ग्रामीण जीवन की चुनौतियाँ
Gramin Jeevan ki Chunautiya
भारत गाँवों में बसता है यह कहावत इक्कसवीं सदी में भी चरितार्थ होती है। शहर में शहरी हर तरह की सुविधाएँ प्राप्त कर लेते हैं। राजनेता भी गाँवों की अपेक्षा शहरों पर ज्यादा ध्यान रखते हैं क्योंकि स्वयं उनके परिवार भी गाँवों की बजाय शहरों में रहते हैं। लेकिन शहरों में रहना कितना चुनौतीभरा है यह शहर का रहने वाला कतई नहीं समझ सकता। ग्रामीण लोगों का खाना-पीना मोटा होता है, रहना-पहनना मोटा होता है। गाँव का किसान खेत ममें घंटे मेहनत करता है तब जाकर उसे दो पैसे देखने को मिलते हैं। गाँव की महिलाएँ उषाकाल में जाग जाती हैं। पहले पशुओं की सेवा करती हैं तब घर का काम निपटाती हैं। इसी तरह शाम को भी वे पशुओं को चारा देती हैं, दूध दोहती हैं। इसके अतिरिक्त घर के काम-धंधे करती हैं। शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों को शिक्षा की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। वे अपनी पढ़ाई गाँव में रहकर ठीक से नहीं कर सकते। पहला कारण ता बिजला बहुत फा लिए आती है। दूसरे अच्छे स्कूल-कॉलेज नहीं होते। छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए बीस-बीस किलो मीटर दूर स्कूल-कॉलेज -जाना पड़ता है। वे इतने निर्धन होते हैं कि उनके माता-पिता पढाई का खर्च नहीं उठा सकते। परिणामत: बहुत कम छात्र ही उच्च कक्षाओं में पढ़ पाते हैं। गाँव में पर्यावरण शुद्ध होता है। खाना-पीना शुद्ध होता है लकिन वे जिन परिस्थितियों में रहते हैं उनमें शहरी एक दिन नहीं रुक सकता। जो गाँव शहरों के आसपास बसे हैं वहाँ शहरी सविधाए पयाप्त है पर दूर-दराज के गाँवों की स्थिति बहुत खराब है। वहाँ तो ग्रामीण इस तरह जीवन काटते हैं जैसे कोई मज़दूर काटता है। ग्रामीण चुनौतियों को जानकर भी सरकार खामोश रहती है। उन्हें तो राजनेताओं द्वारा केवल चुनावों में वोट लेने के लिए याद किया जाता है।