कॉलेजों में फैशन का बढ़ता प्रभाव
Colleges me Fashion ka Badhta Prabhav
किशोरवस्था की दहलीज पार करके युवा कॉलेज में प्रवेश लेता है। किशोर जोकि युवा अवस्था में प्रवेश करने ही वाला होता है, इसके साथ ही नए माहौल में प्रवेश करता है। यह नया माहौल उसके शिक्षा ग्रहण करने की नई जगह होती है, जिसको कॉलेज कहा जाता है। कॉलेज एक ऐसी जगह है, जहाँ पर जाने के लिए सभी युवा लालायित रहते हैं। कॉलेज उनके लिए ऐसा स्वतंत्र वातावरण है, जहाँ पर उन्हें कोई भी रोकने-टोकने वाला नहीं है। कॉलेज में सर्वप्रथम जो बात किशोर-किशोरियों को प्रभावित करती है वह है उनका पहनावा क्योंकि किशोर-किशोरी अभी तक व्यस्क या पूर्ण रूप से युवक-युवती नहीं बने होते हैं। इसलिए उन का संवेदनशील मन बहुत जल्द कपड़ों जैसी बाहरी वस्तुओं से प्रभावित हो जाता है।
अच्छे कपड़े पहनना नि:संदेह एक गर्व की बात है, परन्तु अपना सारा ध्यान सिर्फ कपड़ों पर ही लगा देना वस्तुतः गलत है। यही गलत काम कॉलेज परिसर में धड़ल्ले से हो रहा है। आज कॉलेज परिसर में वस्त्र और फैशन से संबंधित जितनी भी वस्तुएँ हैं जैसे- जूते, चश्में, टाई, बेल्ट और पर्स आदि सभी कुछ फैशनेवल हो गए हैं। इन सब चीजों को बनाने वाले उद्योग – तो पैसा कमा ही रहें हैं और साथ ही बच्चे का मन भी चंचल कर रहे हैं। आज कॉलेज में जाते हुए हर किशोर-किशोरी का अधिकतर ध्यान इन सभी चीजों की तरफ है। अपवाद तो सिर्फ वे ही बच्चे हैं जिनका ध्यान सिर्फ पढ़ाई में है। लेकिन उनकी संख्या बहत ही कम है। वैसे तो अपने आप को सुसज्जित करने, संवारने में कोई बुराई नहीं है, परन्तु अपनी आयु के ही हिसाब से हमें अपने को संवारना संभालना चाहिए। अब यदि कोई किशारी लाल रंग की लाली का प्रयोग करे तो यह कितना अजीब लगेगा। यदि कोई किशोर अपने बालों को लम्बा करके चटिया बना ले तो कितना हास्यास्पद लगेगा। आज हम यदि ध्यान से सोचे तो वो सारे फैशन, जो हमने देखे हैं या देखते हैं वे सारे आंतरिक रूप से किशोर-किशोरियों के चंचल मन को दर्शाते हैं। हालांकि अपने हृदय के किसी न किसी कोने में उनको भी शायद यह आभास जरूर होता होगा कि वो क्या और कितना सही कर रहे हैं? सर्वप्रथम अभिभावक या शिक्षक जब भी कॉलेज जाती हुई किशोरियों को देखते हैं तो वे उन्हें एक विद्यार्थी ही समझते हैं और यही विद्यार्थी समझना उनका गौरव भी है। यदि किसी के जीवन में यह गौरव या बाधा नहीं है मतलब यदि कोई कॉलेज ही नहीं गया तो निश्चय ही उसने जीवन के । सबसे प्यारे रंगों को खोया है अथवा कभी देखा ही नहीं।
कॉलेज जीवन का सबसे सम्मोहक काल होता है। जहाँ मन तरंगों मे परिपूर्ण होता है और अपने आप को हवा में विचरण करता हुआ पाता है। यह जीवन कितना आनंदमय हो सकता है इसका पता हमें कॉलेज जाकर ही चलता है। इसलिए इतनी सारी बातों की वजह से हमारे किशोर-किशोरी फैशन करते हैं। ताकि इसके जरिए वे इस स्वर्णिम काल का ज्यादा से ज्यादा लाभ उठा सकें। लेकिन इन सब तथ्यों के बाद भी नि:संदेह कुछ सावधानियाँ बरतने की आवश्यकता है।
