एक प्रथा है-दहेज-प्रथा, जोकि हमारे समाज के लिए एक प्रमुख समस्या बन गई है। कन्या पक्ष की ओर से वर पक्ष को दान अथवा उपहार के रूप में जो वस्तुएँ दी जाती हैं उसे ‘दहेज’ कहा जाता है।

भारत में यह प्रथा प्राचीनकाल से ही प्रचलित है। प्राचीनकाल में राजा-महाराजा अपनी पुत्री को सभी सुविधाएँ उपलब्ध करवाने के लिए दहेज देते थे। बाद में यह प्रथा ही बन गई। छोटे-बड़े सभी लोग दहेज देने लगे और अब यही प्रथा समस्या बन गई है।

प्राचीन काल में यह प्रथा वरदान थी। माता-पिता अपनी बेटी को जो भी वस्तुएँ उपहार स्वरूप दे देते थे, वह लड़की नए घर से परिचित होने तक उन वस्तुओं का प्रयोग कर लेती थी। इसका उद्देश्य सफल वैवाहिक जीवन जीने का था, परन्तु आज के मनुष्य ने दहेज को एक मजबूरी बना दिया है।

आज के समय में दहेज प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है। घर में बेटी के जन्म से ही गरीब माता-पिता को दहेज के लिए धन जोड़ना पड़ता है ताकि कल को उनकी बेटी के विवाह के समय उन्हें अपमानित न होना पड़े। प्रत्येक माता-पिता अपनी बेटी के लिए अच्छा वर ढूँढ़ना चाहते हैं। अच्छे वर के लिए धन की आवश्यकता होती है जिन लोगों के पास धन का अभाव होता है उन लोगों को कर्ज लेना पड़ता है। कर्ज नहीं मिलने पर उन्हें अयोग्य वर प्राप्त होता है। जिससे कि लड़की का जीवन जोखिम में पड़ जाता है। दहेज न लाने वाली लड़की को ससुराल में प्रतिदिन परेशान किया जाता है जैसा कि हम लोग हर रोज अख़बार में पढ़ते हैं-नवविवाहिता की मिट्टी का तेल छिड़क कर हत्या कर दी गई। युवती द्वारा छत से कूदकर हत्या, दहेज से तंग आकर एक महिला ने जहर खा लिया या खुद को फांसी पर लटका लिया आदि-आदि। इन सभी दुर्घटनाओं का कारण दहेज का लालच ही है जोकि इंसान को हैवान बना देता है।

सभी लोग मानते हैं कि दहेज-प्रथा अब एक सामाजिक बुराई बन गई है। इस सामाजिक बुराई को रोकने के लिए समय-समय पर कानून बनाए गए हैं तथा उनमें संशोधन किए गए हैं। लेकिन फिर भी इसका कोई उचित परिणाम नहीं निकलता। इस प्रथा को रोकने के लिए ‘दहेज निषेध अधिनियम’ पारित किया गया। महिलाओं को पैतृक सम्पत्ति में अधिकार भी दिया गया। समय-समय पर इस बुराई से मुक्ति पाने के लिए अनेकों भाषणों का आयोजन किया गया। प्रतिज्ञा पत्रों पर हस्ताक्षर किए गए परन्तु इन कानूनों और भाषणों आदि का इस कुप्रथा को रोकने पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा और इस समस्या से मुक्ति नहीं मिल पाई। इस समस्या को रोकने के लिए सभी को जागरूक होना होगा।

‘दहेज निषेध अधिनियम’ के अनसार दहेज देने या लेने वाला या इसके लिए प्रोत्साहित करने वाला व्यक्ति दण्ड का अधिकारी है। ऐसे व्यक्ति के लिए दण्ड के रूप में छह महीने का कारावास तथा पाँच हजार रुपए जुर्माना या दोनों दण्ड देने का प्रावधान है।

आवश्यकता इस बात की है कि इस कुप्रथा के विरुद्ध सभी लोगों को जागरूक किया जाए। खासतौर से युवकों को इस बारे में जागरूक होना चाहिए कि इसके क्या-क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं। अन्तर्जातीय विवाह सम्बन्धों को बढ़ावा देना चाहिए। महिलाओं का शिक्षित होना सबसे अधिक जरूरी है ताकि वे आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो सकें तथा दहेज प्रथा के खिलाफ आवाज उठा सकें। तभी हम एक स्वस्थ और सुंदर समाज की कल्पना को साकार कर सकते हैं।

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