आधुनिक समाज में महिला का अस्तित्व
Adhunik Samaj me Mahila ka Astitva
भूमिका- नारी आदिकाल से माँ, बहन, पत्नी, मित्र आदि अनेक रूप में मानव समाज के सामने आती रही है। महिला और पुरुष जीवन रूपी रथ के दो समान पहिए हैं। उनमें से किसी एक के बिना जीवन अधूरा रह जाता है। नारी पत्नी के रूप में परामर्श देने वाली और माँ के रूप में हमारी गुरु है। दोनों का सबल होना जरूरी है। महिला के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए कुछ अधिकारों की आवश्यकता है जिनका वर्णन नीचे किया गया है।
समानता का अधिकार- प्राचीनकाल नारी को पुरुष की जूती समझा जाता था। आज नारी को हमारे सविधान में समानता का अधिकार दिया गया है। आज नारी को मतदान का अधिकार दिया गया है। आज नारी भारत के बड़े से बड़े पद पर आसीन हैं। आज नारी पुरुष के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर चल रही है। आज नारी को प्रत्येक क्षेत्र में चुनाव लड़ने का अधिकार है। समाज के हर क्षेत्र में नारी ने अपना उच्च स्थान बना लिया है। आज की नारी ने पुरुषों को पछाड़ दिया है। महिला वर्ग में चेतनता जागृत हो गई है। नारी ने अपनी शक्ति को पहचान लिया है।
सामाजिक स्वतन्त्रता का अधिकार- प्राचीनकाल में हमारे समाज में महिला-वर्ग पर अनेक सामाजिक अन्याय व अत्याचार किए जाते रहे हैं। उसे पर्दा-प्रथा का पालन करना पड़ता था। कभी-कभी महिला की इच्छा के विरुद्ध भी विवाह किया जाता है। अब सामाजिक स्वतन्त्रता का अधिकार मिल गया है। सामाजिक स्वतन्त्रता के अभाव में नारी का जीवन अत्यन्त कष्टमय बन जाता है। नारी को स्वतन्त्रता का अधिकार मिलना चाहिए ताकि वह अपनी इच्छानुसार विवाह कर सके और अपना जीवन अपने ढंग से जी सके।
शिक्षा का अधिकार- शिक्षा के अभाव से नारी में अज्ञानता पैदा हो गई। अज्ञानता को कारण ही स्त्रियों में हीन भावना उत्पन्न हो गई और वह तरह-तरह के अत्याचार सहन करती रही। ऐसी स्थिति से बचने के लिए महिला को शिक्षा का अधिकार दिया गया। शिक्षा ग्रहण करके आज महिलाएं जीवन के हर क्षेत्र में पुरुष के समान आगे बढ़ रही है। आज महिला योग्य डाक्टर, योग्य अध्यापिका यहाँ तक कि कुशल पुलिस अधिकारी और बैंक मैनेजर आदि है। आज महिला पायलट के रूप में हवाई जहाज तक को चला रही है।
न्याय का अधिकार- हमारे समाज में महिला वर्ग पर अत्याचार होते रहे हैं और उनसे अन्याय किया जाता रहा है। आज स्वतन्त्र भारत में भी महिलाओं को पूर्ण न्याय नहीं मिल पाता। पुरुष-प्रधान समाज में कदम-कदम पर महिलाओं पर अन्याय हो रहा है। न्याय की दृष्टि से महिला वर्ग के साथ पक्षपात नहीं होना चाहिए। दहेज की कमी के कारण नारियों को पीड़ित किया जाता है। यहाँ तक कि उन्हें आत्महत्या के लिए भी विवश होना पड़ता है। जीवन में न्याय मिलना अति अनिवार्य है।
विचारों को अभिव्यक्त करने की स्वतन्त्रता- हमारे समाज में महिला वर्ग को अपने विचार अभिव्यक्त करे की स्वतन्त्रता न थी। महिलाओं को भी पुरुषों के समान विचार अभिव्यक्त करने की स्वतन्त्रता होनी चाहिए। वही राष्ट्र सभ्य व उन्नत कहा जा सकता है जहाँ पर प्रत्येक नागरिक को लिखने व भाषण देने की स्वतन्त्रता हो। यदि महिलाओं को बोलकर या लिखकर भाषण देने का अधिकार नहीं होगा तो उनका बौद्धिक विकास सम्भव नहीं होगा।
अत: महिला वर्ग को विचारों को अभिव्यक्त करने का अधिकार अवश्य मिलना चाहिए। ऐसा ध्यान में रहे कि इस अधिकार का दुरप्रयोग न हो।
राजनीतिक स्वतन्त्रता का अधिकार- आज का युग स्वतन्त्रता का युग है। प्रत्येक प्राणी स्वतन्त्रता चाहता है। यहाँ तक कि पशु पक्षी भी स्वतन्त्रता चाहते हैं वे कैद नहीं होना चाहते। अधिकतम की ओर से सभी नागरिकों को राजनीतिक स्वतन्त्रता का संविधान दिया गया है। महिला वर्ग को फिर इस अधिकार से वंचित क्यों रखा जाए। महिलाओं को राजनीति में भाग लेने की स्वतन्त्रता होनी चाहिए ताकि वे विधानसभा और लोकसभा में जाकर महिलाओं के पक्ष में आवाज उठा सके। भारत वर्ष में आज प्रत्येक क्षेत्र में महिलाओं के लिए स्थान आरक्षित कर दिए गए हैं। आज गाँव की पंचायत से लेकर राष्ट्रपति तक में महिला वर्ग के स्थान सुरक्षित हैं।