कॉलेज के विद्यार्थियों में फैशन के प्रति अधिकाधिक ध्यान देने की प्रवृत्ति निरंतर बढ़ रही है। गरीब विद्यार्थी इसके अपवाद हैं, शेष के संबंध में कहा जा सकता है कि अधिकतर विद्यार्थी फैशन को अपने जीवन का आवश्यक अंश मानते हुए, स्वयं को अप-डेट तथा आधुनिक बनाए रखते हैं। कभी-कभी ऐसा भी देखने में आता है कि वे फैशन से भी आगे निकल जाते हैं। फैशन का विद्यार्थियों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। कॉलेज परिसर में सभी विद्यार्थी फैश्न के रंग में रंगे दृष्टिगत होते हैं।
रंग-बिरंगे वस्त्रों में किशोरों को देखा जा सकता है। वहीं दूसरे के वस्त्रों के संबंध में दृष्टि तथा अति जागरूकता उनकी विशेषता है। वस्त्रों की किस्म और डिजाइन में वे एक-दूसरे से बढ़कर हैं। जिनके सूट उन पर सही जंचते उनकी टाई उनके सूट पर नहीं जंचती। इस संबंध में आलोचनापूर्ण टिप्पणियाँ की जाती हैं। चित्ताकर्षक तथा ठीक कपड़ों को पहनने वाले को भी ईर्ष्या की दृष्टि से देखा जाता है। उनका उद्देश्य अपने सहपाठियों तथा अध्यापक को प्रभावित करना है, जो छात्र कीमती वस्त्र पहनते हैं, वे उम्मीद करते हैं कि इसके कारण उन्हें कॉलेज में विशेष स्थान मिलें। उनकी दृष्टि में उनके कीमती वस्त्र उनकी एक अतिरिक्त योग्यता है।
किशोर अवस्था का यह कार्य आपत्तिजनक है क्योंकि विद्यार्थी कक्षा के प्राध्यापक का ध्यान अपनी ओर करवाने के लिए अपनी टाई को ठीक करते रहते हैं। वे अपने ठीक ढंग से सिले हुए सूटों अथवा किसी भी कपड़े, प्रशंसायुक्त दृष्टि से देखते हैं और सोचकर आनंदित होते हैं कि फैशन को अपनाने में वे किसी से पीछे नहीं हैं। अध्यापक वर्ग सब कुछ देखकर भी। चुप हैं। अतः प्रतिदिन छैला-बाबुओं की संख्या बढ़ती जा रही हैं। अधिकांश छात्र अपनी जेबों में कंघा रखते हैं और दिन में निरंतर प्रयोग करते रहते हैं, आजकल आधुनिक फैशन के समय में जीन्स पहनने का फैशन चल पड़ा है। जीन्स की सिलाई कितनी कसी हुई होती है कि इसका अनुमान उसे पहनने वालों को देखकर लगाया जा सकता है। निश्चय ही यह एक सनकी फैशन है तथा इसे कम करना और रोकना चाहिए।
यह बात केवल किशोरों तक ही सीमित नहीं है। किशारियाँ उनसे दो पग आगे ही हैं। फैशन करना वे अपना विशेष कर्त्तव्य मानती हैं। आकर्षक परिधानों के प्रति छात्राओं का प्राकृतिक तथा सहज प्रेम है तथा कॉलेजों में इस प्रेम को दिखाने का अवसर उन्हें मिल जाता है। 70 व 80 के दशक में छात्राएँ कॉलेज में चमकीले बार्डर वाली रंगीन साड़ियाँ तथा तंग सिले जम्पर पहन कर आती थी। जिससे उनके शरीर को आराम रहे, लेकिन इस समय उसका प्रचलन समाप्त हो गया है। साड़ियों का स्थान तंग जीन्स ने ले लिया है।
