बिन पानी सब सून
Bin Pani Sab Suna
संसार के सारे पदार्थों में जल अमृत तुल्य है। जल की उपमा किसी अन्य वस्त को नहीं दी जा सकती क्योंकि जल मनुष्य के लिए जीवन है। मानव शरीर का लगभग 80% भाग जल का ही बना हुआ होता है। यदि शरीर में जल न हो तो रक्त कैसे बने और मस्तिष्क तथा शरीर-इन्द्रियों में जल तत्त्व की मात्रा न हों तो वे अपना काम कैसे करें? जल से शरीर के अंगों में एक लचकमयी दृढ़ता आती है जो शरीर के हिस्सों को आपस में घर्षण होने से बचाता है।
रहीमदासजी ने कहा है–
“रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै मोती, मानस, चून ॥”
अर्थात् जीवन में पानी का होना बहुत जरूरी है। पानी के बिना सब कुछ शून्य अर्थात् खाली-खाली-सा लगता है। प्रकृति के पाँच तत्त्व हैं-पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश। इन पाँचों तत्त्वों का सृष्टि में स्थान अपनी-अपनी जगह पर उत्तम है। इनमें से एक भी तत्त्व के अभाव में सृष्टि पर मानव जीवन तो क्या पेड़-पौधों और पशु-पक्षियों का जीवन भी असम्भव हो जाएगा।
पृथ्वी के अलावा अन्य कोई ग्रह अथवा उपग्रह आकाश लोक में ऐसा नहीं है, जहाँ प्रकृति के ये पाँचों तत्त्व एक साथ मिलते हों। यही कारण है कि अब तक पृथ्वी के अलावा कहीं भी मानव जीवन नहीं पाया गया है। जल और वायु का तो उनके ग्रहों पर अभाव ही है।वायु के एक तत्व (ऑक्सीज़न) को मिलकर जल बनता है।
रासायनिक समीकरण में–
2H + O2 = 2H2O
हाइड्रोजन + ऑक्सीज़न जल
यदि पृथ्वी पर जल ही न होगा तो ऑक्सीजन या चाय तत्व भी कैसे हो है। इस प्रकार जल के न होने से दूसरे प्रकृति तत्व का भी पृथ्वी पर अभाव जागा और केवल अग्नि और आकाश तत्त्व ही पृथ्वी पर शेष रह जाएंगे।
प्रकृति के तीन तत्त्व कभी मानव शरीर, जीव-जन्तुओं के शरीर अथवा पौधों का निर्माण नहीं कर सकते? जल भौतिक शरीरों में जीवन फूंकता है। वायु शरीरों को जीने की साँस देती है जिससे शारीरिक रक्त का शुद्धिकरण होता है।
रहीमदासजी के उपर्युक्त दोहे में ‘पानी’ शब्द के तीन अर्थ हैं। ‘मोती’ के सन्दर्भ में पानी का मतलब पदार्थ के उस गुण से है जिसके कारण उसमें मोती-माणिक्य में किसी तरह की चमक, आभा या पारदर्शिता आती है।
‘मनुष्य’ या ‘मानस’ के सन्दर्भ में पानी का मतलब मनुष्य की मान प्रतिष्ठा, इज्जत, वीरता या गर्व आदि है।
‘चून’ का अर्थ चूर्ण या चूना भी लिया जा सकता है। चूने या चूर्ण में पानी के होने से ही वह योग्य बनता है। चूर्ण या आटे में पानी मिलाने से ही वह भोजन के योग्य बनता है तथा चूने में भी सफेदी और चमक तभी आती। है जब उसमें पानी मिलाया जाता है।
जिस मोती में चमक या कान्ति का पानी न हो तो उसका कोई मूल्य नहीं होता। इसी प्रकार इज्जत अथवा प्रतिष्ठा के बिना मनुष्य की समाज में कोई कीमत नहीं रहती। चूर्ण अथवा चूने में जब पानी नहीं होता तो उसके गुणों की खुशबू उसमें दिखाई नहीं देती।
