हमारा राष्ट्रीय झंडा
Hamara Rashtriya Jhanda
हमारा राष्ट्रीय झंडा तीन रंगो का है, इसलिए हम उसे तिरंगा झंडा कहते हैं। यह ऊपर से नीचे तीन रंगो की समान पट्टियों का बना है। गहरा केसरिया रंग सबसे ऊपर है। केसरिया रंग त्याग और बलिदान का प्रतीक है। बीच की पट्टी का रंग सफेद है, जो सच्चाई और ईमानदारी का प्रतीक है। इसी के बीचो-बीच चौबीस डंडो वाला नीले रंग का चक्र दोनों और उभरा है। यह चक्र प्रगति का प्रगति का प्रतीक है। सबसे नीचे की पट्टी गहरे हरे रंग की है। गहरा हरा रंग हमारी धरती की हरीतिमा का प्रतीक है।
देखिए कवि ने इसे गीत मे कितनी खूबी से उतारा है
झंडा ऊँचा रहे हमारा,
जैसा नभ मे चाँद-सितारा!
केसरिया बल भरने वाला,
सादा है सच्चाई,
हरा रंग है, हरी हमारी,
धरती की अंगड़ाई।
और चक्र कहता है,
हमारा कदम कभी न रूकेगा।
झंडा ऊँचा सदा रहेगा।
राष्ट्रीय झंडे के रंगों की यह योजना एक युवक ने गांधीजी के समक्ष सन 1921 ई0 की अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की विजयवाड़ा बैठक में रखी थी। महात्मा गांधी ने उसके बीच की सफेद पट्टी में चरखे का चित्र देने का सुझाव दिया, जो स्वदेशी भावना का प्रतीक है।
वर्तमान राष्ट्रीय झंडा 22 जुलाई 1947 के संविधान ने स्वीकार किया। इसमें चरखें का स्थान लिया धर्म चक्र या अशोक चक्र ने। वास्तव में चरखा दोनों और सीधा नहीं आ सकता था। एक ओर तो ठीक दिखाई देता था, लेकिन दूसरी ओर उलटा दिखता था। धर्म चक्र या अशोक चक्र दोनों ओर से सुविधापूर्वक अंकित किया जाता है।
तिरंगा झंडा हमारी राष्ट्रीय स्वतंत्रता एवं सममन का चिह्न है। जब तक यह शान से फहराता है, तभी तक हमारा राष्ट्र का अस्तित्व है। इसलिए इसका सम्मान करना और इसके सम्मान की रक्षा करना प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य है। स्मरणीय है कि लाखों भारतीय वीरों ने अपने प्राणों की बलि देकर असह्य कष्ट और प्रताड़ना सहकर, भारत को स्वतंत्र कराया और स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद ही हम इसे फहराने के अधिकारी हए। याद रखिए स्वतंत्र देश के नागरिक ही अपने राष्ट्रीय झंडे को फहराने के अधिकारी होते हैं, इसलिए हमें इसकी रक्षा भारी-से-भारी मूल्य चुकाकर भी करनी चाहिए।
राष्ट्रीय झंडे को फहराने की निश्चित विधियाँ हैं। हमें उनका पालन बड़ी कठोरता से करना चाहिए। राष्ट्रीय झंडे के प्रति यही सम्मान प्रकट करने का तरीका है। स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त) और गणतंत्र दिवस, (26 जनवरी) को हम इसे जहाँ चाहे फहरा सकते हैं। राष्ट्रपति, राज्यपाल, मंत्रियों आदि के अलावा और कोई इसे अपनी गाड़ी पर नहीं फहरा सकता। फहराते समय या उतारते समय कभी भी भूमि-स्पर्श नहीं होने देना चाहिए। इसके अलावा इसे जहाँ-तहाँ नहीं रखना चाहिए। साथ ही कभी इसका अपने पैर से स्पर्श नहीं होने देना चाहिए। संक्षेप में इसे बड़ी सावधानी और यल से रखना चाहिए और इसके सम्मान की रक्षा किसी भी कीमत पर करनी चाहिए।