हिन्दी-भारत का गौरव
Hindi-Bharat ka Gourav
प्रेमचंद की ‘रोशनी’ कहानी का ‘कथावाचक’ इंग्लैण्ड से आई.सी.एस. उत्तीर्ण कर अफ़सर के रूप में कार्यरत है। उसका विश्वास है कि पश्चिमी सभ्यता, शिक्षा और जीवन-शैली से ही भारत का कल्याण होगा और इसकी अशिक्षा, जड़ता, अतीत-पूजा, पत्थर-पेड़-पूजा आदि का अंधकार इसी से दूर होगा, परंतु उसके तूफान में फँसने पर गाँव की एक देहातिन विधवा उसे मार्ग दिखाती है और ध्यान रखती है कि गर्द-गुबार में वह रास्ता न भूल जाए। इस उपकार के बदले वह आई.सी.एस. अफ़सर से पाँच रुपए भी नहीं लेती। अफ़सर गाँव के लोगों को ज़ाहिल, मूर्ख और बेखबर मानने की अपनी मूर्खता पर लज्जित होता है और देहाती औरत के साहस, कर्त्तव्यपालन, स्वाभिमान, सेवाभाव तथा ईश्वर विश्वास आदि को देखकर मान लेता है कि एक देहातिन भी आत्मिक शिक्षा एवं संस्कृति के उच्च स्थान पर बैठी हो सकती है, और इस आत्मिक उन्नयन के लिए पश्चिमी शिक्षा या जीवन-शैली की आवश्यकता नहीं होती। प्रेमचंद उस गँवार देहाती, अनपढ़ औरत को मनुष्यता के शीर्ष पर प्रतिष्ठित करते हैं जिसके प्रभाव से अंग्रेज़ी संस्कृति का भक्त और भारतीयता से नाक-भौंह सिकोड़ने वाला अफसर भी एक अच्छा मनुष्य बन जाता है। प्रेमचंद की यही विशेषता है जो उन्हें अन्य कथाकारों से भिन्न पंक्ति में विशेष स्थान देती है। पढ़े-लिखे और संभ्रांत कहे जाने वाले पात्रों के दंभ को वे अपनी कलम से तार-तार कर देते हैं।
क्यों पढ़ें हिंदी यह सवाल अक्सर पूछ लिया जाता है कि हिंदी में आखिर ऐसा क्या है जो हमें हिंदी पढ़नी चाहिए। इसके कई कारण हैंसबसे पहला कारण तो यह है कि यह हमारी राष्ट्रभाषा है। जिस तरह तिरंगा हमारा राष्ट्रीय ध्वज है, जनगणमन हमारा राष्ट्रीय गीत है उसी तरह हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है। जिस तरह हम राष्ट्रीय गीत का अपमान नहीं कर सकते और राष्ट्रीय ध्वज का अपमान नहीं कर सकते। उसी तरह हिंदी का भी अपमान नहीं कर सकते।
हिंदी में हमारी सांस्कृतिक, ऐतिहासिक धरोहर सुरक्षित है। हिंदी पढ़कर ही हम उसे जान सकते हैं। हिंदी हमारे देश का गौरव है। उसके गौरव को सुरक्षित रखना हम सबकी ज़िम्मेदारी है। हिंदी हमें नैतिक और ईमानदार बनाती है क्योंकि इसी में हमें नैतिक बनने के गुण मिलते हैं इसलिए हिंदी पढ़ाना अनिवार्य है।
जो भारतीय नागरिक हिंदी में बात करना अपना अपमान समझता है वह राष्ट्रभक्त नहीं है। वह स्वार्थभक्त है। हमारे दशा के राजनेता लोकसभा में अंग्रेज़ी में पढ़ना, बोलना, लिखना अपना स्वाभिमान समझते हैं पर सही अर्थ में वे देशभक्त न होकर स्वार्थभक्त हैं क्योंकि जब उन्हें चुनाव लड़ना होता है तब वे जनता के बीच आकर हिंदी में वोट माँगते हैं लेकिन जीत जाने के बाद फिर अंग्रेजी उनकी माँ-बाप हो जाती है। भारतीय संविधान ने हमें हिंदी में काम करने की पूरी आजादी दी है। हम हिंदी में सरकारी गैरसरकारी काम कर सकते हैं। हम अपनी बात सरकार को हिंदी में लिख-बोलकर कह सकते हैं। ऐसा करने से हम कोई नहीं रोक सकता। जब हमें हिंदी में काम करने की पूरी सुहूलियत और कानूनी अधिकार है तब भी अंग्रेजी में काम करत हैं तो इसका अर्थ यह है कि हम देश्भक्त नहीं है। हमें अपनी राष्ट्रभाषा से प्रेम नहीं है।
हममें से बहुत-से लोग अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ाते हैं। उनसे अंग्रेजी में बात करते हैं. हिंदी बोलने पर फटकारते हैं। उनकी मानसिकता यह है कि हिंदी पढ़ने वालों को रोजगार नहीं मिलेगा। अगर वे अपने बच्चों को अंग्रेजी नहीं पढाएँगे तो वे इंजीनियर डॉक्टर नहीं बन पाएंगे। न ही अच्छे उद्योगपति बन पाएँगें। इसलिए वे अपने बच्चों को हिंदी नहीं पदाते। विडवना यह है कि जो हिंदी से अपनी रोटी-रोजी चलाते हैं. वे भी अपने बच्चों को हिंदी पढ़ाना पसन्द नहीं करते। वे जानते हैं कि हिंदी परी तरह से रोजगारपरक भाषा है। लेकिन फिर भी अंग्रेजी स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाते-लिखाते हैं। ऐसा वही लोग करते हैं जिन्हें हिंदी से प्यार नहीं है, अपने देश से प्रेम नहीं हैं। ऐसे लोग स्वार्थी हैं। उद्योगपति को जब उत्पाद बेचना होता है तो विज्ञापन हिंदी में देता है। जब सरकारी गैर-सरकारी संस्थानों को अपने उद्योग से संबंधित चिट्ठी आदि लिखनी होती है तो तब अंग्रेजी याद आ जाती है।