क्रिसमस
Christmas
वर्ष 25 दिसंबर को भगवान ईशु के जन्म के अवसर पर क्रिसमस पर्व मनाया जाता है। इस शुभ दिने को ‘बड़ा दिन’ भी कहते हैं। यह ईसाइयों का सबसे बड़ा त्योहार है। 24 दिसंबर की संध्या बेला को ईसाई अपने घरों और गिरजाघरों को दीपकों से सजाते हैं और रात बारह बजे शुभ घड़ी की यादगार में गीत गाते हुए निकलते हैं। इस दिन गिरजाघरों में खास पूजा भी होती है।
25 दिसंबर के दिन परस्पर उपहारों का आदान-प्रदान होता है तथा अनेक प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन बनाये जाते हैं। गिरजाघरों में ईश-प्रार्थना होती है एवं ईश्वर का गुणगान किया जाता है। ईसा मसीह के उपदेशों की व्याख्या भी पादरी करते हैं और बताते हैं कि ईसा एक चमकता हुआ सितारा थे जो लोगों को दुःख और बुराइयों के अंधेरे से उजाले की ओर ले जाने के लिए धरती पर अवतरित हुए। ईशु की अच्छाइयों को जानना और उनका पालन करना ही क्रिसमस पर्व का असली अर्थ है।
2,000 वर्ष पहले की बात है। मरियम एक जवान यहूदी थी। जो परमेश्वर से बहुत प्रेम रखती थी। वह नासरात में गेलिल नामक गांव में रहती थी। एक दिन अचानक उसका कमरा प्रकाश से भर गया, क्योंकि वहां एक चमकीला स्वर्गदूत खड़ा था। स्वर्गदूत ने कहा, “मरियम परमेश्वर तुझसे प्रसन्न है। तेरे एक पुत्र होगा; तू उसका नाम यीसु रखना; वह परमेश्वर का पुत्र होगा।” मरियम ने कहा, “परंतु मेरा तो विवाह भी नहीं हुआ, फिर यह कैसे हो सकता है।
स्वर्गदूत ने उत्तर दिया, “यह परमेश्वर की सामर्थ्य से होगा। कोई बात ऐसी नहीं जो परमेश्वर से नहीं हो सकती ।”
मरियम ने कहा, “मैं प्रभु की दासी हूं, जैसे तूने कहा, वैसा ही होगा।” मरियम के मंगेतर यूसुफ ने भी एक अद्भुत स्वप्न देखा। स्वर्गदूत उसके सामने खड़ा था, और कह रहा था। “यूसुफ मरियम को अपनी पत्नी बना, उसका बालक परमेश्वर का पुत्र होगा। वह अपने लोगों को उनके पाप से बचायेगा।”
उसी समय रोगी सम्राट औगुस्तुस केसर ने आज्ञा दी कि, “हर स्त्री-पुरुष उस नगर जाये जहां से उनके परिवार के लोग आये थेवहां वे अपने नाम दर्ज करायें।”
मरियम और यूसुफ ने भी इस आज्ञा को सुनावे बैतुलहम के घराने से आये थे। इसलिए उन्हें नासरात से बैतुलम जाना पड़ा।
मरियम का बालक होने वाला था। इस अवस्था में वह बैतुलम पहुंचने तक बहुत थक चुकी थी। बैतुलम में बहुत भीड़ थी। बड़ी संख्या में लोग अपने नाम दर्ज कराने पहुंचे थे। इस कारण मरियम और यूसुफ को किसी भी सराय में ठहरने की जगह नहीं मिली। उन्हें अस्तबल में रहना पड़ा। उसी शुभ रात्रि को बारह बजे यीसु का जन्म हुआ। कहा जाता है कि उनके जन्म के पश्चात् तीन विद्वान व्यक्ति तथा कुछ चरवाहे उनके दर्शनार्थ आये और धीरे-धीरे यह समाचार चारों ओर फैल गया कि परमेश्वर ने जन्म ले लिया है। आज ईसाई- धर्म संसार के मुख्य धर्मों में से एक है।