गुरबचन सिंह रंधावा
Gurbachan Singh Randhawa
जन्म : 6 जून, 1939 जन्मस्थान : नांगली, पंजाब
लोग इन्हें जी. एस. रधावा के नाम से जानते हैं। रंधावा भारत के सर्वश्रेष्ठ एथलीटों में से एक हैं।
उनके भीतर एक जन्मजात श्रेष्ठ खिलाड़ी की ऐसी छिपी हुई प्रतिभा रही कि वह जिस खेल के खिलाड़ी बनते, उसी खेल में बेहतरीन प्रदर्शन करते रहे। रंधावा ट्रैक एंड फील्ड प्रतियोगिताओं के ऐसे पहले एथलीट रहे जिन्हें 1961 में अर्जुन पुरस्कार’ प्रदान किया गया। वह एथलेटिक्स में ऊंची कद. भाला फेंक, बाधा दौड़ जैसे खेलों में राष्ट्रीय चैंपियन रहे।
गुरबचन सिंह रंधावा का जन्म पंजाब में अमृतसर जिले के नांगली गांव में हुआ था। उन्हें भारत का सर्वाधिक प्रतिभावान एथलीट भी कहा जाता है। वे छह फुट कद के पतले-दुबले एथलीट रहे। वह जन्मजात श्रेष्ठ खिलाड़ी माने जाते हैं। उनकी शिक्षा अमृतसर के खालसा कॉलेज से हुई। रंधावा ने अपने स्कूल तथा कॉलेज के समय से ही खेलों में सफलता के झंडे गाड़ने आरम्भ कर दिए थे। वह पंजाब विश्वविद्यालय के ‘स्टार एथलीट’ थे जिन्हें ऊंची कूद, बाधा दौड़ तथा ‘डिकेथलॉन’ जैसे खेलों में महारत हासिल थी। रंधावा ने 21 वर्ष की आयु में राष्ट्रीय खेलों में सफलता प्राप्त की। 1960 में दिल्ली में हुए राष्ट्रीय खेलों में उन्होंने सी. एम. मुथैया का राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ दिया।
गुरबचन सिंह रंधावा का परिवार खेलों से सम्बंध रखता है। उनके पिता अपने समय में पंजाब के प्रसिद्ध एथलीट थे। गरबचन ने अपने पिता के कारण ही एथलीट बनने का निर्णय लिया था। अपने पिता का अनुसरण करते हुए उन्होंने बाधा दौड़ को गम्भीरता पूर्वक अपनाया था।
जी.एस. रंधावा की श्रेष्ठता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने एथलेटिक्स के कई खेलों में हाथ आजमाया। उनकी प्रतिभा को देखकर कहा जाता था कि वे जिस खेल को चाहते थे उसी खेल में विजय हासिल करके दिखा सकते थे। उन्होंने पहले ‘डिकैथलॉन’ को चुना, फिर उनकी निगाह ओलंपिक पदक जीतने की ओर थी।
रंधावा 1950 के दशक के अंतिम वर्षों में खेलों में आये। जब उन्होंने खेलों की दुनिया में क़दम रखा तब चीमू मुथैया भारत के सर्वश्रेष्ठ आल राउंडर एथलीट थे जो बाद में कोच बन गए और उसके पश्चात् स्पोर्ट्स अथारिटी ऑफ इंडिया के निदेशक पद पर रहे। मुथैया ने भारत के एथलीट के तौर पर जो कीर्तिमान कायम किए थे, उन तक पहुंचना उस वक्त असम्भव-सा लगता था। लेकिन कुछ। ही वर्षों में जी.एस. रंधावा ने असम्भव को न केवल सम्भव कर दिखाया वरन ‘डिकैथलॉन’ जैसे एथलेटिक खेलों को नई दिशा प्रदान की। वह एक अत्यन्त होनहार खिलाड़ी थे, ऊपर से सेन्ट्रल रिज़र्व बल के कर्मचारियों ने उन पर दबाव डालकर उनकी खेल की इच्छा को इतना बलबती बना दिया कि वह शीघ्र ही जेवलिन, लम्बी कूद, ऊंची कूद, बाधा दौड़, ‘टेन-इन-वन डिकैथलॉन’ जैसे खेलों के राष्ट्रीय चैंपियन बन गए।
1962 के जकार्ता एशियाई खेलों में भी उन्होंने बाधा दौड़ में भाग लेकर 15 सेकंड में दूरी को पार किया। यहां भी वह पांचवें स्थान पर रहे थे। इसके पश्चात् दो वर्ष बाद उन्होंने इसी प्रकार की दौड़ लगाकर ओलंपिक में भी पांचवां स्थान प्राप्त किया। यहां उन्होंने भाला-फेंक (जेवलिन) में भी भाग लिया और 59.61 मीटर की दूरी तक भाला फेंक कर वह पांचवें स्थान पर रहे। इन दोनों खेलों की प्रतियोगिताओं के बीच उन्होंने ‘डिकैथलॉन’ प्रतियोगिता में भाग लिया और 6739 अंक बनाकर स्वर्ण पदक जीता। कोई अन्य एथलीट उस वक्त इतना साहसी नहीं था कि एक ही मीट में इतने खेलों में भाग ले सके और विजयी हो सके।
ओलंपिक खेलों के फाइनल में भाग लेने वाले गुरबचन दूसरे भारतीय थे। उन्होंने 1964 के टोकियो ओलंपिक में 110 मीटर बाधा दौड़ में हिस्सा लिया था और 14 सेकंड का बेहतरीन रिकॉर्ड बनाया था। यद्यपि वह पांचवें स्थान पर रहे परन्तु उनका निकाला समय आज भी भारतीय रिकॉर्ड है।
ट्रैक एंड फील्ड एथलेटिक्स में वह देश के पहले एथलीट थे जिन्हें 1961 में अर्जुन पुरस्कार दिया गया।
उपलब्धियां :
- वह भाला-फेंक, बाधा दौड़, ऊंची कूद, लंबी कूद तथा ‘डिकैथलॉन’ के राष्ट्रीय चैंपियन रहे।
- 1964 के टोकियो ओलंपिक खेलों में फाइनल तक पहुंचने वाले वह दूसरे भारतीय एथलीट थे।
- 1964 के टोकियो ओलंपिक में उन्होंने 110 मीटर बाधा दौड़ में 14 सेकण्ड का रिकॉर्ड समय निकाला तथा 5वें स्थान पर रहे। 14 सेकण्ह का रिकॉर्ड 40 वर्ष तक नहीं तोड़ा जा सका।
- 1962 के जकार्ता एशियाई खेलों में ‘डिकैथलॉन’ में उन्होंने 6739 अंकों के साथ स्वर्ण पदक हासिल किया। उनका यह रिकॉर्ड 12 वर्षों बाद उनके अपने शिष्य विजय सिंह चौहान द्वारा ही तोड़ा जा सका।
- 1962 के जकार्ता एशियाई खेलों में बाधा दौड़ में वह 15 सेकंड का समय निकाल कर पांचवें स्थान पर रहे।
- 1961 में गुरबचन सिंह रंधावा को पुरस्कार प्रदान किया गया। ट्रैक एंड फील्ड एथलेटिक्स में अर्जुन पुरस्कार पाने वाले वह प्रथम भारतीय खिलाड़ी थे।