आदर्श शिक्षा प्रणाली
Adarsh Shiksha Pranali
भूमिका- पृथ्वी पर जीवन की उन्नित और विकास की कहानी अत्यन्त प्राचीन है। कन्दराओं और गुफाओं में जीवन व्यतीत करने वाला आदि मानव धीरे-धीरे प्रकृति पर विजय प्राप्त करता आ रहा है। अपनी बुद्धि के प्रयोग से मानव ने प्रकृति के सभी जीवधारियों को नियंत्रित करने का यत्न किया। बुद्धि द्वारा सोचने और विचारने से तथा लगातार किसी समस्या के समाधान को ढूंढने के लिए उठ कर कार्य किया और उस पर विजय प्राप्त की। आज मनुष्य ने ज्ञान का उपयोग किया और नई दिशाओं की फिर खोज की। इस खोज और उबलब्धि में शिक्षा ने उसे सर्वाधिक सहायता की।
शिक्षा का अर्थ- शिक्षा का साधारण अर्थ है कुछ सीखना किसी समस्या के सम्बन्ध में जानना और ज्ञान प्राप्त करना ही शिक्षा है, लेकिन शिक्षा का अर्थ यही तक सीमित नहीं है। शिक्षा व्यक्ति के अन्दर के गुणों का विकास भी करती है तथा उसकी पशु प्रवृति को भी नियन्त्रित करती है। शिक्षा मानव के शरीर और आत्मा का विकास करती है। शिक्षा द्वारा मनुष्य के चरित्र का विकास होता है। शिक्षा के माध्यम से ही व्यक्ति जीवन संघर्ष के लिए तत्पर होता है। महात्मा गाँधी जी के अनुसार, “शिक्षा जो हमारा चरित्र निर्माण नहीं करती वह अर्थहीन है।”
प्राचीन शिक्षा प्रणाली- प्राचीन शिक्षा प्रणाली वास्तव में सुन्दर, सफल शिक्षा प्रणाली थी। लोग अपने-अपने घरों में शिक्षा का विशेष प्रवन्ध करते थे। वैसे शिक्षा आश्रमों और गुरुकुलों में दी जाती थी। गुरुकुल में गुरु के चरणों में बैठकर शिक्षा ग्रहण की जाती की। वहां शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य मानव को मानव बनाना होता था। गुरुकुल में आरम्भ में सबको एक जैसी शिक्षा दी जाती थी। सभी शिष्यों का धर्म आरम्भ में सबको एक जैसी शिक्षा दी जाती थी। सभी शिष्यों का धर्म, समाज, कर्त्तव्य-अकर्त्तव्य से परिचित करवा कर उसे श्रेष्ठ मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया जाता है। प्राचीन भारतीय शिक्षा का आदर्श व्यक्ति के चरित्र का निर्माण करना था। इस शिक्षा प्रणाली में ऊंचनीच, धनी और निर्धन का कोई भेदभाव नहीं था। राम और कृष्ण ने गुरुकुल में ही शिक्षा प्राप्त की थी। इसके बाद नालन्दा जैसे विश्वविद्यालयों में पढ़ने की सुविधा थी। संक्षेप में कहा जा सकता है कि प्राचीन शिक्षा प्रणाली मानव धर्म पर आधारित होती थी चरित्र विकास पर अधिक बल दिया जाता था। राजा और रंक की शिक्षा एक समान रूप से होती थी।
आधुनिक शिक्षा प्रणाली- आधुनिक शिक्षा प्रणाली प्राचीन शिक्षा पद्धति से बिल्कुल भिन्न हो गई है। स्कूलों में प्रारम्भिक शिक्षा दी जाती है तथा कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में उच्च शिक्षा की व्यवस्था है। आज ज्ञान के क्षेत्र ने विकसित रूप धारण कर लिया है। शिक्षा को अनेक वर्गों में बांट दिया है जैसे- कला, वाणिज्य तथा विज्ञान आदि | भिन्न-भिन्न शाखाओं में बांटा गया है। शिक्षा के माध्यम, स्कूल की स्थिति में बहुत अन्तर है। धन के आधार पर उच्च वर्ग की शिक्षा तथा निर्धन की शिक्षा में स्पष्ट अन्तर उत्पन्न हो गया है। धनी व्यक्ति मंहगे स्कूलों में बच्चों को शिक्षा दिलाते हैं जबकि निर्धन समाज के लिए शिक्षा का स्तर बहुत निम्न है। राजकीय तथा पब्लिक स्कूलों ने गाँव तथा शहर की शिक्षा में बहुत बड़ी खाई उत्पन्न कर दी है। आज का शिशु पाठ्यक्रमों के बोझ से लदा, पुस्तकों और विषयों के बोझ से दबा स्कूल के नाम से घबराता है। पाश्चात्य जगत् की शिक्षा पद्धति का अनुसरण करके भारतीय शिक्षा मूल्यहीन हो गई है। शिक्षा का उद्देश्य आत्मिक विकास से न होकर केवल नौकरी प्राप्त करना ही रह गया है।
आदर्श शिक्षा- आदर्श शिक्षा का स्वरूप आधुनिक शिक्षा से भिन्न होगा। आज के बच्चों के मानसिक विकास, मनोविज्ञान, रुचि तथा परिस्थितियों को भांपते हुए ही बच्चों को अलग-अलग विषय पढ़ने के लिए चुनने होंगे। भारतीय संस्कृति से गुरु, माता-पिता तथा अपनों से बड़ों का सम्मान करना, अपने से छोटे बड़ों के साथ शिष्ट व्यवहार करना मानवता के प्रति प्रेम, क्षमा, त्याग, दया, उदारता आदि गुणों की शिक्षा विश्व से अशान्ति, छीनाछपती, चोर बाजारी तथा अमानवीय कर्मों को मिटा सकती है। शिक्षा का उद्देश्य चरित्र निर्माण भी होना चाहिए। उच्च शिक्षा की व्यवस्था छात्र के मानसिक स्तर और प्रतिभा को ध्यान में रखते हुए होनी चाहिए। विज्ञान की शिक्षा विश्व की समृद्धि के लिए होनी चाहिए नाकि विनाश के लिए। शिक्षा ग्रहण करने में किसी प्रकार का भी भेद-भाव नहीं होना चाहिए। शिक्षा में अन्य प्रकार के सभी भेद-भाव मिटाने होंगे।
उपसंहार- आदर्श शिक्षा का उद्देश्य मानव हित और विश्व-हित होना चाहिए। यदि शिक्षा केवल पेट भरने का साधन बनेगी तो चारित्रक तथा नैतिक मूल्यों का पतन होगा। इस प्रकार विश्व में अशान्ति फैलेगी। राग द्वेष की भावना जागृत होगी। शिक्षा का अर्थ अपने मस्तिष्क को ढेर सारी जानकारी से भर लेना नहीं, जो जीवन भर वहां बिना प्रयोग में लाए निरर्थक पड़ी रहे, हमें आवश्यकता है जीवन निर्माण, मनुष्य निर्माण, चरित्र निर्माण करने वाले गूढ़ विचारों की। सत्य, शिव और सौन्दर्य ही शिक्षा के मूल उद्देश्य हैं।