बस अड्डे का दृश्य
Bus Stand Ka Drishya
3 Hindi Essay on ” Bus Stand Ka Drishya”
निबंध नंबर :- 01
आजकल पंजाब में लोग अधिकतर बसों से ही यात्रा करते हैं । पंजाब का प्रत्येक गाँव । मुख्य सड़क से जुड़ा होने के कारण बसों का आना-जाना अब लगभग हर गाँव में होने लगा है । बस अड्डों का जब से प्रबंध पंजाब रोडवेज के अधिकार क्षेत्र में आया है बस अड्डों का हाल दिनों-दिन बुरा हो रहा है। हमारे शहर का बस अड्डा भी उन बस अड्डों में से एक है जिसका प्रबन्ध हर दृष्टि से नाकारा है । इस बस अड्डे के निर्माण से पूर्व बसें अलग-अलग स्थानों से अलग-अलग अड्डों ज्यों-ज्यों समय बीतता गया जनता की कठिनाइयाँ, परेशानियाँ बढ़ने लगीं । हमारे शहर के बस अड्डे पर भी अन्य शहरों की तरह अनेक दुकानें बनाई गई हैं । जिनमें खान पान फल-सब्ज़ियों आदि की दुकानों के अतिरिक्त पुस्तकों की, मनियारी आदि की भी दुकानें हैं । हलवाई की दुकान से उठने वाला धुआँ सारे यात्रियों की परेशानी का बनता है । चाय पान आदि की दुकानों की साफ सफ़ाई की तरफ कोई ध्यान नहीं देता। वहाँ माल भी महँगा मिलता है और गंदा भी। बस अड्डे में अनेक फलों की रेहड़ी वालों को भी माल बेचने की आज्ञा दी गई है । ये लोग काले लिफाफे रखते हैं जिनमें वे सड़े गले फल पहले से ही तोल कर रखते हैं और लिफाफा इस चतुराई से बदलते हैं कि यात्री को पता नहीं चलता । घर पहुँच कर ही पता चलता है कि उन्होंने जो फल (सेब या ) चुने थे वे बदल दिये गये हैं । अड्डा इंचार्ज इस सम्बन्ध में कोई कार्यवाही नहीं क। बस अड्डे की शौचालय की साफ-सफाई न होने के बराबर है । यात्रियों को टिकट देने के लिए लाइन नहीं लगवाई जाती । बस आने पर लोग भाग दौड़ कर बस में सवार हैं । औरतों, बच्चों और वृद्ध लोगों का बस में चढ़ना ही कठिन होता है । बहुत बार देखा गया है कि जितने लोग बस के अन्दर होते हैं उतने ही बस के ऊपर चढ़े होते हैं । पंजा में एक कहावत प्रसिद्ध है कि रोडवेज़ की लारी न कोई शीशा न बारी । पर बस अड्डो का हाल तो उनसे भी बुरा है । जगह-जगह खड्डे, कीचड, मक्खियाँ मच्छर और न जाने क्या क्या। आज यह बस अड्डे जेब कतरों और नौसर बाजों के अड्डे बने हुए हैं हर । यात्री को अपने-अपने घर पहुंचने की जल्दी होती है इसलिए कोई भी बस अड्डे की । दुर्दशा की ओर ध्यान नहीं देता ।
निबंध नंबर :- 02
बस अड्डे का दृश्य
Bus Stand ka Drishya
एक बार मैं अपने मित्र को लेने बस अड्डे पर गया। मैंने देखा वहाँ गोलाकार में विभिन्न प्रकार के प्लेटफार्म बने हैं जहाँ बसें अपने जाने के समय की प्रतीक्षा करती हैं। बस अड्डे के एक तरफ प्लेटफार्म अलग-अलग स्थानों की टिकटें दी जा रही थीं। टिकट खिड़कियों के पास लोगों की भीड लगी थी। लोग टिकट लेकर अपने गतव्य स्थान को आने-जाने वाली बसों पर सवार हो जाते थे। कुली उन लोगों का सामान उठाकर उनके साथ चल रहे थे। फल तथा खाने-पीने की चीजें बेचने वाले आवाजें लगा रहे थे। चाय आदि की दुकानों पर भी यात्रियों का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए आवाजें आ रही थीं। बसों के अन्दर पुस्तकों और अखबार बेचने वाले घूम रहे थे। अनेक लोग अपने मित्रों और सम्बन्धियों का स्वागत कर रहे थे। कोई बिछड़ने पर दु:ख अनुभव कर रहा था तो कोई मिलकर प्रसन्न हो रहा था। बस अड्डे पर बडी भीड थी। पलिस के सिपाही व्यवस्था बनाए रखने के लिए इधर-उधर घूम रह था फिर भी इक्का-दुक्का लडाई के दृश्य दिखाई पड़ते थे। कहीं कली किसी आदमी में उलझा हुआ दिखाई द रहा था तो कहीं कोई व्यक्ति वस्तुओं के अधिक भाव के कारण रोष व्यक्त कर रहा था। एक व्यक्ति की जेब कट गई थी। वह चिल्ला रहा था। प्रायः सभी लोग हडबडी में ही दिखाई दे रहे थे। तभी मेरा मित्र बस से उतरता हुआ दिखाई दिया। हम गले मिले। बाहर आकर वाहन किराए पर लेकर घर आ गए।
निबंध नंबर :- 03
बस पड़ाव का एक दृश्य
A Scene at the Bus Stop
मुझे चाचा जी से मिलने जाना था । मैं तैयार होकर बस पड़ाव पर पहुँचा । यहाँ मुझे कुछ मनोरंजक अनुभव प्राप्त हुए । यात्रियों की नजर बार-बार आने वाली बस पर टिक जाती थी । परन्तु जब बस उनके गंतव्य की न होती तो वे खीज और ऊब प्रकट करने लगते। यहाँ बहुत से यात्री बस की प्रतीक्षा कर रहे थे । इनमें से कुछ अखबार या पत्रिका पढ़ने में व्यस्त थे । कुछ लोग आपस में बातचीत कर रहे थे । गर्मी अधिक थी इसलिए बस स्टॉप पर ठंडा पानी, आईसक्रीम और शीतल पेय बेचने वाले भी खड़े थे । उकताए यात्री कभी पानी तो कभी ढंडा पेय पीते । वे परिवहन व्यवस्था को कोस रहे थे। जैसे ही कोई बस आती यात्री बिना लाइन के ही उस पर चढ़ने का प्रयत्न करते । शब्दों का आदान-प्रदान होने लगता । जैसे ही कुछ यात्री बस पर चढ़ते, उनका स्थान भरने के लिए बस स्टॉप पर अन्य यात्री आ जाते थे । एक बार फिर से वहाँ भीड़ जमा हो जाती ।
शब्द–भंडार
गंतव्य = जहाँ पहुँचना हो । खीज – झुंझलाहट । परिवहन व्यवस्था = यातायात व्यवस्था । प्रयत्न = कोशिश।
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