आज का विद्यार्थी
Aaj ka Vidyarthi
भूमिका- व्यक्ति और समाज एक-दूसरे के पूरक हैं। विद्वानों की धारणा रही है कि कभी व्यक्ति से सम बनता है और कभी समाज व्यक्ति को बनाता है। यह सत्य है कि परिवर्तन ही समाज और व्यक्ति को प्रभावित का है। मानव जीवन और समाज इसी परिवर्तन के कारण नए विश्वास और नवीन जीवन पद्धति अपनाता है। इसी स्थि को आज के विद्यार्थी के जीवन में स्पष्ट रूप से प्रभावी देखा जा सकता है। आज का विद्यार्थी नए परिवेश परिस्थितियों में तीव्र गति से बदलता जा रहा है।
जीवन का वास्तविक लक्ष्य- यह कहना कि विद्यार्थी जीवन का लक्ष्य विद्या, ज्ञान को ग्रहण करना है। यह विचार न तो पुराना हो गया है और न ही ‘आऊट डेटिड’ हो गया है। यह तर्क स्वीकार किया जाता है कि विद्यार्थी शब्द के अर्थ वे नहीं समझते। विद्या क्या है ? विद्या ज्ञान है। ज्ञान की परिधि बहुत अनुशासन को अपना सकता है पर उसका उद्देश्य उसमें निपणता एक पर्णता प्राप्त करना आवश्यक है। विद्यार्थी जीवन का वास्तविक लक्ष्य हाक वह अपने अध्ययन के प्रति इमानदार रहे, अपने विषय का पूरा ज्ञान प्राप्त करे। प्राचीनकाल में गुरुकुल व्यवस्था में जो ज्ञान प्रदान किया जाता था, वह ज्ञान जीवन और व्यवहार पथ्क नहीं होता था अपितु जीवन से जुड़ा होता था। आज स्थिति बदल गई है। विद्यालय और कॉलजों में पठन और पाठन अपनी गरिमा और महत्त्व को खो बैठे हैं। इसके साथ ही इस तथ्य से भी मुख नहीं मोड़ा जा सकता है कि विद्यार्थी अपने लक्ष्य को भूल गया है और अपने मार्ग से भी भटक गया है। विद्यार्थी जीवन का सम्पूर्ण लक्ष्य यही होना चाहिए कि वह अपने अध्ययन के प्रति निष्ठा और संकल्प के साथ अध्ययन करे। बड़े दुःख और शर्म की बात है कि आज का स्नातक 2-4 पक्तियां किसी भी भाषा में शुद्ध नहीं लिख सकते। उसके जीवन का सीधा और एक ही लक्ष्य होना चाहिए कि अपने आप को सभी विवादों से दूर रखकर वह अध्ययन करे।
वर्तमान युग में विद्यार्थी की स्थिति एवं दशा- यह कहना सत्य है कि वर्तमान युग में अनुशासनहीनता का बोलवाला है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र, प्रत्येक देश में एक ऐसी अराजकता की स्थिति पैदा हो गई है जिससे लोग पीड़ित हैं। ऐसी स्थिति में विद्यार्थी, विद्यालय भी अछूते नहीं रह गए हैं। इस भौतिकता की युग में आरामदायक जीवन व्यतीत करने के लिए धन की आवश्यकता होती है और धन इमानदारी के मार्ग से प्राप्त नहीं किया जा सकता। नैतिक एवं मानवीय मूल्यों को ताक पर रखकर धन प्राप्ति, सुख प्राप्ति की दौड़ आरम्भ हो गई है। आज के युग में विद्यार्थी की दशा एंव दिशा दोनों ही शोचनीय हैं। इस स्थिति के लिए विद्यार्थी भी दोषी है। अपराधी प्रकृति की राजनीति ने विद्यार्थी को डस लिया है। राजनीतिक चेतना के नाम पर इसकी युवा शक्ति, ऊर्जा और भावना का शोषण किया जाता है। आज के युग में पक्षपात, भाई-भतीजावाद तथा रिजर्वेशन की वोट की राजनीति ने उसके भविष्य को अन्धकार बना दिया है। दसरा वह इसके लिए स्वयं दोषी है क्योंकि अध्ययन के प्रति उसकी रूचि नहीं है। अपने माता-पिता. गुरुजनों और बड़ों का आदर नहीं करता। अनुशासनहीनता उसे पसन्द है। वह रातों रात धन कमाकर अमीर बनकर सभी सःखों को भोगना चाहता है। नशों का आदि होकर माता-पिता के लिए दुःख का कारण बन जाता है।
उपसंहार- आज के विद्यार्थी को अपने लक्ष्य को सम्मुख रखकर दिशा निर्धारित करनी चाहिए। उसे अपने अध्ययन के प्रति इमानदार होना चाहिए। युग की बदलती हुई परिस्थितियों के प्रति भी सर्तक रहना चाहिए। विद्यार्थी को अपने सुखों को त्याग कर विद्या की प्राप्ति के लिए जुट जाना चाहिए तभी उसकी दशा एवं दिशा सार्थक होगी।