ताकि लड़कियां लडकों के बराबर लगे और लड़के उनको अपने से कम न समझें। उनका अधिक धन पाऊडर, क्रीम और लिपस्टिक खरीदने पर खर्च होता है। इसमें कोई शक नहीं है कि उनकी बातों के ढंग से सौन्दर्य और भी अधिक खिलता है। लेकिन ये सब बातें किशोर छात्रों के लिए व्याकलता तथा उतावलापन है।
फैशन करना बुरा नहीं है यदि हम दिमाग से सोचे, परन्तु फैशन के बहाव में बह जाना सम्पूर्ण विवेकहीनता है। अपने आप को आभूषित करना बरा नहीं है. लेकिन अपने आप को आभूषणों के माध्यम से ही जानना-पहचानना नि:संदेह बुरा है।
यदि ऐसा होता है तो इससे स्पष्ट है कि ऐसे छात्र और छात्राएँ, अपने अध्ययन एवं शिक्षा में रुचि नहीं लेते और न ही ले सकते हैं। उनकी दृष्टि में कॉलेज जाना केवल एक शौक तथा मनोरंजन है। कक्षाओं में होने वाले व्याख्यान तथा परीक्षाएँ एक बुराई है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि फैशन की ओर हर समय ध्यान देना उनके लिए हानिकारक सिद्ध हो सकता है या हो रहा है।
फैशन की सीमा केवल वस्त्रों तक ही सीमित नहीं है आजकल फिल्में देखना तथा रेस्तरां जाना भी फैशन का एक हिस्सा बन गया है। उनकी दृष्टि में आने वाली फिल्मों के बारे में जानकारी रखना आवश्यक है। अभिनेताओं तथा अभिनेत्रियों के बारे में वे अपना पूरा सामान्य ज्ञान अप-टू-डेट रखते हैं। उन्हें अपने कबीर के दोहे भले ही न याद रहे, इतिहास की तिथियाँ भी उनको याद नहीं हो पाती, लेकिन आमिर खान, शाहरुख खान, ऋतिक रोशन, करीना कपूर, प्रिटी जिंटा और रानी मुखर्जी के बारे में उनकी जानकारी हमेशा पूर्ण होती है। उनके कमरों में अभिनेताओं, अभिनेत्रियों के चित्र होना भी कोई बड़ी बात नहीं है। वे उसके आदर्श बन चुके हैं और उनका अनुकरण करने में अपने माता-पिता की मेहनत की कमाई को फॅकने में उन्हें जरा भी लज्जा नहीं आती। मंहगी जगहों पर खाना उनकी दृष्टि में उन्नति की निशानी है। आजकल छात्रों में सिगरेट पीने की आदत भी हो गई है जो एक बहुत ही दुख की बात है। आजकल ‘गर्लफ्रेंड’ और ‘बॉयफ्रैंड’ बनाना तो इतना आम हो गया है कि जिनके ये न हो उन किशोर-किशोरियों को अपवाद माना जाता है। यह कितना हास्यास्पद और विचारणीय तथ्य है। इसके चलते तो कॉलेज परिसर में अपनी नादानी में अश्लील हरकतें भी कर बैठते हैं। इन सभी का मूल कारण है-फैशन और सिर्फ फैशन।
विश्वविद्यालय के पदाधिकारी तथा छात्र-छात्राओं के संरक्षक यदि चाहे तो उन्हें फैशन पर समय, बुद्धि और धन को नष्ट करने से रोक सकते हैं। विभिन्न विश्वविद्यालयों की परीक्षाओं में उत्तीर्ण विद्यार्थियों के गिरते प्रतिशत को देखने पर हम कह सकते हैं कि फैशन का छात्र समुदाय पर भयंकर दुष्प्रभाव पड़ा है, इस संबंध में सभी लोगों को एकजुट होकर आंतरिक आकर्षण के प्रति छात्रों की जागरूकता बढ़ानी पड़ेगी और सभी को मिलकर इस संदर्भ में एक नए आंदोलन और क्रांति की शुरुआत करनी होगी।