भूकम्प : एक प्राकृतिक आपदा
Bhukamp : Ek Prakritik Aapada
भूकम्प तूफान, अतिवृष्टि, अनावृष्टि हिमपात आदि की तरह एक प्राकृतिक आपदा है। इस आपदा का प्रकोप विश्व के किसी-न-किसी हिस्से पर पड़ता ही रहता है। इस आपदा के शिकार अनेक प्राणी होते रहते हैं। इससे होने वाली जान-माल की हानि का केवल अनुमान ही लगाया जाता है। ऐसा इसलिए कि इसके प्रभाव असीमित और अनिश्चित होते हैं। फलतः इसके विषय में निश्चित रूप से कहना कुछ कठिन अवश्य होता है।
‘भूकम्प’ शब्द दो शब्दों के मेल से बना है-“भू’ और ‘कम्प’ । ‘भू’ शब्द का अर्थ होता है-‘पृथ्वी’ और ‘कम्प’ शब्द का अर्थ होता है-‘कांपना या हितना’ । इस प्रकार ‘भूकम्प’ शब्द का अर्थ हुआ- ‘पृथ्वी का कांपना या
हिलना । अब प्रश्न यह है कि पृथ्वी का कांपना या हिलना क्यों होता है ? दूसरे शब्दों में पृथ्वी क्यों कांपती या हिलती है ? इस प्रश्न का उत्तर वैज्ञानिक बड़ी खोजबीन करके दिए हैं। उनके अनुसार प्राकृतिक कारणों के फलस्वरूप पृथ्वी के भीतर की पर्ते या चट्टानें अस्थिर होकर हिलने लगती हैं। उनके हिलने से पृथ्वी के ऊपरी भाग में भी कम्पन होता है। इस कंपन की प्रक्रिया और स्वरूप को भूकम्प कहा जाता है।
“भूकम्प’ आने के कारण वैज्ञानिकों ने अनेक बताए हैं। उनमें दो कारणं मुख्य रूप से हैं–1. विवर्तनिक कारण, और 2. अविवर्तनिक कारण। विवर्तनिक कारण के अनुसार पृथ्वी के दाब के कारण भूकम्प आता है। दूसरे शब्दों में पृथ्वी का दाब सर्वत्र एक समान नहीं है, अर्थात् पृथ्वी के भीतर कहीं-कहीं अधिक गहराई पर। तापमान कम भी है और अधिक भी। फलस्वरूप इसकी भीतरी पतों (सतहों पर भी दाब कहीं अधिक और कहीं कम है। जहाँ पर दाब अधिक है, वह कभी न – कभी बहुत बढ़ जाता है। कभी तो इतना अधिक बढ़ जाता है कि पृथ्वी की भीतरी स्थिर (पते) चट्टानें हिलने-डोलने के कारण मुड़ कर टूटने लगती हैं। इसका प्रभाव ऊपरी चट्टानों (पतों) पर पड़ने लगता है। फलस्वरूप चट्टानें (पते) सरकने लगती हैं। इनके सरकने की प्रक्रिया के दौरान भूकम्प आने लगता है।
भूकम्प के विषय में लोगों के भिन्न-भिन्न मत हैं। भूगर्भ शास्त्रियों का मत । है कि धरती के भीतर तरल पदार्थ है। ये जब अन्दर की गर्मी के कारण तीव्रता से फैलने लगते हैं, तो पृथ्वी हिल जाती हैं। कभी-कभी ज्वालामुखी का फटना भी भूकम्प का कारण बन जाता है। भारत एक धर्म भीरु देश है। यहां के लोगों का मत है कि जब पृथ्वी के किसी भाग पर अत्याचार और अनाचार बढ़ जाते हैं, तो उस भाग में देवी प्रकोप के कारण भूचाल आते हैं। देहातों में यह कथा भी प्रचलित है कि शेष नाग ने पृथ्वी को अपने सिर पर धारण कर रखा है। उसके सात सिर हैं। जब एक सिर पृथ्वी के बोझ के कारण थक जाता है तो उसे दूसरे सिर पर बदलता है। उसकी इस क्रिया से पृथ्वी हिल जाती है, और भूकम्प आ जाता है। अर्थशास्त्रियों का तर्क है कि जब पृथ्वी पर जनसंख्या जरूरत से अधिक बढ़ जाती। हैं, तो प्रकृति उसे सन्तुलित करने के लिए भूकम्प उत्पन्न करती है।
