बीता समय वापस आता नहीं
Bita Samay Vapas Nahi Aata
समय की अपनी एक गति है, अपना नियम है। एक बार जो समय गुजर जाता। है, वह दुबारा लौटकर नहीं आता। जिस तरह मुँह से निकली हुई बात वापिस लौटकर नहीं आती, कमान से निकला तीर दुबारा लौटकर नहीं आता, देह से निकली आत्मा देह में वापिस नहीं आती, गुजरी हुई जवानी और बचपन दुबारा लौटकर नहीं आते, आकाश से टूटे तारे और पेड़ से टूटी टहनी, फूल, पत्ती, पुष्प आदि वापिस नहीं लौटते-उसी तरह बीता हुआ समय दुबारा लौटकर नहीं आता। यही सोचकर हमें अपने जीवन के अमूल्य समय का सदुपयोग करना चाहिए।
जो लोग अपने जीवन के अनमोल क्षणों को बेकार की बातों में खर्च कर देते हैं वे महत्त्वपूर्ण कार्यों में समय का अभाव पाकर बहुत पछताते हैं।
समय किसी का बन्धु या मित्र नहीं है। वह किसी के रिझाने से नहीं रीझता।। भगवान को फिर भी अनुनय विनय करके मनाया जा सकता है लेकिन समय को मनाना कठिन है। समय का कोई गुरु नहीं है, जिसका वह आदेश माने, उसका कोई बॉस नहीं है जिसके वह दबाव में रहे। उसे रुपयों की रिश्वत और कमीशन देकर नहीं झुकाया जा सकता।
यदि समय को वश में करना है तो उसके बराबर रफ्तार बनाकर चलनी पड़ती है, वर्ना समय आपको पछाड़ देगा अथवा हरा देगा।
महात्मा गाँधीजी कहा करते थे कि यदि हमारा एक भी मिनट चला जाता है। तो वह वापिस लौटकर नहीं आता, इसलिए अपने जीवन के समय को व्यर्थ मत गवांइए।
शंकर कृप चेतावनी देते हुए कहते हैं-“समय रूपी अमृत बहता जा रहा है। सम्भव है इस अमृत से प्यास बुझाने का अवसर तुम्हें फिर कभी न मिले इसलिए अभी इसी समय तुम इस अमृतधारा से अपनी प्यास बुझा लो।”
वेदों में कहा गया है–‘‘काल अर्थात् समय एक अश्व या घोड़े की तरह। है। यह अश्व अजर अमर है और भूरि वीर्यवान् है लेकिन इस अश्व के मरत में सात रमियाँ रूपी रासें लगी हुई हैं। यदि ये रासें सवार के हाथ से निकल गयीं तो समय रूपी अश्व या घोड़ा भी सवार के हाथ से निकल जाएगा। वह फिर कभी लौटकर नहीं आएगा।”
समय मनुष्य को सफलता के लिए कोई न कोई अवसर अवश्य देता है लेकिन मनुष्य अज्ञानतावश उस अवसर को पहचानकर उसका सदुपयोग नहीं कर पाता। जब सफलता का वह अवसर बीत जाता है, तब आदमी को चेत होता है और वह समय बीत जाने के कारण हाथ मलता रह जाता है और अपनी असफलता या हार पर आँसू बहाता है। सृष्टि चक्र में सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग तथा कलियुग आदि चार युग होते हैं। ये सब युग अपने अपने समय पर आकर चले जाते हैं। जो क्षण बीत जाता है, वह बीत ही जाता है अर्थात् तत्काल लौटकर नहीं आता। जिस प्रकार सतयुग में सत्य की प्रधानता थी, उसी प्रकार कलियुग में आज कर्म की प्रधानता है।
कर्म से मनुष्य का भाग्य अथवा तकदीर का निर्माण होता है। समय को पहचानते हुए हमें अपना मन अच्छे कार्यों में लगाना चाहिए, तभी हम अपने आने वाले कल को अथवा भविष्य को सुधार सकेंगे।
इतिहास साक्षी है कि जिन्होंने समय की कद्र की, समय ने उनकी कद्र की और जिन्होंने समय की अवहेलना या निरादर किया-समय ने उनको पराजय या मात ही दी।
द्वितीय विश्वयुद्ध में हिटलर को समय पर सैनिक-सहायता नहीं मिल पाई इसलिए हिटलर की हार हुई। जब तक सैनिक हिटलर की सहायता हेतु पहुँचे तब तक हिटलर को बन्दी बना लिया गया। इसी प्रकार नेपोलियन का सेनापति उसकी सहायता करने सिर्फ 5 मिनट देरी से पहुँचा लेकिन तब तक नेपोलियन हार चुका था। तात्या टोपे यदि ठीक समय पर रानी लक्ष्मीबाई को सैनिक सहायता देते तो रानी को अपना किला नहीं छोड़ना पड़ता।
समय निकल जाने पर यदि कोई काग किया जाए तो उस काम का विशेष महत्त्व नहीं रह जाता। यदि समय पर बरसात न पड़े तो फसलें बेकार हो जाएँगी। यदि आप रेलगाड़ी में बैठने समय पर न पहुँच पाए तो गाड़ी आपसे छूट जाएगी। समय पर आप नौकरी का इंटरव्यू देने न पहुँचे तो नौकरी पाने से वंचित रह जाएँगे अतः अपने जीवन के महत्त्वपूर्ण कार्यों को समय रहते ही पूरा कर लेना। चाहिए क्योंकि बीता हुआ समय कभी लौटकर नहीं आता है।