बाल श्रमिक और उनकी समस्या
Bal Shramik aur Unki Samasya
हमारे देश की जितनी विशालता है, उतनी ही इसकी समस्याएँ है। देश का ऐसा कोई भाग नहीं है जो समस्याग्रस्त न हो। देश का प्रत्येक स्वरूप किसी-न-किसी। प्रकार की समस्या में उलझा हुआ है। हमारे देश की खाद्य-समस्या, महँगाई की समस्या, जनसंख्या की समस्या, बेरोजगारी की समस्या, दहेज-प्रथा की समस्या, सती–प्रथा की समस्या, जातिप्रथा की समस्या, भाषा की समस्या, क्षेत्रवाद की समस्या, साम्प्रदायिक की समस्या आदि न जाने कितनी ही समस्याएँ हैं, जिनसे आज विकास की वह रूपरेखा नहीं दिखाई पड़ती, जिसकी कल्पना आजादी मिलने के बाद हमने की थी। जो कुछ भी हो, हमारे देश में अन्य समस्याओं की तरह बाल-श्रमिकों की समस्या प्रतिदिन बढ़ती हुई हमारे चिन्तन विषय का एक प्रधान कारण बनी हुई है। इसका समाधान करना हमारा परम कर्तव्य है।
हमारे देश में बाल-श्रमिकों की समस्या क्यों है। किस प्रकार से उत्पन्न होकर आज हमारे लिए एक चुनौती बनी हुई है। इस पर विचारना बहुत ही आवश्यक और उचित जान पड़ता है।
हमारे देश में बाल-श्रमिक निर्धनता की अधिकता के फलस्वरूप है। गरीबी सिर पर सवार होने के कारण बहुत से माता-पिता अपने बच्चों का लालन-पालन करने में असमर्थ हो जाते हैं। वे अपने दुःखद अभावग्रस्त जीवन के कारण अपने बच्चों का भरण-पोषण के स्थान पर उनसे कुछ आय प्राप्त करना चाहते हैं। इसलिए उन्हें किसी काम-धन्धे या मजदूरी करने के लिए मजबूर कर देते हैं। इस तरह से ये बच्चे असमय में ही श्रमिक की जिन्दगी बिताने लगते हैं।
सन् 1983 को प्राप्त सूचना के अनुसार हमारे देश के जो बाल-मजदूर या बाल-श्रमिक हैं, उनकी आयु लगभग 5 वर्ष से 12 वर्ष तक है। इस आयु के बच्चे अनपढ़ और पढ़े-लिखे दोनों ही प्रकार के हैं। इस आयु के बच्चे हमारे देश में करीब 6 करोड़ हैं। इनमें 3 करोड़ के आस-पास लड़के हैं तो 2 करोड़ से कुछ अधिक लडकियों की संख्या है। वे बच्चे न केवल एक राज्य या क्षेत्र से सम्बन्धित हैं, अपित। इनकी सम्बन्ध पूरे देश से है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि हमारे देश के। बाल-श्रमिक सभी भागों में छिटपुट रूप से हैं, जो एक राष्ट्रीय-समस्या को उत्पन्न करने के लिए एक महान् कारण बने हुए हैं। प्राप्त आँकड़ों के अनुसार हमारे देश के विभिन्न राज्यों के अन्तर्गत बाल-मजदरों की संख्या अलग-अलग है। आन्ध्र प्रदेश में 25 लाख 40 हजार, महाराष्ट्र में 15 लाख 28 हजार, कर्नाटक में 11 लाख 25 हजार, गुजरात में 12 लाख 13 हजार, राजस्थान में 24 लाख 40 हजार, पश्चिम बंगाल में 2 लाख 57 हजार और केन्द्रशासित प्रदेश दिल्ली में 1 लाख 90 है। यह ध्यान देने की बात है कि ये संख्याएँ इन राज्यों के स्कूली शिक्षा से सम्बन्धित है।
अगर हम समस्त देश की बाल-श्रमिक की समस्या के प्रति ध्यान दें, तो हम यहं पायेंगे कि हमारे देश में बाल मजदूरों की समस्या समान रूप से नहीं है। यों तो बाल श्रमिक पूरे देश में हैं। लेकिन कहीं अधिक हैं, तो कहीं बहुत कम हैं। यह समझा जाता है कि बाल श्रमिकों की संख्या हमारे देश के उत्तरी भाग में पुरे देश की तुलना में कहीं अधिक है। उत्तर-प्रदेश, बिहार, बंगाल, मध्य-प्रदेश और उड़ीसा में भी बाल श्रमिक अधिक हैं।
बाल-मजदूर या बाल श्रमिकों की बढ़ती हुई संख्या हमारे राष्ट्र की एक व्यापक समस्या हो गयी है। इसका निदान आवश्यक है। अभी हमारे लिए एक अच्छा अवसर है कि इस समस्या की शुरूआत बहुत दिन का नहीं है, अपितु यह समस्या छ । ही दशकों की है। इसलिए इसका निदान कुछ ही वर्षों के अन्तर्गत किया जा सकता है।
हमारे देश में बाल-श्रमिकों की दशा को सुधारने के लिए हमें सबसे पहले इनकी दुर्दशा को समझना और देखना चाहिए। हमें यह पता लगाना चाहिए कि बालक का अन्य किसी मजदूर या श्रमिक क्यों बनाए जाते हैं या हो जाते हैं। इस विषय में यह कह सकते हैं कि बहुत से माता-पिता अपनी निर्धनता के फलस्वरूप अपने बालकों को पूरी तरह से शिक्षा या अन्य किसी प्रकार से उनके जीवन को अच्छा नहीं बना पाते हैं। वे उनकी सहायता के द्वारा अपना जीवन निर्वाह करना चाहते हैं। इसलिए बच्चे गाँवों से शहरों में अपनी इस विवशता को लिए हुए जाते। हैं। शहरों के कल-कारखानों, होटलों, दुकानों इत्यादि स्थानों पर अपना भरण-पोषण करते हुए अपने परिवार के लोगों की अवश्य कुछ आर्थिक सहायता किया करते हैं। यहाँ पर बच्चों की दयनीय दशा पर तनिक भी ध्यान न देते हुए उनका अत्यधिक ‘शोषण उनके मालिक किया करते हैं। यही नहीं, कुछ ऐसी भी असामाजिक और कठोर प्रकृति के व्यक्ति होते हैं, जो बच्चों को चकमा देकर उनका अपहरण करके उन्हें बेच देते हैं। इन्हें ऐसी जगह पर बेचते हैं, जहाँ इनसे 16 से 18 घण्टे तक काम लिया जाता है, या इनसे भीख मॅगवाने या इन्हें और किसी धन्धे में लगा दिया जाता है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि हमारे देश के बाल-मजदूर अत्यन्त कष्टमय दशा को भोग रहे हैं। इनके जीवन स्तर को सुधारने और बाल मजदूर (बाल श्रमिक) की समस्या का समाधान करने के लिए सरकार को कड़े-से-कड़ा निर्देश लागू करना चाहिए। इसका सहयोग हमें अवश्य हमें देना होगा, तभी यह कार्य सार्थक होगा।