भूकम्प का कारण कोई भी क्यों न हो, पर इतना निश्चित है कि यह एक दैवी प्रकोप है, जो अत्यधिक विनाश का कारण बनता है। यह जानलेवा ही नहीं। बनता, बल्कि मनुष्य की शताब्दियों-सहस्त्राब्दियों की मेहनत के परिणाम को भी नष्ट-भ्रष्ट कर देता है। बिहार, बंगाल, उड़ीसा आदि ने बड़े विनाशकारी भूकम्प देखे हैं। हजारों लोग मौत के मुंह में चले गये। भूमि में दरारें पड़ गईं, जिनमें जीवित प्राणी समा गये। पृथ्वी के गर्भ से कई प्रकार की विषैली गैसें उत्पन्न हुई, जिनसे प्राणियों का दम घुट गया। भूकम्प के कारण जो लोग धरती में समा जाते हैं, उनके मृत शरीरांग को बाहर निकालने के लिए धरती की खुदाई करनी पड़ती है। यातायात के साधन नष्ट हो जाते हैं। बड़े-बड़े भवन धराशायी हो जाते हैं। लोग बेघर हो जाते हैं। धनवान् अकिंचन बन जाते हैं और निर्धनों को जीने के लाले पड़ जाते हैं।
सन् 1985 में वन्यैटा ने भूकम्प का प्रलयकारी नृत्य देखा था। भूकम्प के तेज झटकों के कारण देखते ही देखते एक सुन्दर नष्ट-भ्रष्ट हो गया। हजारों स्त्री-पुरुष, जो रात की सुखद नींद ले रहे थे। क्षण भर में मौत का ग्रास बन गये। मकान सड़कें। और वृक्ष आदि नष्ट हो गये। सर्वत्र करुणाजनक चीत्कार थी। वहुत-से लोग अपंग हो गये। किसी का हाथ टूट गया, तो किसी की टांग, कोई अन्धा हो गया, तो कोई बहरा। अनेक स्त्रियाँ विधवा हो गईं। बच्चे अनाथ हो गये। अब आज भी जब हम उस भूकम्प की करुण कहानी सुनते हैं, तो हृदय कांप उठता है।
देश के इतिहास में सबसे भयानक भूकम्प 11 अक्टूबर 1737 में कलकत्ता में आया था, जिसमें लगभग तीन लाख लोग काल में समा गए। 30 सितम्बर की सुबह मराठवाड़ा क्षेत्र के लातूर एवं उस्मानाबाद में भयानक भूकम्प से हजारों लोग मरे और घायलों की संख्या भी पर्याप्त थी। करीब 90 गांवों में भयानक तबाही हो गई।
वास्तव में भूकम्प एक ऐसी प्राकृतिक आपदा है, जो इस वैज्ञानिक मानव की अद्भुत शक्ति को अपने प्रलयकारी शक्तियों और प्रभावों से चुनौती देने में हर प्रकार से सफल रही है। इससे इस वैज्ञानिक मानव के अपने सभी चलते और साधनों का घमण्ड चूर-चूर होता रहा है। अतएव यह आपदा हमें यह पाठ पढ़ाती । है कि हमें प्राकृतिक शक्तियों के प्रभावों को स्वीकारते हुए उससे बचने के लिए ईश्वर के प्रति नम्र होना चाहिए। यही नहीं यह पूर्ण विश्वास भी रखना चाहिए कि ईश्वर की कृपा से ही इस प्रकार की आपदा से बचने की कोई स्थावी राह मिल सकती है।