बैसाखी का त्यौहार
Baisakhi Festival
भूमिका- वही राष्ट्र सशक्त होता है जो समय-समय पर अपने पर्व और उत्सव मनाता रहता है। एक उत्सव या पर्व मनाने से हजारों वर्ष पुराना इतिहास जागृत हो जाता है। बच्चे, बूढ़े, जवान एवं नारी वर्ग उस उत्सव से वर्ष भर कुछ न कुछ प्रेरणा प्राप्त करते रहते हैं। वैसाखी भी भारत को ऐसे ही पर्यों में से एक है। भारतवर्ष उत्सवों और पों का देश है। इसके पूरे वर्ष में एक नहीं अनेक उत्सव या पर्व मनाए जाते हैं। सिक्खों के गरुपर्व, हिन्दुओं के मानधन होली. विजय दशमी, दीपावली, मुस्लमानों का ईद, इसाईयों का क्रिसमस का दिन इस तरह एक नहीं अनेक पर्व है जो भारत वर्ष में मनाए जाते हैं और ये पर्व सभी सम्प्रदाय मिलकर मनाते हैं। इन. उत्सवों. पर्यों में खुशियों से भरा वैसाखी का पर्व है।
वैसाखी- अनेक दृष्टि कोण- वैसाखी का धर्म भावना से गहरा सम्बन्ध है। इस दिन ब्राह्मण अपने यजमानों के घर जाकर स्वष्ति वाचन करते हैं। नवग्रह पूजन करते हैं। यजमान यथाशक्ति अपने पुरोहित ब्राह्मण को सन्तुष्ट करता है। बहुत से श्रद्धालु लोग तीर्थों में जाकर स्नान करते हैं। अगर कोई ऐसा न कर पाए तो वह गंगा जल डाल कर स्नान करता है। वैसाखी एक ऐसा पर्व है जिसे उत्तर भारत और दक्षिण भारत से सभी लोग हर्ष और उल्लास से मनाते हैं क्योंकि उन सब का विचार है कि वैसाखी से वर्ष का आरम्भ होता है। बहुत से लोग अपना काम वैसाखी के दिन शुरू करते हैं। इस तरह वैसाखी का धार्मिक ही नहीं सामाजिक महत्त्व भी है।
सिक्खों के दसवें गुरू गोबिन्द सिंह जी ने वैसाखी के दिन अपने शिष्यों की भरी हुई सभा में कहा था, “कि कोई है जो धर्म पर बलिदान देना चाहता हो। आज मेरी तलवार खून की प्यासी है। गुरू जी महाराज ने तीन बार ये वाक्य दोहराए। शिष्यों में सन्नाटा छा गया। आखिर एक शिष्य उठा। गुरू जी उसे खेमे में ले गए और खून से भरी तलवार लेकर पुन: मण्डप में आ गए। इस प्रकार गुरू जी ने पाँच बार पुकार लगाई और पाँच प्यारे सिक्खों में प्रसिद्ध हो गए।
पंजाब निवासी जहाँ भी होगा वह 1919 की खून भरी वैसाखी को नहीं भूल सकता। इस दिन अनेक माताओं की गोद सूनी हुई। अनेक बहिनों और बेटियों के भाई और पिता बिछुड़े। अनेक पत्नियों के सिंदूर पोछे गए। वैसाखी के दिन लगभग 2000 व्यक्ति शहीद हुए थे।
प्रकृति और वैसाखी- प्रकृति का भी वैसाखी से गहरा सम्बन्ध है। वैसाखी के दिन सर्दी समाप्त होनी है और वसन्त ऋतु आती है। वैसाख के महीने में नए जोड़े सज-धज कर निकलते हैं। इस महीने में बागों की शोभा कुछ और ही हो जाती है। वैसाखी का ग्राम्य जीवन से भी गहरा सम्बन्ध है। वैसाख के तीन दिन पहले ही भंगड़ा डाला जाता है और तरह-तरह की पंजाब की बोलियां गाई जाती हैं। पंजाब में करतारपुर की वैसाखी का मैला बहुत प्रसिद्ध है। हिन्दु मन्दिरों में, सिक्ख गुरुद्वारों में जाकर प्रार्थना करते हैं कि हमारा नववर्ष मंगलमय हो।
उपसंहार- वैसाखी का मेला प्रसन्नता और उल्लास का मेला है। लोग इस दिन अपना नया काम आरम्भ करते हैं। बड़े दु:ख से लिखना पड़ता है कि राष्ट्र के पर्व और उत्सव आज उतने उत्साह से नहीं मनाए जाते जितने की पहले समय में मनाए जाते थे। इसका एक कारण तो कमर तोड़ महँगाई है। कुछ लोग नास्तिक होते जा रहे हैं। लोग इन उत्सवों और पर्वो के महत्त्व को नहीं समझते।