आध्यात्मिक विकास
Adhyatmik Vikas
हमारे देश में एक ऐसा मी युग था जब नैतिक और आध्यात्मिक विकास ही जीवन का वास्तविक लक्ष्य माना जाता था। अहिंसकी भावना सवारिधी। आज पूरा जीवन-दर्शन ही बदल गया है। सर्वत्र पैसे की हाय-हाय तथा धन का उपार्जन ही मुख्य क्षेप होगया है, भले ही इन-उपार्जन के तरीके गलत हो क्यों न हों? इन सबका असर मनुष्य के प्रतिदिन के जीवन पर पड़ रहा है। समाज का वातावरण दुषित हो गया है-बाहवातावरण तो दुषित है हो: आज सब जानते हैं कि पर्यावरण की समस्याएँ कितनी चिंतनीय हो उड़ी है। इन सबके कारण मानसिक और शारीरिक तनाव-खिंचाव और व्याधियाँ पैदा हो रही हैं