भाषण नहीं राशन चाहिए
Bhashan nahi rashan Chahiye
प्रत्येक सरकार का यह कर्तव्य होता है कि वह आम आदमी की सुविधा का ध्यान रखे। सरकार की कथनी तथा करनी में समन्वय होना चाहिए। केवल भाषणा किसी का पेट नहीं भरता। अगर बातों से पेट भर जाता तो संसार का कोई भी व्यक्ति भूख-प्यास से व्याकुल न होता। भूखे पेट तो भजन भी नहीं होता। भारत एक प्रजातन्त्र देश है। यहाँ के शासन की बागडोर प्रजा के हाथ में है, यह केवल कहने की बात है। इस देश में जो नेता कुर्सी पर बैठता है, वह देश के उद्धार की बातें करता है पर रचनात्मक रूप से कुछ भी नहीं होता। नेता जब मंच पर आकर भाषण देते हैं तो जनता सन्तोष का अनुभव करती है। उसे लगता है कि नेता जो कुछ कह रहे हैं, जिस कार्यक्रम की घोषणा कर रहे हैं, उससे निश्चित रूप से दरिद्रता दूर हो जाएगी, लेकिन होता सब कुछ विपरीत है। पूंजीपति के पास धन बढ़ता जाता है और आम जनता की निर्धनता बढ़ती जाती है। यह व्यवस्था का दोष है। इन नेताओं पर तो हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और वाली कहावत चरितार्थ होती है। जनता को भाषण की नहीं राशन की आवश्यकता है। सरकार की ओर से ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि जनता को जरूरत की वस्तुएँ प्राप्त करने में कठिनाई का अनुभव न हो। उसे नमक, तेल, लकड़ी की समस्या का सामना न करना पड़े। अतः सरकार को अपनी कथनी के अनुरूप व्यवहार भी करना चाहिए। उसे यह बात गांठ बांध लेनी चाहिए कि जनता को भाषण नहीं राशन चाहिए।