Hindi Essay on “Bharat me Dharam Nirpekshta ”, “भारत में धर्म-निरपेक्षता”, for Class 10, Class 12 ,B.A Students and Competitive Examinations.

भारत में धर्म-निरपेक्षता

Bharat me Dharam Nirpekshta 

 

पक्ष और विपक्ष, सापेक्ष और निरपेक्ष दोनों अलग-अलग प्रकार के शब्द हैं। उन किसी व्यक्ति, मान्यता या वस्तु की ओट ली जाती है तो उसे ‘पक्ष’ कहा जाता है। तथा उसकी विरोधी धारणा को विपक्ष कहते हैं। सापेक्ष का अर्थ है किसी पक्ष या दशा की आशा करना और निरपेक्ष का अर्थ है किसी पक्ष की आशा न करके सभी पक्षों को समान रूप से देखना या सभी पक्षों को समान रूप से आदर करना।

जब हम कहते हैं कि भारत एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है तो इसका तात्पर्य यह है। कि हमारा देश किसी एक धर्म या एक जाति का पक्षधर नहीं है बल्कि वह सभी धर्मों को और सभी जातियों को समान रूप से देखता है और सभी धर्मों का आदर करता है।

दुनिया में ऐसे देश बहुत कम हैं जहाँ विभिन्न धर्मों के लोगों का समान रूप से आदर किया जाता है। भारत देश की संस्कृति अत्यन्त महान् है। इस देश के आँचल में हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख और ईसाई आदि विभिन्न धर्मों के लोग रहते हैं। अलग-अलग धर्मों के लोग भारत रूपी बगीचे के सुन्दर पुष्प हैं।

विभिन्न धर्मों में पारस्परिक सहिष्णुता बनाए रखना ही ‘धर्म निरपेक्षता कहलाती है। धर्म निरपेक्षता की भावना साम्प्रदायिकता तथा धार्मिक उन्माद को रोकने का काम करती है।

धर्म-निरपेक्षता भारत की एक आदर्श जीवन पद्धति का नाम है। इसके कारण इस देश में विभिन्न धर्मों के लोग बिना किसी टकराव या अलगाववाद के वर्षों से एक रहते चले आए हैं। धर्म-निरपेक्षता के कारण हम होली, दीवाली, ईद, बैसाखी और बड़े दिन के उत्सवों को मिलकर हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं।

धर्म-निरपेक्षता की भावना भारतीय सांस्कृति की महान् परम्परा में प्रारम्भ से ही है।

अथर्ववेद में कहा गया है

जनं विभ्रति बहुधा विवाचसम्।

नानाधर्माणां पृथिवी यथौकसम्॥

जति यह पृथ्वी जो विभिन्न धर्मों और भाषाओं के लोगों को आश्रय देती है- हम सबका कल्याण करे।

ऋग्वेद में कहा गया है

एकैव मानुषी जातिः‘”

अर्थात् सभी प्राणी एक ही जाति के हैं।

वेदों में पृथ्वी को माँ सम्बोधित करके यह प्रार्थना भी की गई है कि हे। माँ पृथ्वी! ।

तुम हमें ऐसी शक्ति प्रदान करो जिसके कारण हम सब मिलकर सद्भावना से रह सकें तथा एकता का संवाद कायम कर सकें।

धर्म-निरपेक्षता एक सकारात्मक और विधेयात्मक अवधारणा है। यह व्यक्ति को धार्मिक कट्टरपन से दूर रखती है तथा उसे धार्मिक उदारता और सहिष्णुता का पाठ सिखलाती है।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51-अ’ के अनुसार भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह भारत के सभी लोगों में धार्मिक, भाषायी, क्षेत्रीय या प्रभागीय विविधताओं से आगे जाकर सामंजस्य तथा भाईचारे की भावना को प्रोत्साहित करे, महिलाओं की गरिमा के विरुद्ध प्रत्येक प्रथा का त्याग करे। हमारी सामाजिक संस्कृति की समृद्ध परम्परा तथा उत्तराधिकार की प्रतिष्ठा एवं रक्षा करे।

भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. शंकरदयाल शर्माजी धर्म-निरपेक्षता के सम्बन्ध में कहते हैं

“भारतीय स्वभाव में धर्म-निरपेक्षता एक ऐसा तत्त्व है, जिसे सभी नागरिकों को अपने सभी कार्यों से परिपुष्ट करना चाहिए। हमारी राष्ट्रीय राजनीति का यह तथ्य सिर्फ हमारे राष्ट्र तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें विश्व के सभी लोगों और देशों के लिए एक सन्देश निहित है जो मानवता के भविष्य का पथ प्रशस्त करता है।”

धर्म-निरपेक्षता भारतीय जीवन की जीवन्तता तथा जागरण का सूचक है। यह भारतवासियों की गतिशीलता तथा विकास का द्योतक है। धर्म-निरपेक्षता हमें सिखलाती है कि हम अपने देश के उज्ज्वल अतीत से प्रेरणा लेकर उज्ज्वलतर, सुखशान्तिमय तथा समृद्धशाली भविष्य के निर्माण के लिए सतत रूप से प्रयत्न करते रहें।

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