अंजलि भागवत
Anjali Bhagwat
जन्म : 5 दिसम्बर, 1969
जन्मस्थान : मुम्बई (महाराष्ट्र)
अंजलि भागवत, जिसका पूरा नाम अंजलि वेद पाठक भागवत है, ने 2002 के मानचेस्टर राष्ट्रमंडल खेलों में अनेकों पदक जीतकर धूम मचा दी थी।
वह इन खेलों में व्यक्तिगत व पेयर स्पर्धाओं में 4 स्वर्ण पदक जीतकर सुर्खियों में आ गई। उसे वर्ष 2000 में अर्जुन पुरस्कार दिया गया और 2002 के राष्ट्रमंडल खेलों की उपलब्धियों के लिए वर्ष 2003 में ‘राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार दिया गया। यह पुरस्कार उसे बीनामोल के साथ संयुक्त रूप से प्राप्त हुआ। इसके अतिरिक्त उसे छत्रपति पुरस्कार, महाराष्ट्र गौरव पुरस्कार तथा महाराष्ट्र प्रतिष्ठा पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं।
अंजलि भागवत ने अपने शूटिंग कैरियर की शुरुआत मुम्बई के कीर्ति कालेज के एन.सी.सी. के कैडेट के रूप में की। उसका पूर्व नाम अंजलि वेद पाठक है। उसने छात्रा के रूप में कैडेट बन कर ही महाराष्ट्र राइफल एसोसिएशन में स्थान पाया। उसके पश्चात उसने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
अंजलि शुटिग के क्षेत्र में अकस्मात ही आई। एक बार उसे अचानक कीर्ति कालेज में पढ़ते समय एन. सी. सी. की इन्टर कालिजिएट शूटिंग प्रतियोगिता में भाग लेना पड़ा क्योंकि उसमें भाग लेने वाली स्कूल की कैडेट बीमार पड़ गई थी। चूंकि अंजलि जूडो-कराटे में ग्रीन बेल्ट थीं और पर्वतारोहण में सक्रिय छात्रा थी, अतः उसे उसके स्थान पर भाग लेने को कहा गया। प्रारम्भ में अंजलि ने मना किया, परन्तु उसे भाग लेना पड़ा। उसके निशाने एक-एक कर के चूकते गए वह भी इंचों के आधार पर नहीं मीटर की दूरी पर।
जब वह वहां से जाने लगी तो महाराष्ट्र राइफल एसोसिएशन के अध्यक्ष बी.बी. राम ने उसे देखा और उसे कुछ समझाते हुए पुनः कोशिश करने का आग्रह किया। दरअसल राज्य की टीम में कुछ महिलाओं की आवश्यकता थी। दूसरे स्थानों पर घूमने की लालसा में अंजलि ने शूटिंग में और नए समूह में शामिल हो गई। दस ही दिनों में उसने काफी कुछ सीख लिया और राष्ट्रीय रजत पदक जीत लिया। इससे अंजलि का हौसला बढ़ा और उसने शटिंग न छोड़ने का निर्णय लिया। बस यहीं से भारत की शुटिंग स्टार अंजलि वेद पाठक का जन्म हुआ।
1988 में अंजलि ने अहमदाबाद में होने वाले राष्ट्रीय खेलों में भाग लिया। सिडनी में होने वाले ओलंपिक में वर्ष 2000 में अंजलि ओलंपिक के फाइनल में पहुंचने वाली दूसरी भारतीय महिला बन गई। उससे पूर्व उड़नपरी पी.टी. उषा ही ऐसी भारतीय एथलीट रही जो ओलंपिक के फाइनल में पहुंच सकी थी।
अंजलि भागवत ने म्यूनिख में होने वाले विश्व कप फाइनल में रजत पदक प्राप्त किया। वर्ष 2002 में अंजलि को विश्व की नम्बर एक वरीयता खिलाड़ी चुना गया। इसके अतिरिक्त उसने इसी वर्ष पुरुषों व महिलाओं के मुकाबले में जीत हासिल करके चैंपियन ऑफ चैंपियन का खिताब हासिल किया।
