भ्रष्टाचार- कारण और निवारण
Bhrashtachar – Karan aur Nivaran
भूमिका- आज के भौतिकवादी युग में धन को प्रधान माना जाता है। आज चारों ओर धनवान का बोलवाला है। सम्मान केवल धनवान को मिलता है। मनुष्य धन के लालच में आकर धर्म व कर्म का ध्यान नहीं रखता। समाज की ऐसी स्थिति को देख कर धर्म और कर्म से उसका विश्वास उठ जाता है। उसका ध्येय केवल धन इकट्ठा करना होता है। धन चाहे किसी भी ढंग से इकट्ठा किया उस का उससे कोई सरोकार नहीं। धन एकत्रित करने के लिए वह चोरी, जमाखोरी, कर चोरी, काला बाजारी, तस्करी आदि बुरे से बुरे काम करने से भी नहीं हिचकिचाता। भारत वर्ष में इस भयंकर समस्या ने चारों तरफ अपने चरण फैला रखे हैं। समय रहते इस समस्या का हल ढूंढना चाहिए नहीं तो इसके भयंकर परिणाम सामने आएंगे।
भ्रष्टाचार का अर्थ- भ्रष्टाचार का शाब्दिक अर्थ है- आचार से भ्रष्ट या अलग होना। अत: कहा जा सकता है कि मन से, वाणी से, शरीरिक कर्म, संकल्प और इच्छा से, इस तरह से भ्रष्ट हो जाना अर्थात् इस प्रकार के कर्म करना जो गिरे हुए हैं और मानव समाज के लिए हानिप्रद हैं। भ्रष्टाचार वह निन्दनीय आचरण है, जिसके वशीभूत होकर मानव अपने कर्त्तव्य को भूल कर अनुचित रूप से लाभ प्राप्त करने का प्रयास करता है। मानव एक सामाजिक जीव है और वह समाज में रह कर ही प्रगति कर सकता है। इस व्यवस्था के लिए उसे कुछ नियम तथा बन्धनों के अनुसार रहना पड़ता है। प्रत्येक कर्म करने के लिए नैतिक आचरण का ध्यान रखना पड़ता है। वह इससे स्वयं भी सु:खी रहता है और समाज को भी सुःखी रख सकता है। लेकिन यदि कोई इस भौतिकवादी युग में केवल अपना ही स्वार्थ देखता है तो वह कोई दूसरों को दु:ख देता है। जब कोई मनुष्य अपने स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए सामाजिक नियमों का ध्यान नहीं रखता, अपने कर्त्तव्य की पालना नहीं करता तब ही भ्रष्टाचार जन्म लेता है। भ्रष्टाचार अंग्रेजों की देन है। अंग्रेज़ अधिकारियों ने धनवान बनने के लिए भारत से लूट-खसूट की ओर यह भयानक बीमारी भी हमें दी। इतिहास साक्षी है कि क्लाईव जब भारत आया तो निर्धन था परन्तु भारत से जब इंग्लैंड लौटा तो काफी धन का स्वामी था।
भ्रष्टाचार पैदा होने के कारण- हर भयंकर समस्या के पीछे कोई-न-कोई कारण अवश्य रहता है। इसी प्रकार भ्रष्टाचार के विकास के पीछे भी विभिन्न कारण हैं। सु:खी और शान्तमय जीवन बिताने के लिए धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इनका सन्तुलन होना चाहिए। आज मानव ने काम और अर्थ को प्राथमिकता दी है। इसने मानव की धन प्राप्ति की प्रवृत्ति बढ़ा दी है। अपनी असीम इच्छाओं को पूर्ण करने के लिए धन की आवश्यकता है। धन की लालसा ने भ्रष्टाचार को जन्म दिया है। जब हमारी इच्चाएं उचित साधनों से पूरी नहीं होती तो हम अनुचित साधनों से अपनी इच्छाएं पूर्ण करने का प्रयत्न करते हैं। आज मनुष्य अपनी चादर देखकर पैर नहीं पसारता। वह अपनी सीमा में रह कर धन व्यय नहीं करता। वह सुख और ऐश्वर्य की सामग्री, विलास की वस्तुएं और फैशन की चीजें शृंगार और आभूषणों के लिए अपव्यय करता है। आज का मानव चाहता है कि संसार की हर चीज मेरे पास हो। सुःख सविधाओं को प्राप्त करने के लिए मानव उचित या अनुचित साधनों से धन इकट्ठा करने लगा। बढ़ती हुई महंगाई के कारण भी भ्रष्टाचार फैला है। हमारे समाज में फैली हुई अनेक कुरीतियां भी भ्रष्टाचार को फैलने से सहायक होती हैं। आज ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं है जहां भ्रष्टाचार ने अपनी जड़े न फैला रखी हों। ऐसा लगता