दहेज एक गंभीर समस्या
Dahej ek Gambhir Samasya
हमारे समाज में जिस तरह भ्रष्टाचार और व्यभिचार एक समस्या है, आतंकवाद और साम्प्रदायिकता एक समस्या है, उसी प्रकार दहेज भी हमारे लिए एक समस्या बन गया है।
दहेज-प्रथा आज के समाज की एक साधारण समस्या नहीं बल्कि यह एक ज्वलन्त एवं विकट समस्या है। दहेज की समस्या विवाह का एक जटिल प्रश्न है। यह एक ऐसी उलझन है, जिसका निराकरण वर्षों से आज तक नहीं हो पाया है।
पहले स्त्री-पुरुष का विवाह दो आत्माओं का मंगल मिलन माना जाता था लेकिन आज कल तो विवाह एक समझौता या इकरारनामा होकर रह गया है। पहले विवाह के जरिए वर पक्ष तथा वधू पक्ष के परिवार आपस में मिलते थे। मेल-मिलाप होता था। लेकिन आजकल तो विवाहों में अक्सर करके सौदेबाजियाँ होने लगी हैं। इसके लिए पहले एक मध्यस्थ या बिचौलिये को चुना जाता है। उसके जरिए दहेज के लेन-देन की सारी बातें पहले ही तय कर ली जाती हैं। लड़के का पिता देखता है-यदि उसे दहेज की वांछित रकम कन्यापक्ष के लोगों से प्राप्त हो रही है या प्राप्त होने की सम्भावना है तो वह अपने पुत्र की शादी की रजामन्दी देगा अथवा नहीं।
इधर कन्या का पिता भी देखता है कि लड़का पढ़ा-लिखा है, अपने पैरों पर खड़ा है तो थोड़ा-बहुत ज्यादा दहेज देने में कोई हानि नहीं है। कम-से-कम उसकी लड़की ससुराल में सुख से तो रहेगी और यदि ससुराल वालों को अच्छा दहेज़ दे दिया तो वे उसकी पुत्री का ध्यान रखेंगे।
इस सबके बावजूद दहेज लेने और देने की एक प्रथा-सी बन जाती है। समाज में मान प्रतिष्ठा का एक पैमाना दहेज की रकम भी हो चली है। यदि लडकी का पिता एक लाख से ऊपर दहेज देता है तो समाज के समाज के लोग उसे खास इज्जत से देखते हैं। आजकल पचास-साठ हजार रुपए का दहेज देने रेज देने वाले कन्या के पिता को किसी गिनती में नहीं रखा जाता है। चाहे उसकी कन्या पढ़ी-लिखी, सुशील और व्यवहारकुशल है लेकिन दहेज की हल्की रकम के आगे लडके वालों को लड़की की सारी योग्यता, क्षमता और कलाएँ फीकी लगने लगती हैं तथा उन्हें उल्टे लड़की के अन्दर दोष नजर आने लगते हैं।
शादी-ब्याह में आजकल दहेज तथा शादी के अन्य खर्च आदि का ? होने लगा है। शादी में वधू पक्ष कुल कितना खर्चा करेगा-यह पहले से ही तय हो। जाता है। आजकल तो वर का पिता कन्या के पिता से कुल खर्चे की इकट्ठी रकम ले लेता है। जिस तरह अब तक लड़के का पिता बारात लेकर लड़की के दरवाजे पर जाता था, उसी तरह अब लड़की का पिता बारात लेकर लड़के के शहर जाता है तथा लड़के वालों द्वारा निर्धारित होटल या धर्मशाला में अपनी बारात रुकाता है। चार-पाँच लाख रुपये लड़की के पिता की तरफ से पहले ही दे दिए जाते हैं। शादी का बाकी सारा खर्चा लड़के का पिता उसी धन में से उठाता है। साधारण परिवार का व्यक्ति एक या डेढ़ लाख की रकम दहेज के रूप में देता है।
इस चलन में लड़के का पिता कन्या पक्ष के लोगों का शोषण भी करता है। वह एक साथ मोटी रकम लेकर लड़की वालों को हर बात में अँगूठा दिखाता रहता है। उस धन में से न तो वधू के लिए ठीक ढंग के गहने लत्ते खरीदे जाते हैं, न कोई अन्य सामान और न लड़की वालों की ठीक खातिरी ही की जाती है।
कन्या के पिता का केवल दहेज की मोटी रकम देकर ही पीछा नहीं छूटता। विवाह के बाद भी अनेक तीज-त्योहार तथा उत्सवों के मौकों पर उसे डिब्बे भर-भरकर मिठाइयों के पैकेट तथा सास-ससुर व दामाद को दक्षिणा की उपयुक्त राशि भिजवानी पड़ती है अन्यथा लड़की के पति था सास-ससुर के कुपित हो। जाने का खतरा बना रहता है और यदि दुर्भाग्यवश सास-ससुर कुपित हो गए । तो वधू के लिए भरी-पूरी ससुराल नर्क जैसी कष्टकारी हो जाती है।
दहेज की समस्या के दो उपाय विद्वानों ने सुझाए हैं-(i) प्रेमविवाह-इस विवाह में दहेज की बजाय दुल्हिन को ही सम्पूर्ण दहेज के रूप में स्वीकारा जाता है, तथा (i) विवाह सम्बन्धों की पावित्र्य भावना रखना। इस भावना में लड़के व लड़की के पिता-दोनों सन्तुष्ट रहते हैं। पुत्री का पिता उपहार रूप में जो कुछ सामान या धने । आदि पुत्री के साथ दे देता है-उसे वर पक्ष के लोग खुशी-खुशी स्वीकार कर लेते हैं।