आदर्श अध्यापक
Adarsh Adhyapak
गुरु का शाब्दिक अर्थ है- श्रेष्ठ-बड़ा। हमारे समाज अष्ठ-बड़। हमारे समाज में गुरु का स्थान सर्वोपरि है। तभी तो कबीरदास जी ने कहा है-
गुरु गोबिंद दोऊ खड़े काके लागू पाए ।
बलिहारी गुरु आपने गोबिंद दियो मिलाए।
गुरु-शिष्य परंपरा प्राचीन काल से ही चली आ रही है। राजा-महाराजा भी अपने बच्चों को पढ़ने के लिए गरुकुल भेजा करते थे। उन गरुकलों में 1 थाउन गुरुकुलों में गुरु के स्नेह एवं कठोर अनुशासन के अधीन सभी विद्यार्थी विद्याध्ययन करते थे। इस परंपरा से विद्यार्थियों का जीवन स्थिर बनता था। वे जीवन की उच्छंखलता से हट कर तटस्थता एवं अनुशासन में लीन होते थे। गुरु उन्हें आदर्श मानव बनाते थे। गुरु के बिना ज्ञान असंभव है और ज्ञान के बिना अध्यात्म। इसलिए प्राचीन काल से अध्यात्मवादी भारतीय समाज में गुरु का स्थान सर्वोपरि रहा है।
गुरु कुम्हार सिष कुंभ है, गढ़ि गढि काढ़े खोट |
अंतर हाथ सहारे दे, बाहर, बाहे चोट ।
गुरु की अवहेलना करने से समाज विनाश को प्राप्त होता है। बड़े-बड़े ज्ञानी, संतों, महात्माओं को भी गुरु जैसी नौका ने ही पार उतारा है। कबीर, तुलसी, नानक, जायसी आदि इस बात के प्रमाण हैं। जीवन रूपी सागर में संघर्ष की शक्ति गुरु द्वारा ही प्राप्त होती है। गुरु के उचित मार्गदर्शन से हमें जीवन की उचित दिशा मिलती है। गुरु की । महिमा को दर्शाते हुए कबीरदास जी ने कहा है- गुरु ईश्वर से भी महान है क्योंकि गुरु हमें ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग दर्शाता है; सत्य का ज्ञान कराता है और कठिन परिस्थितियों में संघर्ष करने की प्रेरणा प्रदान करता है। गुरु ज्ञानवान, विचारशील और एक गंभीर चिंतक होता है तथा सादा जीवन व्यतीत करता है। दिन-रात अपनी अध्यापन कला में निखार लाने के लिए वह प्रयास करता रहता है। अध्यापक होते हुए भी वह विद्यार्थी के समान ज्ञानार्जित करने की । जिज्ञासा से ओत-प्रोत रहता है। अपनी एवं विद्यार्थी वर्ग की शंकाओं का समाधान करने के लिए निरंतर शास्त्र-चिंतन करता रहता है। स्वयं जल कर दूसरों को प्रकाश देना ही उसके जीवन का ध्येय होता है ।
आदर्श गुरु अपने विद्यार्थियों को शुभ संस्कारों से सजाता रहता है। उचित जीवन-मूल्यों का रोपण करता है। और शिक्षा देकर समाज एवं राष्ट्र का ज़िम्मेदार नागरिक बनाता है। आज देश को चाणक्य जैसे गुरुओं की आवश्यकता । है जो देश की वर्तमान स्थिति को परखें, समझें और तदनुरूप अपने शिष्यों को गढ़े। वर्तमान समय में गुरु-शिष्य-संबंधों । में बहुत अधिक परिवर्तन आ गया है। आज अध्यापक अर्थाभाव से पीड़ित होने के कारण जीवन की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए स्वार्थी हो गया है। इसलिए गुरुओं के सम्मान में अंतर आया है। किंतु आदर्श अध्यापक आज । भी वैसे ही सम्मान के अधिकारी हैं। अध्यापकों को चाहिए कि वे स्वार्थ को भुलाकर देश की भावी पीढ़ी को योग्य बनाने का प्रयास करें।