भारत में बेरोजगारी की समस्या
Bharat me Berojgari ki Samasya
हमारे देश के अनेक युवा आज बेकार घूम रहे हैं। युवाशक्ति की यह बेकारी कई प्रकार से राष्ट्र के लिए समस्या बन चुकी है। जब कोई युवक घर में बेकार बैठा होगा, कोई काम-धंधा नहीं करेगा अथवा उसे कोई धंधा नहीं मिलेगा तो खुद महसूस होगा कि वह परिवार के लोगों के लिए तथा समाज के लिए एक बोझ की तरह है।
बेरोजगारी के कारण अकर्मण्यता (निठल्लापन) और आलस्य आता है। इससे युवाओं में आवारागर्दी और शैतानियत बढ़ती है क्योंकि कहा जाता है कि खाली दिमाग शैतान का घर होता है। जब कोई व्यक्ति बेरोजगार और खाली बैठा होगा तो उसके दिमाग में तरह-तरह के गलत विचार उत्पन्न होंगे और वह उन विचारों को क्रियान्वित करता हुआ दूसरों को दुःख पहुँचाएगा।
बेरोजगारी देश में तब पैदा होती है जब देश में काम की कमी होती है। और काम करने वालों की संख्या ज्यादा होती है। जो अपने श्रम को बाजार में बेच पाने में असमर्थ हैं या व्यवसायहीन हैं-वे बेरोजगार हैं।
सामान्य दृष्टि से बेरोजगारी चार प्रकार की होती है–
- सम्पूर्ण बेकारी
- अर्ध बेकारी।
- मौसमी बेकारी और
- स्टेट्स बेकारी आदि।
सम्पूर्ण बेरोजगारी या बेकारी में किसी व्यक्ति के श्रम का जरा भी महत्त्व नहीं आँका जाता। अर्ध बेकारी में किसी व्यक्ति के श्रम को कुछ समय के लिए या दो-चार घंटों के लिए खरीद लिया जाता है। मौसमी बेकारी में मौसम या को काम पर रखा जाता है।
परिस्थिति के हिसाब से कुछ दिन के लिए व्यक्ति को काम पर रखा इसके बाद व्यक्ति बेरोजगार हो जाता है। कुछ भूपति लोग फसल कः लिए कृषकों को मजदूरी पर रख लेते हैं। इसी प्रकार भवन-निर्माता भवन के के लिए मजदूरों को काम पर रख लेते हैं। स्टेट्स प्रकार की बेरोजगारी तब उत्पन्न होती है जब व्यक्ति शारीरिक या मानसिक रूप से काम करने के के योग्य नहीं रहता है।
व्यक्ति के स्तर से बेरोजगारी चार प्रकार की होती है–
- शिक्षित जनों की बेकारी
- शिल्पीय दक्षता प्राप्त जन की बेकारी
- अकुशल जनों की बेकारी तथा
- कृषक जन की बेकारी आदि
आज बहुत से पढ़े-लिखे युवक-युवतियाँ नौकरी न मिलने के कारण बेकार घूम रहे हैं-यह शिक्षित जनों की बेरोजगारी है। ज्यादा पढ़-लिख जाने के कारण वे कोई छोटा-मोटा धंधा या कारोबार भी नहीं करना चाहते-यह और समस्या है। अकुशल जनों की बेकारी स्टेट्स प्रकार की बेरोजगारी की तरह है। कुशलता से कार्य न करने के कारण उनके भ्रम के महत्त्व का मूल्यांकन नहीं किया जाता। अनेक मूर्तिकार तथा शिल्पकार काम-धंधे के अभाव में बेकार बैठे रहते हैं। यन्त्रों के इस युग में मानवीय कला शिल्प की कीमत बहुत कम आँकी जाती है इसलिए शिल्पकारों को प्रोत्साहन नहीं मिलता। प्राचीन समय में राजा महाराजा लोग शिल्पकला, मूर्तिकला की कद्र किया करते थे। वे ऐसे लोगों को रोजगार भी देते थे तथा शिल्प सौंदर्य के पसंद आने पर शिल्पकार को स्वर्णमद्राओं और प्रशस्तिपत्र से पुरस्कृत भी किया जाता था।
बेरोजगारी राष्ट्र के मस्तक पर कलंक का काला टीका है, यह देश की गिरती हुई आर्थिक स्थिति का सूचक है तथा सामाजिक अवनति का प्रतीक है।
