गुरु नानक जयन्ती
Guru Nanak Jayanti
सिक्ख धर्म के जन्मदाता हैं गुरु नानक! इनका जन्म संवत् 1526 कार्तिक पूर्णिमा के दिन हुआ था। पंजाब का शेखूपुरा जिले का तलवंडी ग्राम इनकी जन्मस्थली है। इनके पिता मेहता कल्याणचंद खत्री व माता तृप्ति थीं ।
नानक बचपन से ही तीव्र बुद्धि थे। प्रारंभ से ही इन्हें साधु-संतों की संगत भली लगती थी। मात्र 19 वर्ष की आयु में नानक का विवाह सुलक्षणी नाम की कन्या से हो गया। नानक ने तीस वर्ष की आयु में ही घर-बार व परिवार को छोड़ दिया। नानक ने चार बार पंजाब की यात्राएँ कीं। इन यात्राओं को चार उदासियों के नाम से जाना जाता है। वर्षों लग गए इन यात्राओं में!
कई वर्ष बाद वापस ये अपने परिवार के पास लौटे और सपरिवार करतारपुर में बस गए।
गुरु नानक ने मक्का, ईरान व बगदाद देशों की यात्रा भी की। उनकी मक्का यात्रा का एक संस्मरण बहुत प्रसिद्ध है। कहते हैं एक दिन वे सो रहे थे तो उनके पैर एक मस्जिद की तरफ थे। उन्हें एक काजी ने टोका। बोला, “तुम ईश्वर की तरफ पाँव करके क्यों लेटे हो?” नानक ने मुस्कुराते हुए काजी से पूछा, “भाई, मेहरबानी करके मुझे यह बताओ कि ईश्वर किस ओर नहीं है। मैं उसी ओर अपने पाँव करके सोऊँ।” नानक ने इस छोटी-सी घटना से सहज ही यह सिद्ध कर दिया कि ईश्वर तो सर्वव्यापी है। हर दिशा में है।
इसी प्रकार ढोंग और पाखंड व अंधविश्वासों के खिलाफ थे नानक । वे मूर्तिपूजा में भी विश्वास नहीं करते थे। एक बार कुछ लोग अपने मृत परिजनों का श्राद्ध कर रहे थे। नानक ने देखा वे सब पूर्व दिशा में पानी डाल रहे हैं। नानक तुरंत पश्चिम दिशा में पानी डालने लगे। लोगों ने पूछा, ” आप पश्चिम में पानी क्यों डाल रहे हैं?”
“आप लोग जो श्राद्ध कर रहे हैं वह आपके पूर्वजों तक पहुँच सकता है तो मैं पश्चिम में पानी इसीलिए डाल रहा हूँ कि वह मेरे खेतों को मिल जाए।” नानक बड़ी से बड़ी बात को आसानी से समझा देते थे । वे सदा युद्ध-लड़ाई व अहिंसा के खिलाफ थे। उनका संदेश प्रेम और भाईचारा है।
नानक बहुत दयावान थे, खुशमिजाज व मृदुभाषी भी थे। कभी किसी को कठोर वचन नहीं बोलते थे। एक बार अपने पिता से धन लेकर व्यापार संबंधी कुछ सामग्री खरीदने जा रहे थे। रास्ते में उन्हें कुछ भूखे-प्यासे लोग मिल गए। नानक के पास जो धन था उन्होंने भूखे-प्यासों को खिलाने-पिलाने पर खर्च कर दिया। स्वयं बिना सामान लिए खाली हाथ वापस घर लौट आए! पिता के पूछने पर नानक का उत्तर था, “आज मैंने सच्चा सौदा किया है।” कहते हैं इस दिन के बाद से गरीबों, भूखे-प्यासों की सेवा ही उनका मुख्य उद्देश्य बन गया।
नानक के दो पुत्र उत्पन्न हुए थे श्रीचन्द और लक्ष्मीचंद ! नानक द्वारा रचित ‘जपजी साहब’ एक पवित्र ग्रंथ है। संपूर्ण सिक्ख समाज गुरु द्वारा लिखे इस गुरु ग्रंथ की ही पूजा करता है। ग्रंथ में लिखी इनकी वाणी का ही पालन करते हैं। नानक द्वारा रचित वाणियों का संकलन सिक्खों के पाँचवें गुरु श्री अर्जुनदेव ने किया था।
नानक सभी जाति, धर्म और वर्ग के लोगों को समान मानते थे। उनके मन में हर धर्म के प्रति आदर-सम्मान था। चाहे जैन धर्म हो या बौद्ध धर्म, ईसाई धर्म हो या हिन्दू धर्म। वे सब धर्मों की इज्जत करते थे। हर धर्म की अच्छी बातों का आदर करते थे!
नानक के बाद उनके प्रिय शिष्य लहना खत्री अंगददेव के नाम से सिक्खों के दूसरे गुरु बने ।
इस महान संत की जयन्ती मनाकर उनकी वाणी को शिरोधार्य करते हुए सभी धर्म और जाति के लोग एक होकर रहने का संकल्प लें।
कैसे मनाएँ गुरु नानक जयन्ती
How to celebrate Guru Nanak Jayanti
- आयोजन स्थल को सजाया जाए।
- गुरु नानक के चित्र को माल्यार्पण किया जाए। दीप प्रज्वलित किया जाए।
- नानक ढोंग, पाखंड और अंधविश्वास के खिलाफ थे। गरीबों और भूखे-प्यासों की सेवा उनका मुख्य उद्देश्य था । वे सब धर्मो का आदर करते थे। उनके इन महान उद्देश्यों से संबंधित जीवन के प्रसंग व घटनाएँ बच्चों को सुनाई जाएँ।
- उनका संक्षिप्त जीवन परिचय दिया जाए।
- ‘गुरु ग्रंथ साहब’ का संगीतमय पाठ किया जाए।
- नानकजी के वचन पोस्टरों पर लिखकर विद्यालय में लगाए जाएँ।
- गुरु नानक की वाणी में क्या लिखा गया है इस संबंध में बच्चों को जानकारी दी जाए।