बैसाखी का मेला – पंजाब
Baisakhi ka Mela – Punjab
बैसाख की पहली तारीख को बैसाखी होती है। इस दिन हमारा नः साल शुरू होता है।
हम सुख में हों या दुख में, बैसाखी हर साल आती है। जब हम गुल थे तब भी बैसाखी आती थी। जब हम आज़ाद हुए। तब भी बैसाखी आती है। हम उसका सन्देश सुनें या न सुनें, बैसाखी हर साल आती रहती है। अब आया करती है और सदा आती रहेगी। वह आएगी और चली जाएगी पुरानी होकर भी नई है।
जैसे वही का वही सूरज हर रोज निकलता है। फिर भी वह हर रोज नया होता है। चिड़ियां यह कहकर उदास नहीं होतीं कि यह कल का सूरज फिर आ गया है। वह हर रोज नये दिन का सन्देश लेकर आता है। हर नई आशाएं लेकर आता है और हर रोज़ नया जीवन देकर जाता है। उसी बैसाखी भी हजारों बरसों से चली आ रही हैं। वह हर साल आती है। वह कभी पुरानी नहीं होती क्योंकि वह नये साल का सन्देश लेकर आती है।
बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि लेय।
हमारे देश में पुराने समय से महीने चांद के हिसाब से गिने जाते हैं। बरस सूरज के हिसाब से गिने जाते हैं। सूरज के हिसाब से बरस का आरम्भ पहली बैसाखी को पड़ता है।
उस दिन रात के बारह बजे पुराना बरस विदा हो जाता है। सुबह नया एक बजता है। सुबह नई एक तारीख आती है। नया सूरज उगता है। नया इन्सान जागता है। नया जीवन आरम्भ होता है।
नये साल की खुशी में नदियों पर मेले लगते हैं। गंगा और यमुना में स्नान करके लोग शरीर के दुःख-सन्ताप उन्हीं में बहा देते हैं। मन के पापों को तीर्थों पर भुला देते हैं। वहां से नई उमंगें लेकर आते हैं। उस दिन लोग नये से नये कपड़े पहनते हैं।
मेले से बालक नये खिलौने और नई मिठाइयां लेकर लौटते हैं। कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता। घर-घर में बधाइयां बंटती हैं। घर-घर में मंगल-गीत गाए जाते हैं। बरस का पहला दिन शुभ होगा तो सारा बरस शुभ बीतेगा—यह सोचकर हर एक हिन्दुस्तानी बैसाखी को पूरी सजधज से मनाता है। भगवान करे ऐसी बैसाखी हमेशा जीवन में आती रहे ! हर-हर साल हम नये सिरे से नया जीवन शुरू करते रहें।