है कि संसारका कोई भी काम इसके बिना पूरा नहीं होता। व्यापारियों ने भ्रष्टाचार की सभी सीमाओं को ही लांघ दिया है। राजनीति ने हमारे देश में भ्रष्टाचार को जो कीर्तिमान बनाए हैं उसकी तुलना किसी देश से नहीं की जा सकती। आज विधायक हो या सांसद बाजार में रखी वस्तुओं की तरह बिक रहे हैं। आज एम० एल० ए०, एम० पी० आदि का टिकट प्राप्तकरने को लेकर चुनाव तक, मन्त्री बनने तक केवल भ्रष्टाचार को अपनाया जाता है। भ्रष्टाचार के बल पर सरकार बनाई जाती है या गिराई जाती है। मंदिर का पुजारी भी आज भक्त की आर्थिक स्थिति देख कर पुष्प डालता है है। आज करोड़ों की रिश्वत लेने वाले सीना तान कर चलते हैं। सरकारी दफतर में चपड़ासी से लेकर कलर्क और अधिकारी सब अपने-अपने तरीकों से कमाई करते हैं। यह भयंकर बिमारी कैंसर और एड्स की तरह पनप रही है। शिक्षा को किसी समय पवित्र कार्य माना जाता था, आज स्कूलों के, कॉलेजों के अध्यापक और अध्यापिकाएं भी इससे अलग नहीं हैं। पढ़ाई की स्थिति दयनीय हो गई है। घर में प्राईवेट ट्यूशन के माध्यम से अधिक धन अर्जित किया जाता है। योग्य छात्र-छात्राएं उच्च कक्षाओं में प्रवेश नहीं पा सकते। किन्तु अयोग्य छात्र-छात्राएं भ्रष्टाचार का सहारा लेकर कहीं-से-कहीं जा पहुंचते हैं और योग्य विद्यार्थी हाथ मलता रह जाता है।
भ्रष्टाचार के रोकने के उपाय- भ्रष्टाचार को रोकना अति कठिन कार्य है। भ्रष्टाचार को रोकने के लिए जो भी कदम उठाए जाते हैं वे थोड़े समय पश्चात् प्रभावहीन हो जाते हैं। भ्रष्टाचार की बिमारी और इसके कीटाणु हमारे खून में मिल गए हैं। भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए सर्व प्रथम देश में चेतना और जागृति लाना आवश्यक है। जब तक हमारे जीवन में नैतिकता का समावेश नहीं होगा तब तक हमारा भौतिकवादी दृष्टिकोण नहीं बदल सकता। समाज में फैले भ्रष्टाचार को रोकने के लिए ईमानदारी से काम करने वाले लोगों को प्रोत्साहन देना चाहिए ताकि उन्हें देख कर दूसरे भी उनका अनुकरण करने लगें। समाज में फैली करीतियों को मिटाने के लिए भी स्वयं सेवी संस्थाओं तथा अन्य को आगे आना होगा। सरकारी मशीनरी यदि भ्रष्टाचार से मुक्त हो जाए तो शासक वर्ग और अधिकारी प्रजा में पल रहे और बढ़ रहे भ्रष्टाचार को रोकने में समर्थ हो सकते हैं। भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कठोर दण्ड व्यवस्था की जानी चाहिए। हमारे देश में न्याय प्रणाली भी पंग हो गई है। न्यायपालिका की गरिमा को बचाना अति आवश्यक है। वास्तव में भ्रष्टाचार का जन्म प्रशासन एवं न्याय पद्धति में देरी के कारण होता है। किसान हो या मजदूर, उद्योगपति हो या श्रमिक, दुकानदार हो या नौकर सरकारी अधिकारियों के सम्पर्क में अवश्य आता है। आज दण्ड व्यवस्था इतनी कमजोर है कि रिश्वत लेता हआ यदि कोई पकड़ा जाए तो रिश्वत देकर बच निकलता है।
उपसंहार- भ्रष्टाचार को समाप्त करने की जिम्मेदारी केवल सरकार की ही नहीं है। यह हर व्यक्ति, समाज और संस्था की भी जिम्मेदारी बनती है। हम सब भारतवासियों को मिल कर भ्रष्टाचार को समाप्त करने का प्रयास करना होगा। हमारा सौभाग्य है कि आज की भारत सरकार तस्करी एवं भ्रष्टाचार जैसी सामाजिक बुराईयों को दूर करने के लिए सजग है। भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए मन्त्रियों तथा विधानसभा एवं लोकसभा के सदस्यों से ही इनका श्री गणेश कर रही है। सरकारी और गैर-सरकारी क्षेत्र में ईमानदारी से कार्य करने वाले कर्मचारियों को परस्कृत करना आवश्यक है। इससे अन्य लोगों को प्रेरणा एवं उत्साह मिलता है।