1998 तथा 2001 में अंजलि ने कॉमनवेल्थ खेलों में चार स्वर्ण पदक प्राप्त किए। उसकी सफलता का श्रेय उसके कोचों को जाता है। कोच संजय चक्रवर्ती तथा हंगेरियन कोच लेस्लो सुजाक ने अंजलि को खेल की बारीकियां सिखा कर उसे सफलता दिलाई।
अंजलि ने अपनी सफलता के लिए कड़ी मेहनत की है। मुम्बई के अंधेरी के अपने घर से महाराष्ट्र राइफल एसोसिएशन, वर्ली तक आने-जाने में यात्रा में लम्बा समय बिताया करती थी। वह याद करती हैं उन क्षणों को जब छह प्रतियोगियों को एक ही राइफल से काम चलाना पड़ता था। वह कहती हैं लेकिन यह सब तो क्षणिक बाते हैं। योग तथा आत्ममंथन के बाद आपको शूटिंग के वक्त अपने आसपास की कोई भी चीज़ याद नहीं रहती। तब केवल आपका ध्येय आपको याद रहता है।
आज अंजलि का विवाह हो चुका है। उसके पति मंदार भागवत उसे पूरा सहयोग देते हैं। वह खिलखिलाकर हंसती हैं, बात करती हैं। अंजलि की सुन्दर नाकनक्श को देखकर उसके घर विज्ञापन तथा फिल्मों के ऑफर भी आए थे। इस बारे में पूछे जाने पर अंजलि बताती है, मलयालम फिल्म निदेशक जयराज ने मुझे बुलाकर कहा था कि उसके पास मेरे लिए एक फिल्म की स्क्रिप्ट है। मंने उसे हंस कर टाल दिया। मेरे पास फिल्मों की शूटिंग के लिए वक्त नहीं है, मैं अपनी शूटिंग में ही व्यस्त हूं।
अंजलि का विवाह वर्ष 2000 में मंदार के साथ हुआ था जो कि अरेन्जड विवाह था। अंजलि का कहना था कि विवाह के वक्त मंदार खुश था कि मेरी ।
पत्नी 9 से 5 बजे तक की नौकरी नहीं करती। इसी लिए में भी उत्साहित थी। हमारी तीन मुलाकातों के बाद हमने एक दूसरे को हां कह दिया। लेकिन तभी में चैंपियनशिप के लिए बाहर चली गई और डेढ़ माह के पश्चात् लौटी तब मुझे डर लग रहा था कि लौटते वक्त एयरपोर्ट पर मंदार को कैसे पहचानेगी। वैसे में घर पर सभी घरेलु काम बखूबी निभाती हैं।
अंजलि के पति मंदार की इच्छा है कि उसकी पत्नी सर्खियों में छाई रहे और देश का नाम रोशन करे। अंजलि भागवत केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल में खेल कोटे के अन्तर्गत इंस्पेक्टर पद पर कार्यरत है। अंजलि को विश्वास है कि क्रिकेट की भांति एक दिन शूटिंग का खेल भी दर्शकों में लोकप्रिय होगा।
अंजलि ने बताया-अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर हर शूटर का अपना कोच, मनोवैज्ञानिक व मैनेजर होता है जो खिलाड़ी की हर आवश्यकता का ध्यान रखता है, इससे खिलाड़ी को आगे बढ़ने में बहुत मदद मिलती है। चूंकि हमें ऐसी कोई सहुलियत नहीं मिलती। अतः हमारी सफलता बहुत मेहनत से मिली सफलता होती है। मुझे याद है म्यूनिख में मेरा पासपोर्ट गुम गया था तब भी चैंपियन ऑफ चपियंस टूर्नामेंट में मैंने टॉप किया था।
2000 के सिडनी ओलंपिक में फाइनल में जगह बनाने वाली अंजलि पहली महिला शूटर है। फाइनल में आठ प्रतियोगियों के बीच वह मात्र 493.1 अंक बना कर अंतिम स्थान पर रही।
अंजलि, जो देखने में एक खिलाड़ी कम और फैशन मॉडल ज्यादा लगती है, ने बताया ‘‘मेरे लिए यह बहुत मेहनत व त्याग का समय रहा। जब मैं अपने कैरियर पर नज़र डालती हूं तो लगता है कि भगवान का शुक्र है कि मैं आगे बढ़ती रही। हमारा बैच भारत में प्रथम शूटर बैच था, अतः हमारे कोच संजय चक्रवर्ती ने सब तरह के नुस्खे हम लोगों पर आजमाए। फिर हंगरी के कोच लैसलो सिज़ाक ने आकर हमारी तकदीर बदल दी।”