पानी के अभाव में सचमुच सजीवों का जीवन असम्भव है। पेड़-पौधों की मुख्य खुराक तो जल ही होती है। पृथ्वी से जल तथा जल में घुले हुए खनिज लवण पाकर वनस्पतियाँ फलती फूलती हैं। इसी प्रकार सारे जीव जन्तु तथा मनुष्य जल से अपनी प्यास बुझाकर अन्तरात्मा को तृप्त करते हैं।
आयुर्वेद ग्रन्थ ‘भाव प्रकाश में कहा गया है–
जीवनं जीविनां जीवो जगत् तन्मयम् ।
अर्थात् पानी प्राणियों का जीवन है और सारा संसार ही जलमय है।
यजुर्वेद में भगवान से कामना की गई है–
“हमें इच्छित सुख देने के लिए जल कल्याणकारी हो। हमारे पीने के लिए सुखदायी हो। हमें सुख-शान्ति देते हुए जल प्रवाह बहे।”
जल केवल मनुष्य की प्यास ही नहीं बुझाता बल्कि यह स्नानादि नित्य कर्मों के द्वारा मनुष्य शरीर को स्वच्छ भी बनाता है। भोजन आदि के निर्माण में जल का बड़ा योगदान है।
यदि जल नहीं होगा तो बरसात भी नहीं होगी क्योंकि जलचक्र के अनुसार गर्भ । के मौसम में जब समुद्र का पानी भाप बनकर ऊपर उड़ता है तो आकाश में पानी के बादल बनते हैं। यही बादल ठण्डे होकर पृथ्वी पर बरसते हैं। जब समुद्र में पानी दी। नहीं होगा तो भाप बनेगी कैसे और भाप न बनेगी तो आकाश में बादल ही कैसे होंगे।
जल न होने से सर्दी के मौसम में बर्फ भी नहीं जमेगी। बर्फ न जमने से गर्मियों में यह पिघलेगी भी नहीं फलस्वरूप नदी-नाले सूखे रह जाएँगे और खेतों को पानी न मिलेगा। फसलें सूखकर नष्ट हो जाएँगी या उगेंगी ही नहीं और सारे प्राणी पानी के अभाव में तड़प-तड़प कर मर जाएँगे।
हमारे देश के अनेक तीर्थ नदियों के किनारे बसे हैं। यदि पानी के अभाव में नदियाँ ही सूखी रहेंगी तो तीर्थ स्थलों का महत्त्व भी घट जाएगा। लाखों टन सामान रोजाना जलमार्ग से भारत में आता-जाता है। जब समुद्र में जल ही नहीं रहेगा तो मालवाहक जलयान किस पर चलेंगे। फलस्वरूप सारी व्यापार प्रणाली ठप्प पड़ जाएगी और देश में अव्यवस्था फैल जाएगी।
आदमी की मान-प्रतिष्ठा और आबरू को भी ‘पानी’ कहा जाता है। कहते । हैं कि जिस व्यक्ति का मान एक बार नष्ट हो जाता है-उसे दुबारा मान प्राप्त नहीं होता। यदि मनुष्य की इज्जत पर कोई कलंक लगे-इससे अच्छा है कि वह मृत्यु को गले लगा ले। क्योंकि मृत्यु हो जाने पर मनुष्य को दूसरा जीवन (जन्म) प्राप्त हो जाता है लेकिन इज्जत पर कालिख पुत जाने से मानव का अपयश इतिहास में सदा कायम रह सकता है। जयचन्द आदि राष्ट्र के गद्दारों को जो अपयश मिला था वह वर्षों बीत जाने पर आज भी जैसे के तैसा कायम है।
गीता में कहा गया है–
सम्भावितस्य चाकीर्तिर्मरणादति रिच्यते।
अर्थात् अपकीर्ति मानव के लिए मरण से भी ज्यादा बुरी है।
पानी के अभाव में गेहूँ का चूर्ण या आटा नहीं गूंधा जा सकता और इस प्रकार भोजन के लिए रोटी, पराँठे, पूरियाँ अन्य तैयार नहीं किया जा सकता। मकान बनाने के लिए रेत और चूने की आवश्यकता होती है। पानी की उपलब्धता से ही इन दोनों का मिश्रण या घोल तैयार किया जाता है। पानी के अभाव में चूना क्रियाहीन हो जाता है।