बेरोजगारी का प्रथम कारण देश में प्रतिवर्ष बढ़ने वाली जनसंख्या है। करीब एक करोड़ बच्चे हर साल हमारे देश में पैदा होते हैं। जिस अनुपात में यह जन्म दर बढ़ रही है, उस अनुपात में रोजगार के साधनों में वृद्धि नहीं हो रही है। इसके कारण भारत में बेकारी बढ़ती जा रही है।
दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली भी बेरोजगारी का एक कारण है। थोड़ा-सा पढ़-लिखकर व्यक्ति नौकरी पा लेना चाहता है। दसवीं या 12वीं कक्षा पढकर ग्रामीण विद्यार्थी अपने घर खेत का काम-धंधा छोड़कर शहरों की ओर नौकरी के लिए भागते है।
बाबूगिरी के आगे ग्रामीण युवक अपने पुरखों के कृषि कार्य को तुच्छ समझते है। भ्रम से पलायन की प्रवृत्ति के कारण बेकारी-दूध के उफान की तरह उफन रही है।
जब गलत प्रकार से औद्योगिक विकास की योजनाएँ बनाई और क्रियान्वित की जाती हैं, तब भी बेरोजगारी बढ़ती है। बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ लघु उद्योगों का जा घोंटने पर तुली हुई हैं तथा विदेशी कम्पनियों ने भारतीय औद्योगिक उत्पादनों ही कब्र ही खोद डाली है। बड़े उद्योगों के चलते लघु उद्योगों के कारीगर हतोत्साहित हुए हैं और देश में बेरोजगारी बढ़ी है।
सरकार भी छोटे-छोटे उद्योग-धन्धों को कहाँ ठीक से प्रोत्साहन दे रही है। यह कितने आश्चर्य की बात है कि बड़ी फैक्ट्री खोलने के लिए तो सरकारी बैंकों से ऋण आसानी से मिल जाता है लेकिन छोटे उद्योग की शुरूआत करने के लिए बेरोजगार व्यक्तियों को लघुउद्योग केन्द्रों और बैंकों के महीनों चक्कर लगाने पड़ते हैं।
बड़ी-बड़ी मिल, फैक्ट्रियों के सामान का इतना प्रभाव है कि छोटे उद्योगों में उत्पादन की बिक्री की बाजार में कोई पूछ नहीं है। ज्यादातार लोग बड़ी कम्पनी का मार्का देखकर ही चीज खरीदते हैं। सामान्य उद्योग से बनी चीज को वे घटिया समझते हैं। और इन बड़ी कम्पनियों में सारा काम-काज बड़ी-बड़ी मशीनों और कम्प्यूटर से किया जाता है। जब एक ही कम्प्यूटर दस-दस व्यक्तियों के काम को अकेला सँभाल लेगा तो बाकी दस लोगों की बेरोजगारी तो बढ़ेगी ही।
राष्ट्र में फैल रही बेरोजगारी से हमारे देश का युवा दिशाहीनता, आर्थिक परेशानियों, जीवन के अभावों, सांस्कृतिक शून्यता तथा जीवन मूल्यों के ह्रास में बुरी तरह से उलझ गया है।
बेरोजगार युवा पीढ़ी जब आक्रामक रुख अपनाती है तो देश में वह हिंसा, अपराध और आतंक फैलाती है। बेकारी के कारण उत्पन्न हुई ये समस्याएँ अपने आप में बहुत बड़ी समस्या हैं।
बेरोजगारी के कारण परेशान होकर व्यक्ति मादक द्रव्यों का सेवन करने लगता है, कुसंग में फँस जाता है, अपनी आत्महत्या करने पर उतारू हो जाता है। इसके अलावा अनेक प्रकार के शारीरिक तथा मानसिक रोग उसके अन्दर पैदा होने लगते हैं। बेरोजगारी के फलस्वरूप पैदा हुई निराशा, कुण्ठा तथा उदासी के कारण व्यक्ति शारीरिक तथा मानसिक रूप से कमजोर होने लगता है।
