आदर्श मित्र
Adarsh Mitra
मानव एक सामाजिक प्राणी है। उसका अस्तित्व समाज में ही है। वह कभी भी अकेला नहीं रह सकता। कहते हैं कि अकेला तो वृक्ष भी नहीं होनाचाहिए। अकेला चना भी भाड़ नहीं फोड़ सकता। मनुष्य अपने विचारों के आदान-प्रदान के लिए समाज में कुछ व्यक्तियों से अपने मधुर सम्बन्ध स्थापित कर लेता है। जिसके साथ वह अपने सुख-दुख बांटता है। प्रत्येक मानव की अपनी समस्या होती है जो वह अपने माँ-बाप, भाई-बहन से नहीं सुलझा सकता। ऐसी समस्याओं का समाधान जिस व्यक्ति के पास होता है, उसे मित्र कहा जा सकता है। मित्र के बिना मनुष्य का जीवन नीरस प्रतीत होता है। किन्तु संसार में ऐसे गिने-चुने सौभाग्यशाली व्यक्ति है जिन्हें आदर्श और सच्चे मित्र की प्राप्ति होती है। मित्रता श्री कृष्ण और सुदामा जैसी होनी चाहिए। मित्रता मछली और जल जैसी होनी चाहिए। मछली पानी से अलग होते ही प्राण त्याग देती है। सच्चा मित्र व्यक्ति के मुसीबत के समय काम आता है। सच्चा मित्र गरीबी और दुःख आने पर साथ नहीं छोड़ता है। कहते हैं कि व्यक्ति के पास भले ही धन और शक्ति का अभाव हो किन्तु वह एक सच्चे निस्वार्थ मित्र के सम्पर्क में है। तो उसे संसार की सबसे अमूल्य वस्तु प्राप्त होती है। मित्रता सोच समझ कर करनी चाहिए और जब मित्रता हो जाए तो लाख मुसीबतें आने पर भी उसका साथ नहीं छोड़ना चाहिए।