वह नियमित रूप से योगाभ्यास, मानसिक व्यायाम, श्वास सम्बन्धी व्यायाम व शूटिंग अभ्यास करती हैं। वह स्त्री होने पर गर्व महसूस करती है। अंजलि का कहना है-“राइफल शूटिंग एक दिमागी खेल है और आपकी सफलता मुख्य रूप से आपके मनोवैज्ञानिक संतुलन पर निर्भर करती है।”
निशानेबाज़ी यानी शूटिंग के खेल में दो वर्ग होते हैं – पिस्टल (छोटी बैरल), राइफल (लम्बी बैरल)। यह स्पर्धा पुरुष व महिला वर्ग की होती है। तीन तरह निशानेबाजी की जाती है-खड़े होकर, घुटनों पर बैठकर, लेट कर। महिला वर्ग के 50 मीटर की दूरी पर खड़े होकर निशानेबाजी की जाती है। ओलंपिक में एयर राइफल 10 मीटर व स्पोर्टस राइफल (तीन पोजीशन में) 50 मीटर की प्रतियोगता होती है। वैसे यह काफी मंहगा शौक व महंगा खेल है।
उपलब्धियां :
- 1909 में अंजलि को शिव छत्रपति अवार्ड दिया गया।
- 1909 में अंजलि को ‘महाराष्ट्र गौरव पुरस्कार देकर सम्मानित कियागया।
- वर्ष 2001 में कशाबा जाधव अवार्ड दिया गया।
- वर्ष 2002 में अंजलि को अमेरिकन सोसायटी की ओर से “यंग एचीवर”।
- अवार्ड दिया गया। 8 वर्ष 2003 में उसे ‘महाराष्ट्र शान’ पुरस्कार दिया गया है।
- वर्ष 2000 में अंजलि को सर्वाधिक महत्त्वाकांक्षी पुरस्कार-‘अर्जुनपुरस्कार’ प्रदान कियागया।
- आई.एस.एस.एफ रेटिंग के अनुसार अंजलि काफी समय तक 10मी.एयर राइफल स्पर्धा में महिलाओं में एक नम्बर स्थान (रैंक 1) रही। में वर्ष 2009 में सिडनी विश्व कप में 397/400 अंक पर अंजलि ने रजतपदक प्राप्त किया।
- वर्ष 2002 में ही अटलांटा विश्व कप में अंजलि ने अपना रिकार्ड सुधारते हुए 399/400 का स्कोर बनाकर रजत पदक जीता।
- म्यूनिख वर्ल्ड कप 2002 में अंजलि ने रजत पदक हासिल किया औरइस स्पर्द्ध में पदक जीत कर अंजलि ने यह पदक जीतने वाली प्रथमभारतीय शटर होने का गौरव हासिल किया। में यहां अंजलि ने ‘चैंपियंस ट्राफी’ जीती और उसे वर्ष 2002 का ‘‘चौंपियनऑफ चैंपियन्स’ घोषित किया गया। एयर राइफल के महिला, पुरुषव मिश्रित श्रेणी में उसे इस पुरस्कार के लिए चुना गया।
- जनवरी 2002 में अंजलि ने डेन हेग एयर वेपन चैंपियनशिप में विश्वरिकार्ड की बराबरी करते हुए चार स्वर्ण, सात रजत व एक कास्यवर्ष 2002 में मानचेस्टर राष्ट्रमंडल खेलों में 4 स्वर्ण पदक जीते। ये पदक उसने व्यक्ति व पेयर स्पर्धाओं (एयर राइफल, स्माल बोर राइफल श्री पोजीशन) प्राप्त किए।
- ‘सैमसंग इंडिया’ ने उसे ओलंपिक के लिए स्पांसर किया था। में वर्ष 2005 में हीरो होंडा स्पोट्स अकादमी ने शूटिंग की वर्ष 2004 की श्रेष्ठतम खिलाड़ी के रूप में नामांकित किया।
- वर्ष 2006 में मेलबर्न (आस्ट्रेलिया) में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में अंजलिने पेयर्स स्पर्धा में रजत पदक प्राप्त किया। 2003 में अंजलि भगत को ‘राजीव गाँधी खेल-रत्न’ पुरस्कार दिया गया।