देश से बेरोजगारी मिटाने के लिए सरकार ने कई प्रकार की योजनाओं की शुरूआत की थी। इसके लिए शुरू-शुरू में सरकार ने पंचवर्षीय योजनाओं को चलाया। 1 अप्रैल, 1994 से “प्रधानमन्त्री रोजगार योजना” और 1 दिसम्बर, 1997 से शहरी रोजगार योजना की शुरूआत की गई। ग्रामीण क्षेत्र के लोगों के लिए “जवाहर ग्राम समृद्धि योजना” तथा “स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना बनाई गई। इन सभी प्रकार की रोजगार योजनाओं द्वारा ग्रामीण तथा शहरी लोगों के विकास के लिए रोजगार के अवसर उपलब्ध कराए जाते हैं। यह सब होते हुए भी आज करोड़ों लोग हमारे देश में बेरोजगार बैठे हुए हैं।
यदि हम चाहते हैं कि हमारे देश में बेरोजगारी न बढ़े तो इसके लिए हमें परिवार नियोजन पर बल देना होगा अर्थात् जनसंख्या वृद्धि की दर को रोकना होगा। इसके अलावा शिक्षा का व्यवसायीकरण करने की भी जरूरत है ताकि ‘स्वरोजगार के प्रति युवावर्ग में दिलचस्पी पैदा हो। हर एक तहसील में लघु उद्योग धंधे खोलने चाहिए तथा इन उद्योगों के उत्पादन भी निश्चित करने चाहिए ताकि बड़े उद्योगों की स्पर्धा में हीन बनकर ये पिछड़ न जाएँ।
युवकों के मन में श्रम के प्रति रुचि पैदा करनी चाहिए। श्रम का महत्त्व समझकर ही वे घरेलू उद्योग-धंधों को बढ़ावा दे सकते हैं।
देश में नए-नए उद्योगों को स्थापित करने तथा उनका उत्पादन बढ़ाने की आवश्यकता है। नए उद्योगों के लगने से रोजगार भी बढ़ेगा। ग्रामीण लोगों के हित के लिए कृषि पर आधारित उद्योग-धंधों के विकास की आवश्यकता है। इसके लिए सभी गाँवों में बिजली आदि की व्यवस्था की जानी चाहिए।
प्राकृतिक साधनों के पूर्ण विदोहन, विनियोग में वृद्धि, रोजगार की राष्ट्रीय नीति निर्धारण, औद्योगिक विकास सेवाओं की तीव्रता से भी देश में बेरोजगारी कम की जा सकती है। यदि देश में काम कर रहे लाखों बाल-श्रमिकों के स्थान पर पढ़े-लिखे और समझदार व्यक्तियों (युवाओं) को काम दिया जाए तो युवओं की बेरोजगारी काफी हद तक दूर हो सकती है।
कल के जो युवा थे वें आज बेरोजगार हैं…. आज के जो युवा हैं वें कल बेरोजगार होंगे…. और ये चलता रहेगा जब तक सब मिल कर इसका समाधान नहीं निकालेंगे.. सिर्फ बेरोजगार वो नहीं है जो अशिक्षित हैं बल्कि वें बेरोजगार हैं जो ज्यादा शिक्षित भी हैं और बस डिग्रियां लेकर बैठ गये हैं…. सबसे पहले तो भारत के लोगों को समझना होगा कि कोई भी काम बड़ा या छोटा नहीं होता… बस उसको लगन से करो और उसी में आगे बढ़ो… जरुरी नहीं कि जो ज्यादा शिक्षित हैं वो सरकारी नौकरी ही करेंगे हाँ वें अगर चाहते हैं तो कोशिश कर सकते हैं ये भी नहीं की आधा उम्र उसी कोशिश में निकाल दे बल्कि अगर उनसे अगर नहीं हो पा रहा तो वे किसी और क्षेत्र में आगे बढ़े…. और सूझ बुझ से ऐसा काम शुरू करें कि जिसमे वें और दो लोगों को काम दिला सके….. सिर्फ पैसा कमाना ही उद्देश्य नहीं होना चाहिए… अगर आप कम पैसे भी कमाते हैं और आपका परिवार संतुष्टि से जी रहें हैं तो इसमें खराबी क्या हैं…. इतना तो तय है की हर कोई अमीर नहीं बन सकता पर इतना तो कर सकता है की कुछ भी करे संतुष्टि जहा तक हो वहां तक कमाए पर बेरोज़गार ना बैठे…. ??