भारत की सांस्कृतिक एकता
Bharat ki Sanskritik Ekta
हमारे देश की सांस्कृतिक एकता से राष्ट्रीय एकता का पता चलता है। भारत देश की संस्कृति विविधता भरी है। यहाँ हिन्दू, सिक्ख तथा ईसाई आदि विभिन्न धर्मों के लोग निवास करते हैं और सबके रीति-रिवाज, परम्पराएँ अलग-अलग होते हुए भी सभी एक ही भारतीय संस्कृति के अंग हैं।
भारत में तरह-तरह की बोलियों वाले लोग रहते हैं लेकिन प्रेम और दया की भावना सभी की एक ही जैसी है। हमारे देश की महानु संस्कृति में परोपकार और परमार्थ को सबसे ऊँचा स्थान दिया गया है। एक-दूसरे का सम्मान करना तथा एक-दूसरे की भावनाओं का आदर करना-यही हमारे देश की संस्कृति सिखलाती है।
सम्पूर्ण भारतीय साहित्य में हमें एकात्मता के दर्शन होते हैं। वेद, उपनिषद् और षड्दर्शन भारतीय संस्कृति की अनमोल धरोहर हैं। बंगाल के राष्ट्रीय गीत एवं राष्ट्रगान केवल बंगाल के लोगों के नहीं बल्कि करोड़ों भारतवासियों के राष्ट्रगीत बने। विद्यापति ने जहाँ हिन्दी और मैथिली भाषा में काव्यग्रन्थ रचे वहाँ उन्होंने बांग्ला भाषा का भी काव्य रचा तथा हिन्दी और मैथिली की तरह बांग्ला में भी सम्मान प्राप्त किया। मीराबाई हिन्दी की भक्तिकालीन कविता की प्रसिद्ध कवयित्री मानी जाती हैं। उन्होंने हिन्दी के अलावा गुजराती भाषा में भी अनेक भक्ति छन्दों का निर्माण किया था। सन्त तुकाराम यद्यपि महाराष्ट्र के सन्त थे लेकिन उन्होंने हिन्दी भाषा में कविता को रचा था।
हिन्दी के अनेक लेखक ऐसे हुए हैं जिन्होंने उर्दू भाषा में भी साहित्य की रचना की। इनमें मुंशी प्रेमचन्द, उपेन्द्रनाथ अश्क, कृष्णचन्दर तथा सुदर्शन आदि प्रमुख लेखक हैं।
इस तरह हम देखते हैं कि साहित्य में भाषा की विविधता होते हुए भी एकात्मकता के दर्शन होते हैं।
भारतीय संस्कृति में होली, दीवाली, रक्षाबन्धन आदि सभी त्योहारों के धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इसी तरह यहाँ ईद, बड़ा दिन बैशाखी आदि अन्य धर्मों के त्योहारों को भी खूब उमंग उत्साह से मनाया जाता है। इन सभी को में सिर्फ एक ही धर्म के लोग नहीं, बल्कि सभी धर्मों के लोग भाग लेते हैं। होली और दीवाली का त्योहार आता है तो मुसलमान भाई हिन्दुओं के घर में मुबारकबाद देने आते हैं। इसी तरह जब ईद आती है तो हिन्दू धर्म के लोग का के घर बधाइयाँ देने पहुँचते हैं। एक-दूसरे के तीज त्योहारों में शामिल होकर खुशियाँ बाँटना तथा एक-दूसरे के दुःख-दर्द में काम आना हमारे देश की महान् संस्कृति की पहचान है। इस तरह की सद्भावनाएँ हमारी सांस्कृतिक एकता की सूचक हैं।
जैन, सिक्ख और बौद्ध धर्म सांस्कृतिक दृष्टि से हिन्दू-संस्कृति के ही अंग हैं। हिन्दू-संस्कृति की छाया इन धर्मों के अन्दर दिखलाई देती है। इन सभी धर्मों में ओंकार को श्रेष्ठ स्थान दिया गया है तथा कोई भी मन्त्र पढ़ने से पहले ओंकार ध्वनि का उच्चारण अवश्य लिया जाता है। गंगामाता और गोमाता के प्रति इन सभी धर्मों में समान श्रद्धा-भावना है। हिन्दू संस्कृति के ये सभी अंग पुनर्जन्म पर विश्वास किया करते हैं।
भारत की सांस्कृतिक एकता की बात करते हुए बाबू गुलाब रायजी कहते हैं-“मैत्री, करुणा, मुदिता और उपेक्षा की शिक्षा हिन्दू, जैन और बौद्धधर्मों में समान रूप से प्रतिष्ठित है। स्वस्तिक चिह्न और ओंकार को हिन्दुओं और जैनों में समान रूप से माना जाता है। हाथी, कमल तथा पीपल आदि वृक्ष बौद्ध और हिन्दू धर्म के लोगों में समान रूप से पूजित हैं। जैनों का अणुव्रत, हिन्दूधर्म के योगशास्त्र में ‘यम’ और बौद्धों के ‘पंचशील’ प्रायः एक ही हैं।
भारत देश की सांस्कृतिक परम्परा अनादि एवं सनातन है। यह सृष्टि के आदिकाल के प्रारम्भ से ही चली आई है और इसका प्रलय काल में भी विनाश नहीं होता। भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिए परमपिता परमात्मा स्वयं पृथ्वी पर अवतार लेते हैं। गीता का निम्न श्लोक इसी बात को प्रकट करता है-
“यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारतः।।
अभ्युत्थानम् धर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥”
दुनिया के अनेक देशों की संस्कृति पैदा हुईं और मिट गईं। काल के थपेड़ो ने अनेक संस्कृतियों को धूल मिट्टी में मिला दिया लेकिन हमारे देश की संस्कृति अभी भी अपना सीना ताने गर्व के साथ खड़ी है। भारत की सांस्कृतिक एकता ही इस देश की संस्कृति का रक्षा-कवच है।