अपना हाथ जगन्नाथ
Apna Hath Jagnnaat
जो व्यक्ति ईश्वर पर, अपने आप पर और अपने परिश्रम पर भरोसा रखता है। वह जीवन में कभी असफल नहीं होता। वह जो चाहे कर सकता है। ऐसे ही व्यक्तियों के लिए कहा गया है कि अपना हाथ जगन्नाथ’। भाव यह है कि हम जिस प्रकार ईश्वर पर विश्वास रखते हैं उसी प्रकार अपने हाथों पर अर्थात अपनी शक्तियों पर भी भरोसा करें। मनुष्य प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ है, उसके पास अनन्त शक्ति है। इस शक्ति का बहुत बड़ा भाग उसके अपने हाथों में है। मनुष्य के इन्हीं हाथों ने अब तक बहुत कुछ खाजे निकाला है, बना डाला है। अपना हाथ जगन्नाथ’ कहावत में एक अत्यन्त महत्वपू” सन्देश छिपा हुआ है। वह यह कि व्यक्ति को स्वावलम्बी होना चाहिए अधिक अपने हाथों की शक्ति पर भरोसा होना चाहिए और हर काम अपने हाथों ही करना चाहिए। अपने हाथों से किये गए काम में एक विशेष प्रकार का आनन्द प्राप्त होता है। कबीर जी ने
ठीक ही कहा है-
करु बहियां बल अपनी, छाड़ परायी आस।
जिसके आंगन है नदी, सो कत मरत पियास ॥
अर्थात् जिसके आँगन में नदी बहती हो वह कभी प्यासा नहीं मर सकता। इसी प्रकार अपने हाथों से काम करने वाला कभी भूखा-प्यासा नहीं रह सकता। आजकल दूसरे के हाथों से काम करवाने का जो रिवाज चल पड़ा है उसके कारण कई समस्याएँ खड़ी हो गयी हैं। जो घरेलू औरतें गृह कार्य स्वयं न कर नौकर-नौकरानियों से करवाती हैं उन्हें मोटापा, ब्लड प्रैशर, हृदय रोग जैसी कई बीमारियां लग जाती हैं। अपने हाथों पाले-पोसे बच्चे का जिस तरह का विकास होता है वैसा भला नौकरों के हाथों पले-बच्चे का क्या हो सकता है। जब किसी देश का प्रत्येक व्यक्ति अपने भीतर इस प्रकार का आत्म-विश्वास जगा लिया करता है, तब उस देश और जाति को आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता। जापान का उदाहरण हमारे सामने है। वहां का प्रत्येक नागरिक अपने हाथों पर विश्वास रखता है, अपने हाथों कार्य करता है। वहां का प्रत्येक घर एक छोटा कारखाना है। जापान ने अमरीका और इंग्लैण्ड जैसे देशों को यह प्रमाणित कर दिखाया है कि अपना हाथ ही जगन्नाथ होता है। भारत सरकार ने भी इसी उद्देश्य को सामने रखते हुए देश में आई० टी० आई० संस्थानों का जाल बिछा दिया है किन्तु क्या इससे अपने हाथों में काम करने की भावना लोगों में जागृत हो पाई है ? खेद के साथ कहना पड़ता है कि नहीं। आज एक इंजीनियर दफ्तर में कुर्सी पर बैठा मात्र प्रशासन चलाता है। कागजों पर कलम घिसाता है, हाथ से कोई काम नहीं करता। भाखड़ा डैम बनाने वाले इंजीनियर मिस्टर सलोकम अपनी कार खराब हो जाने पर उसके नीचे लेट कर भी उसे स्वयं ठीक किया। करते थे किन्तु हमारे इंजीनियर किसी मैकेनिक के हाथों की तरफ देखते हैं। वे अपने हाथ गन्दे नहीं होने देना चाहते। तब अपना हाथ जगन्नाथ कैसे होगा। याद रखिए अपने हाथों। काम करने वाला, चाहे वह कोई छोटा-मोटा मैकेनिक ही क्यों न हो कभी भूखा नहीं मर सकता। फिर इस महंगाई के दौर में तो हमें, जबकि मुरम्मत इतनी महंगी हो गई है, हमें हर काम अपने हाथों करना सीखना पड़ेगा तब कहीं हमारा गजारा होगा। अपना काम। स्वयं करने में हमें न तो कोई शर्म होनी चाहिए और न ही झिझक। ‘हमें अपना हाथ जगन्नाथ’ में निहित सन्देश को समझना होगा।
Thank you
it was very helpful.