भारत में राष्ट्रीय एकता का स्वरूप
Bharat me Rashtriya Ekta ka Swarup
भारत में राष्ट्रीय एकता का स्वरूप सर्वधर्म समभाव पर टिका हुआ है। सर्वधर्म समभाव का तात्पर्य है-सभी धर्मों का समान रूप से आदर करना। हमारे देश में हिन्दू, मुस्लिम सिक्ख, ईसाई, बौद्ध, जैन, पारसी आदि अनेक धर्मों के लोग रहते हैं और भारतीय संविधान में सभी धर्मों को समान रूप से आदर दिया गया है। इस तरह की आदर भावना हमारी राष्ट्रीय एकता को बढ़ाती है।
जिस समय हमारा देश अंग्रजों का गुलमा था, उस समय हिन्दू, मुस्लिम और सिक्ख आदि सभी कौमों के लोग भारत माँ को गुलामी की बेड़ियों से आजाद कराने के लिए स्वतन्त्रता-आन्दोलन में कूद पड़े थे। सभी ने अंग्रेजों का डटकर मुकाबला किया, उनके जोर जुल्म सहे, जेल गए, रैली और भाषण के समय पीठ पर लाठियाँ सहीं लेकिन अंग्रेजों की कुटिल नीति के आगे सिर झुकाने को तैयार नहीं हुए।
भारतवर्ष की राष्ट्रीय एकता इस देश की सबसे बड़ी ताकत है। यहाँ बचपन से ही बालक अपनी पाठशाला किताबों, गुरुजनों और माँ से देशभक्ति का पाठ सीखता है। उसके दिल में राष्ट्र के प्रति अपना तन मन धन इत्यादि सब कुछ न्योछावर करने की भावना पैदा होती है।
“सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा।
हम बुलबुले हैं इसकी, यह गुलिस्ताँ हमारा॥
डॉ. इकबाल का यह गीत है। गीत की इन दो पंक्तियों का अर्थ है कि हमारा भारतदेश सारे संसार से अच्छा है। हम सब भारत देश की सन्तानें हैं तथा भारत-उपवन के रंगीन खुशबूदार फूल हैं।
इसी गीत में इकबाल ने कहा है-
“मजहब नहीं सिखाता, आपस में वैर रखना।
हिन्दी हैं हम, वतन है हिन्दोस्तां हमारा।”
अर्थात् अलग-अलग जाति वर्ग के होते हुए भी हमारे देश का कोई धर्म किसी से वैर भाव रखना नहीं सिखाता अर्थात् हरेक धर्म एक-दूसरे को प्रेम-प्यार रहने की शिक्षा देता है। यह भारत अथवा हिन्दुस्तान हम सबका एक ही राष्ट्र है तथा इसमें रहने वाले हम सभी लोग हिन्दी अर्थात् भारतीय हैं।
डॉ. इकबाल की यह कविता राष्ट्रीय प्रेम एवं राष्ट्रीय एकता का सबसे उत्कृष्ट स्वरूप है।
भारत आरम्भ से ही सन्त महात्माओं की भूमि रही है तथा हिन्दू, मुस्लिम सिक्ख और ईसाई आदि प्रत्येक धर्म के अन्दर अनेक प्रकार के पीर-पैगम्बर तथा सन्त-महात्मा पैदा हुए हैं। सभी महापुरुषों ने मानवीय प्रेम को महत्त्व दिया है। कुछ महापुरुष तो राष्ट्रीय एकता के इतने प्रबल पक्षधर रहे हैं कि उनके अनुयायी हिंन्दू और मुस्लिम-दोनों ही धर्म में देखने को मिलते हैं। कबीरदासजी इसका एक उदाहरण हैं। वे न हिन्दू विरोधी थे और न मुस्लिम विरोधी लेकिन वे इन दोनों धर्मों के अन्दर आई हुई खराबियों को दूर करना चाहते थे। वे कभी भी हिन्दू और मुसलमान लोगों को आपस में लड़ते-झगड़ते हुए नहीं देखना चाहते थे।
भारत का प्राचीन अध्यात्मवाद राष्ट्रीय-एकता के पक्ष को मजबूत करने का सबसे सशक्त साधन है। अध्यात्म हमें सिखाता है कि शारीरिक दृष्टि से भिन्न-भिन्न होते हुए भी सभी लोग (आत्मिक दृष्टि से) बिल्कुल एक जैसे (ज्योतिस्वरूप आत्मा-परमपिता परमात्मा की सन्तान) हैं। इस कारण अलग-अलग धर्म एवं जाति के होते हुए भी सभी लोग भावात्मक रूप से एक हैं।
भारत की राष्ट्रीय एकता किसी प्रकार के स्वार्थ से ग्रसित न होकर विश्व समुदाय के अन्य प्राणियों को भी स्वतन्त्रता और समानता से जीने का अधिकार देती है। हमारी राष्ट्रीय एकता विश्व के किसी राष्ट्र को नुकसान पहुँचाने वाली नहीं बल्कि जगत् के हर प्राणी का कल्याण चाहने वाली तथा कल्याण करने वाली है।
भारत माता इस सबकी जननी है। ये सब इसी की कोख से पैदा हुए तथा इसी की गोदी में पलकर बड़े हुए हैं। इस राष्ट्र की धरती पर, वनस्पति पर, नदी के जल, सूर्य की किरण, चन्द्र की चाँदनी तथा अन्य प्राकृतिक धरोहरों पर सभी का समान अधिकार है। भारत की संस्कृति में विविधता होते हुए भी भावात्मक एकता है। यही इस राष्ट्र की एकता का सबसे बड़ा सबूत है।